गुवाहाटी हाईकोर्ट ने APSC घोटाले में बर्खास्त 52 अधिकारियों की बहाली का आदेश दिया, कहा- बिना उचित सरकारी आदेश के सेवा से हटाना असंवैधानिक
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में असम सरकार को 52 अधिकारियों को सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया, जिन्हें असम लोक सेवा आयोग (APSC) की संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा 2013 और 2014 के माध्यम से नियुक्ति के बाद कथित रूप से "कैश फॉर जॉब" घोटाले में शामिल होने के कारण सेवा से बर्खास्त किया गया था। अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 311(2) के प्रावधान (b) के तहत उपयुक्त सरकार द्वारा आवश्यक आदेश पारित नहीं किए गए।जिससे यह बर्खास्तगी टिक नहीं सकती।
जस्टिस कल्याण राय सुराणा और जस्टिस मालसरी नंदी की खंडपीठ ने कहा,
"दस्तावेजों में ऐसा कुछ नहीं मिला, जिससे यह साबित हो कि राज्य सरकार ने अनुच्छेद 311(2)(b) के तहत विभागीय जांच को छोड़े जाने संबंधी कोई संतोषजनक आदेश पारित किया हो। इसलिए यह माना जाएगा कि उपयुक्त सरकार ने ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया।"
मामले की पृष्ठभूमि
2013 और 2014 में APSC द्वारा आयोजित मुख्य परीक्षा के आधार पर नियुक्त किए गए अपीलकर्ता अधिकारियों पर आरोप था कि उन्होंने रिश्वत देकर नौकरी प्राप्त की। शिकायत के आधार पर FIR दर्ज हुई और APSC के तत्कालीन अध्यक्ष व अन्य पर आरोप लगे कि उन्होंने उत्तर-पत्र फिर से लिखवाकर उनमें ओवरराइटिंग और नकली हस्ताक्षर के जरिए चयन प्रक्रिया में गड़बड़ी की। इसके बाद इन अधिकारियों को सेवा से हटा दिया गया।
अपीलकर्ताओं की दलीलें
अपीलकर्ताओं की ओर से कहा गया कि वे दो साल की परिवीक्षा पूरी कर चुके हैं, इसलिए उन्हें स्थायी कर्मचारी माना जाना चाहिए। यदि राज्य उन्हें नियमित कर्मचारी नहीं मानता तो यह भी स्पष्ट नहीं है कि वे किस पद पर काम कर रहे थे। साथ ही तर्क दिया गया कि किसी भी मामले में राज्य सरकार ने यह नहीं कहा कि वे पुष्टि योग्य नहीं हैं। इसके अलावा, विभागीय जांच भी नहीं की गई, जो संविधान के अनुच्छेद 311(2) का उल्लंघन है।
कोर्ट का अवलोकन
अदालत ने पाया कि पुलिस के समक्ष अपीलकर्ताओं के कथित बयान साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 और 26 के तहत अमान्य हैं। इसके अनुसार, आरोपी द्वारा पुलिस के समक्ष दिया गया बयान उसके खिलाफ साक्ष्य के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि एकल पीठ द्वारा बिना किसी वैध प्रमाण के बर्खास्तगी को उचित ठहराना संविधान के अनुच्छेद 311 के विरुद्ध है।
अदालत का निर्देश
1. अपीलकर्ताओं की बर्खास्तगी को रद्द किया जाता है।
2. जिन्होंने परिवीक्षा पूरी कर ली है, उन्हें 50 दिनों के भीतर सेवा में बहाल किया जाए।
3. जिनकी परिवीक्षा अवधि पूरी नहीं हुई है, उनके संबंध में उपयुक्त आदेश पारित किए जाएं।
4. यदि सरकार चाहे तो इन अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच शुरू कर सकती है, लेकिन उसे 90 दिनों के भीतर पूरी करना होगा।
5. जिनकी सेवा बहाल नहीं की जा सकती, उन्हें सादे आदेश से बर्खास्त किया जाए ताकि उन पर कोई कलंक न लगे।
न्यायालय ने कहा,
“इस आदेश को लागू करने से पहले 30 दिन की मोहलत राज्य को दी जाती है ताकि वह आवश्यक कार्रवाई कर सके। अपीलकर्ता इस आदेश की प्रमाणित प्रति राज्य को सौंपें।”
केस टाइटल: कमल देबनाथ बनाम असम राज्य एवं अन्य