नियमितीकरण तिथि से पहले की अवधि को पेंशन और अन्य रिटायरमेंट लाभों की गणना में शामिल किया जाना चाहिए: गुजरात हाइकोर्ट

Update: 2024-05-06 06:57 GMT

गुजरात हाइकोर्ट के जस्टिस निखिल एस. करियल की सिंगल बेंच ने माना कि नियमितीकरण की तिथि से पहले की अवधि, जिसमें कामगार ने 240 दिन काम करने की आवश्यकता को पूरा किया, उसको पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों की गणना में शामिल किया जाना चाहिए।

संक्षिप्त तथ्य

17.10.1988 के सरकारी संकल्प के तहत नियमितीकरण से पहले याचिकाकर्ता के पति (मृत कामगार) द्वारा प्रदान की गई सेवा की अवधि को उनकी पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों की गणना में शामिल नहीं किया गया। परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता ने हाइकोर्ट में विशेष सिविल आवेदन दायर किया।

सबसे पहले उसने अपने पति की पेंशन और रिटायरमेंट लाभों को जारी करने में प्रबंधन की निष्क्रियता को अवैध, अन्यायपूर्ण, मनमाना और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करने वाला घोषित करते हुए परमादेश या किसी अन्य उपयुक्त आदेश जारी करने का अनुरोध किया।

उसने आगे प्रबंधन को पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभों को 12% ब्याज दर के साथ पूर्वव्यापी रूप से वितरित करने का निर्देश देने का आग्रह किया। इसके अतिरिक्त याचिकाकर्ता ने न्यायालय से प्रबंधन द्वारा लाभों को रोके रखने को गैरकानूनी घोषित करने और उन्हें 12% ब्याज दर के साथ सभी देय राशि जारी करने का निर्देश देने का आग्रह किया।

हाइकोर्ट द्वारा अवलोकन:

हाइकोर्ट ने नोट किया कि मृतक कर्मचारी ने 18.04.1993 को विभाग में दैनिक वेतनभोगी के रूप में काम करना शुरू किया और 28.02.2014 तक सेवा की इस अवधि के दौरान प्रति वर्ष 240 दिन काम करते हुए 15 साल की सेवा की। पेंशन गणना के लिए 01.04.2009 से 28.02.2014 तक के कार्यकाल को स्वीकार किया गया, लेकिन गुजरात सिविल सेवा (पेंशन) नियम 2002 में निर्धारित नियमों के कारण मृतक कर्मचारी पेंशन लाभ के लिए अपेक्षित योग्यता सेवा अवधि से कम था।

हाइकोर्ट ने माना कि प्रबंधन का तर्क कि नियमितीकरण की तिथि से पहले की अवधि को नहीं गिना जाना चाहिए। अब कोई मुद्दा नहीं है, जो कि एकतरफा है। इसने समुदाभाई ज्योतिभाई भेदी बनाम कार्यकारी अभियंता 2017 (4) जीएलआर 2952 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना कि नियमितीकरण से पहले की अवधि, जिसके दौरान कर्मचारी ने न्यूनतम 10 वर्षों के लिए 240 दिन काम करने की शर्त पूरी की थी, उसको पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों की गणना में शामिल किया जाना चाहिए।

इसलिए हाइकोर्ट ने माना कि प्रबंधन का रुख गलत था और स्थापित कानूनी सिद्धांतों के विपरीत था। हाइकोर्ट ने आदेश दिया कि 01.04.2009 से पहले की सेवा अवधि, जिसके दौरान याचिकाकर्ता के पति ने प्रति वर्ष 240 दिन काम किया को बकाया राशि की गणना के उद्देश्य से उसकी कुल सेवा में गिना जाना चाहिए। इसके अलावा प्रबंधन को आठ सप्ताह के भीतर पेंशन और टर्मिनल लाभों सहित सभी बकाया राशि की गणना और भुगतान करने का निर्देश दिया गया।

केस टाइटल- नारन देवशी महेश्वरी और अन्य बनाम गुजरात राज्य और अन्य।

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