अल्कोहोलिक आयुर्वेदिक दवा? ड्रग्स और कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत कार्यवाही गुजरात निषेध अधिनियम के तहत कार्रवाई को नहीं रोकती: हाईकोर्ट

Update: 2024-04-24 10:02 GMT

गुजरात हाइकोर्ट ने आयुर्वेदिक दवा के रूप में मादक पदार्थों को बेचकर राज्य के निषेध कानून का कथित रूप से उल्लंघन करने के लिए दवा कंपनी के मालिक के खिलाफ लगाए गए आरोपों की पुष्टि की है यह स्पष्ट करते हुए कि ड्रग्स और कॉस्मेटिक्स अधिनियम के तहत कार्रवाई किसी व्यक्ति को अभियोजन से छूट नहीं देती, यदि गुजरात निषेध अधिनियम, 1949 के तहत मामला बनता है।

जस्टिस हसमुख डी. सुथार की पीठ ने बताया कि FSL रिपोर्ट के अनुसार याचिकाकर्ता की फर्म द्वारा बेची गई दवा में अल्कोहल का स्तर 12% से अधिक पाया गया जो निषेध अधिनियम के तहत अनुमेय सीमा है।

कोर्ट ने कहा,

" [ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक्स अधिनियम के तहत] उक्त कार्यवाही को गुजरात निषेध अधिनियम के तहत कार्यवाही के बराबर नहीं माना जा सकता। ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक्स अधिनियम का उद्देश्य दवाओं के निर्माण एवं वितरण को नियंत्रित करना है, क्योंकि गुजरात निषेध अधिनियम में धारा 67ए के तहत विशेष प्रावधान डाला गया और यदि मुद्दमल नमूनों में अल्कोहल का स्तर 12% से अधिक पाया जाता है तो प्रथम दृष्टया अपराध बनता है।"

याचिकाकर्ता फर्म पर आयुर्वेदिक दवा की आड़ में नशीली दवाएं बेचने और गलत तरीके से स्टिकर को स्वीकार्य सीमा से कम लगाने का मामला दर्ज किया गया। जांच के बाद निषेध अधिनियम की धारा 67 (ए), 65 (ई) और 81 के तहत आरोप-पत्र दायर किया गया, जिसमें याचिकाकर्ता को आरोपी बनाया गया।

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत कार्यवाही नमूनों के मानक का आकलन करने के सीमित उद्देश्य की पूर्ति करती है, क्योंकि ऐसे उत्पादों के निर्माण के लिए लाइसेंस विभाग द्वारा जारी किए जाते हैं। जबकि गुजरात निषेध अधिनियम मादक पदार्थों के खतरे को खत्म करने के लिए काम करता है।

इस मामले में कोर्ट ने नोट किया कि विचाराधीन वस्तुएं केवल आयुर्वेदिक दवाएं नहीं थीं, बल्कि उनमें मादक वस्तुए भी शामिल थीं।

उन्होंने कहा,

“गुजरात निषेध अधिनियम की धारा 24ए और 59ए के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए धारा 24ए औषधीय तैयारी को गुजरात निषेध अधिनियम की धारा 29ए के दायरे में आने वाले मादक शराब के रूप में उपयोग करने के लिए अनुपयुक्त बताती है।"

न्यायालय ने आगे कहा कि धारा 59ए के साथ पढ़ने पर धारा 24ए का तात्पर्य है कि औषधीय तैयारियां "वर्णन" और "सीमा" के अधीन हैं, जिसका अर्थ है कि उनके निर्माण में निष्कर्षण निहित तत्वों के घोल और संरक्षण के लिए आवश्यक से अधिक अल्कोहल का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

न्यायालय ने कहा,

"यदि धारा 59ए द्वारा निर्धारित मात्रा से अधिक अल्कोहल पाया जाता है तो अपराध बनता है चाहे वह मादक शराब के रूप में उपयोग करने के लिए उपयुक्त हो या अनुपयुक्त। कभी-कभी ऐसा होता है कि ऐसी दवा या सामान के असामान्य सेवन से कई जटिलताएं पैदा होती हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।"

न्यायालय ने यह भी कहा कि राज्य का कर्तव्य है कि वह जीवन स्तर और सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ाए और शराब और मादक दवाओं के सेवन को समाप्त करे। गुजरात एक शराब मुक्त राज्य है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 47, राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार जीवन स्तर को बढ़ाना और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करना राज्य का कर्तव्य है और उक्त उद्देश्य के लिए गुजरात राज्य में ऐसी मादक दवाओं पर प्रतिबंध अनिवार्य किया जा रहा है।

राज्य राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी के विचारों और सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध है और राज्य शराब या नशीली दवाओं के सेवन की बुराई को मिटाने के लिए भी दृढ़ इरादा रखता है, जिससे राज्य में नशीली दवाओं और पूर्ण शराबबंदी से संबंधित कानून में सुधार किया जा सके और इसके लिए गुजरात निषेध अधिनियम में संशोधन भी किए जा रहे हैं।

न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए जोर दिया,

“हालांकि, यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि आदेश में की गई टिप्पणियां प्रकृति में अस्थायी हैं और मजिस्ट्रेट वर्तमान आदेश में की गई किसी भी टिप्पणी से प्रभावित हुए बिना अपने स्वयं के गुण-दोष के आधार पर आपराधिक मामले का फैसला करेंगे।”

केस टाइटल- आमोद अनिल भावे बनाम गुजरात राज्य

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