गुजरात हाईकोर्ट ने वकील को याचिका वापस लेने की अनुमति देने से किया इंकार, 'चैरिटी कमिश्नर को डराने-धमकाने' का है आरोप

Update: 2025-08-11 06:34 GMT

गुजरात हाईकोर्ट ने एक वकील और एक ट्रस्ट द्वारा दायर याचिका को वापस लेने की अनुमति देने से इनकार कर दिया, जब राज्य सरकार ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ताओं ने चैरिटी कमिश्नर की नियुक्ति पर सवाल उठाकर उन्हें डराने-धमकाने की कोशिश की है, जबकि यह नियुक्ति पहले ही अदालत द्वारा बरकरार रखी जा चुकी है।

अदालत ने टिप्पणी की कि यह मामला केवल इस याचिका तक सीमित नहीं है, बल्कि उन स्थितियों से जुड़ा है, जहां किसी विशेष प्रेसीडिंग ऑफिसर के समक्ष पेश होने वाले लोग, उनकी नियुक्ति पर सवाल उठाकर, उन्हें दबाव में लाने या ब्लैकमेल करने का प्रयास करते हैं।

यह याचिका एक सेवा विवाद से संबंधित है, जिसमें राज्य ने अपने जवाब में कहा कि याचिकाकर्ताओं ने प्रतिवादी नंबर 4 और 6 (क्रमशः संयुक्त चैरिटी कमिश्नर, क्लास-I और सहायक चैरिटी कमिश्नर, क्लास-I) को डराने-धमकाने का प्रयास किया। इन दोनों की नियुक्ति 2022 में हाईकोर्ट के आदेश के तहत हुई थी। याचिका में प्रार्थना प्रतिवादी नंबर 4 की सेवाओं के नियमितीकरण के खिलाफ थी।

7 अगस्त को याचिकाकर्ता के सीनियर वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे सरकारी वकील ने यह कहते हुए विरोध किया कि यह प्रेसीडिंग ऑफिसर्स को डराने-धमकाने का एकमात्र मामला नहीं है।

जस्टिस निखिल एस. करियल ने आदेश में कहा,

"चूंकि यह मुद्दा केवल याचिकाकर्ताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रवृत्ति निचली न्यायपालिका के लिए गलत संदेश दे सकती है, इसलिए इस न्यायालय की धारा 227 के तहत पर्यवेक्षणीय अधिकार क्षेत्र में याचिका वापस लेने की अनुमति देने से इनकार किया जाता है।"

इसके बाद सीनियर वकील ने कहा कि उनका काम केवल याचिका वापस लेने का अनुरोध करना था। चूंकि कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया, वे आगे इस मामले में पेश नहीं होंगे। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उन्हें राज्य का जवाब एक दिन पहले मिला है, इसलिए यह तय करने के लिए समय चाहिए कि जवाबी हलफनामा दाखिल किया जाए या नहीं।

अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 14 अगस्त, 2025 तय की और कहा कि जवाबी हलफनामा, यदि कोई हो, 13 अगस्त 2025 तक दाखिल किया जाए।

राज्य ने अपने जवाब में कहा कि याचिकाकर्ता नंबर 1 एक वकील हैं जो चैरिटी कमिश्नर के समक्ष पेश होते रहे हैं, याचिकाकर्ता नंबर 2 एक ट्रस्ट है और याचिकाकर्ता संख्या 3 उसका ट्रस्टी है। राज्य का कहना है कि यह याचिका कानून का दुरुपयोग है, क्योंकि 2024 में दायर याचिका पर जुलाई, 2024 के आदेश में राज्य को 8 सप्ताह में याचिकाकर्ताओं के प्रतिनिधित्व पर निर्णय करने का निर्देश दिया गया था। यह प्रतिनिधित्व 18 सितंबर, 2024 के कारण-युक्त आदेश से तय हुआ, जिसे अब नई याचिका में चुनौती दी गई।

याचिका में प्रतिवादी नंबर 4 की सेवाओं के नियमितीकरण पर रोक लगाने की मांग की गई, जबकि उनकी नियुक्ति 2 मार्च 2022 के आदेश में पहले ही न्यायिक जांच की कसौटी पर खरी उतर चुकी है।

मामला अब 14 अगस्त को सूचीबद्ध है।

टाइटल :अशोक भानुशंकर त्रिवेदी व अन्य बनाम गुजरात राज्य व अन्य

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