दिल्ली हाईकोर्ट नेत्रहीन उम्मीदवारों के लिए CMSE में 1% आरक्षण की मांग पर केंद्र व UPSC से जवाब मांगा

Update: 2025-09-10 10:50 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को संयुक्त चिकित्सा सेवा परीक्षा (CMSE) में नेत्रहीन और कम दृष्टि वाले उम्मीदवारों के लिए 1% आरक्षण की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया। यह आरक्षण विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 34(1)(a) के तहत अनिवार्य है।

चीफ़ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से जवाब मांगा है।

यह याचिका मिशन एक्सेसिबिलिटी संगठन की ओर से उसके गैर-कार्यकारी निदेशक और वकील राहुल बजाज ने दाखिल की है, जिसे अधिवक्ता अमृतेश मिश्रा और सारा ने दायर किया।

याचिका में कहा गया है कि संगठन के एक सदस्य ने CMSE-2024 परीक्षा में नेत्रहीन/कम दृष्टि उम्मीदवार के रूप में भाग लिया और दिव्यांग वर्ग के लिए न्यूनतम अंकों को हासिल करने के बावजूद उसे साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाया गया, क्योंकि इस श्रेणी के लिए आरक्षण ही उपलब्ध नहीं था।

धारा 34 के अनुसार, सभी सरकारी प्रतिष्ठानों में कम से कम 4% रिक्तियों को दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए, जिसमें 1% नेत्रहीन और कम दृष्टि वालों के लिए होना जरूरी है।

याचिका में कहा गया कि UPSC द्वारा आयोजित CMSE-2024 और CMSE-2025 की अधिसूचनाओं में क्रमशः 827 और 705 रिक्तियों में से किसी भी पद को नेत्रहीन और कम दृष्टि वालों के लिए आरक्षित नहीं किया गया। यह सीधा और स्पष्ट उल्लंघन है। जबकि अन्य दिव्यांग श्रेणियों को आरक्षण दिया गया है, इस श्रेणी को बाहर करने का कोई वैध कारण नहीं है।

इसके अलावा याचिका में तर्क दिया गया कि भारत जैसे देश में जहाँ डॉक्टरों की कमी है, वहाँ MBBS और अनिवार्य इंटर्नशिप पूरी कर चुके नेत्रहीन/कम दृष्टि वाले डॉक्टरों को सेवा के अवसरों से बाहर रखना अनुचित है। आवश्यक सुविधाएँ और व्यवस्थाएँ उपलब्ध कराकर वे स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निभाने में पूरी तरह सक्षम हैं।

याचिका में EPWD विभाग को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह उन पदों की पहचान करे जिन्हें नेत्रहीन और कम दृष्टि वाले लोग संभाल सकते हैं। साथ ही, कार्मिक विभाग, दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग और स्वास्थ्य मंत्रालय को भी उचित सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए कदम उठाने का आदेश देने की मांग की गई है।

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