सुप्रीम कोर्ट ने कुछ निर्माण परियोजनाओं को पर्यावरण मंजूरी से छूट देने वाली केंद्र सरकार की अधिसूचना पर रोक लगाई

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (24 फरवरी) को केंद्र सरकार की उस अधिसूचना पर रोक लगाई, जिसमें कुछ निर्माण और निर्माण परियोजनाओं को अनिवार्य पूर्व पर्यावरण मंजूरी से छूट दी गई थी।
जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ ने एनजीओ वनशक्ति द्वारा अधिसूचना को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर 28 मार्च, 2025 को जवाब देने योग्य नोटिस जारी किया।
अदालत ने अपने आदेश में कहा,
"इस बीच, 29 जनवरी, 2025 की अधिसूचना (अनुलग्नक पी-24) के साथ-साथ 30 जनवरी, 2025 के कार्यालय ज्ञापन (अनुलग्नक पी-25) के संचालन और कार्यान्वयन पर रोक रहेगी।"
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) की अधिसूचना में 150,000 वर्ग मीटर तक निर्मित क्षेत्र वाले औद्योगिक शेड, स्कूल, कॉलेज और हॉस्टल को पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA), 2006 के तहत पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करने से छूट दी गई। इससे पहले EIA, 2006 की अनुसूची 8 के तहत भवन और निर्माण परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय मंजूरी देने की मौजूदा व्यवस्था के तहत, 20,000 वर्ग मीटर से अधिक निर्मित क्षेत्र वाले सभी निर्माण परियोजनाओं के लिए अनिवार्य पूर्व मंजूरी की आवश्यकता थी।
वकील वंशदीप डालमिया के माध्यम से दायर जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि विवादित अधिसूचना कठोर पर्यावरणीय मंजूरी व्यवस्था को कमजोर करती है।
जनहित याचिका में 30 जनवरी, 2025 के कार्यालय ज्ञापन को भी चुनौती दी गई, जिसके तहत 'शैक्षणिक संस्थान' और 'औद्योगिक शेड' के अर्थ को विवादित अधिसूचना के प्रयोजनों के लिए विस्तारित किया गया। अब इसमें निजी तकनीकी संस्थान, पेशेवर अकादमियां, यूनिवर्सिटी आदि के साथ-साथ गोदाम, औद्योगिक शेड हाउसिंग मशीनरी और/या कच्चा माल शामिल हैं, जो 1,50,000 वर्ग मीटर के निर्मित क्षेत्र तक पूर्व ईसी की आवश्यकता से बाहर हैं।
याचिका के अनुसार, भवन और निर्माण परियोजनाओं के लिए छूट प्रदान करने का केंद्र द्वारा यह चौथा प्रयास है। 2014, 2016 और 2018 में भी इसी तरह के प्रयास किए गए, लेकिन उन्हें अदालतों द्वारा रद्द कर दिया गया या रोक दिया गया। याचिका में तर्क दिया गया कि छूट पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत संरक्षित क्षेत्रों, गंभीर और गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों और अंतरराज्यीय सीमाओं के पास की परियोजनाओं की मूल्यांकन प्रक्रिया को प्रभावित करेगी। इसने यह भी तर्क दिया है कि अधिसूचना पर्यावरण संरक्षण नियम, 1986 का उल्लंघन करती है, क्योंकि इसमें नियम 5 के तहत आवश्यक कारणों को निर्दिष्ट नहीं किया गया।
याचिका में दावा किया गया कि EIA प्रक्रिया को हटाने से गंभीर पर्यावरणीय परिणाम होंगे, जिससे संभावित रूप से अनियमित निर्माण गतिविधियां हो सकती हैं, जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान हो सकता है। एनजीओ ने यह भी तर्क दिया है कि अधिसूचना भारत में पर्यावरण न्यायशास्त्र के तहत एहतियाती सिद्धांत, सतत विकास और गैर-प्रतिगमन के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
केस टाइटल- वनशक्ति बनाम भारत संघ