गुजरात सहकारी समिति अधिनियम के कथित गैर-कार्यान्वयन पर हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार से जवाब मांगा
चामुंडा कॉटन सेल्स को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार को गुजरात सहकारी समिति अधिनियम 1961 के कथित गैर-कार्यान्वयन के मुद्दे को संबोधित करते हुए एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।
PIL ने अधिनियम के कार्यान्वयन से संबंधित तीन प्रमुख मुद्दे उठाए हैं।
पहला मुद्दा अधिनियम 1961 की धारा 76 के कार्यान्वयन से संबंधित ,है जो राज्य सरकार को सहकारी ऋण संरचना की समितियों को छोड़कर धारा 74सी में उल्लिखित सभी शहरी सहकारी बैंकों, संघीय समितियों और निर्दिष्ट सहकारी समितियों के प्रबंधक, सचिव, लेखाकार या किसी अन्य अधिकारी या कर्मचारी की नियुक्ति के लिए योग्यता, सेवा की शर्तें, कर्मचारी अनुसूची, भर्ती की प्रक्रिया प्रदान करने का अधिकार देता है।
याचिकाकर्ता सोसायटी की ओर से पेश सीनियर वकील प्रकाश जानी ने अदालत के ध्यान में लाया कि 31.03.2020 तक गुजरात राज्य में लगभग 350 निर्दिष्ट सहकारी समितियां, 186 शहरी सहकारी समितियां और अन्य सहित कुल 81,468 सहकारी समितियां कार्यरत हैं, जिनमें आज की तारीख तक लगभग 3,00,000 कर्मचारी काम कर रहे हैं।
यह प्रस्तुत किया गया कि योग्यता आदि प्रदान करने के लिए धारा 76 की आवश्यकता ऐसी सहकारी समितियों में सेवाओं के मानकों को बनाए रखना है।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि आज तक राज्य सरकार द्वारा धारा 76 की आवश्यकता का अनुपालन करते हुए कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई। इसका परिणाम यह है कि विभिन्न सहकारी समितियां अपनी इच्छा और इच्छा के अनुसार अपने कर्मचारियों को अंधाधुंध तरीके से नियुक्त कर रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप अयोग्य और अक्षम कर्मचारियों की नियुक्ति हो रही है और ऐसे कर्मचारियों की सेवा की शर्तों को विनियमित करने के मामले में निरंकुश शक्तियों का प्रयोग किया जा रहा है।
दूसरा मुद्दा अधिनियम, 1961 की धारा 156 के तहत निर्धारित राज्य सहकारी परिषद के गठन से संबंधित है।
जानी ने न्यायालय का ध्यान धारा 156 की उप-धारा (3) की ओर आकर्षित किया, जिससे यह बताया जा सके कि सहकारी समिति अधिनियम 1961 के तहत पंजीकृत सहकारी समितियों के मामलों को विनियमित करने के मामले में राज्य सहकारी परिषद के कार्य महत्वपूर्ण महत्व रखते हैं।
यह प्रस्तुत किया गया कि यद्यपि राज्य सहकारी परिषद के गठन को लगभग 10 से 12 वर्ष पहले अधिसूचित किया गया है, लेकिन परिषद के वर्तमान गठन की कोई अधिसूचना नहीं है। सीनियर एडवोकेट ने परिषद के अस्तित्व में होने पर भी अपने कार्यों के निर्वहन के लिए नियमित बैठकें आयोजित करने के बारे में आशंका जताई।
अंतिम मुद्दा धारा 156 ए के तहत शक्ति के प्रयोग के संबंध में है। सीनियर एडवोकेट ने प्रस्तुत किया कि यद्यपि याचिकाकर्ता द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार, राज्य सरकार द्वारा समितियों को ई-टेंडर प्रक्रिया दाखिल करके खरीद करने के निर्देश देने में कुछ कार्यकारी निर्देश जारी किए गए हैं, लेकिन आधिकारिक राजपत्र में कोई अधिसूचना नहीं है, जो ऐसी सभी सहकारी समितियों को बाध्य करेगी।
चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस प्रणव त्रिवेदी की खंडपीठ ने निर्देश दिया,
"इन तीन मुद्दों के उत्तर रजिस्ट्रार, सहकारी अर्थात् प्रतिवादी नंबर 3 द्वारा अगली तिथि पर न्यायालय में अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करके हमारे समक्ष प्रस्तुत किए जाएंगे।"
मामला अब 30 अगस्त को पोस्ट किया गया।
केस टाइटल- चामुंडा कॉटन सेल्स को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड बनाम गुजरात राज्य और अन्य।