पति के परिवार वालों द्वारा यौन उत्पीड़न भी IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता का एक रूप है, इसके लिए अलग ट्रायल की ज़रूरत नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि पति के परिवार वालों द्वारा पत्नी पर किया गया यौन उत्पीड़न भी भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 498A के तहत क्रूरता का एक रूप है और इसके लिए अलग ट्रायल की ज़रूरत नहीं है।
जस्टिस अमित महाजन ने कहा कि अगर पत्नी ऐसे परिवार वालों के खिलाफ आरोप लगाती है तो यह धारा 498A में बताई गई शारीरिक क्रूरता का भी हिस्सा हो सकता है।
कोर्ट ने साफ किया कि IPC की धारा 498A और 376 के तहत दोनों अपराध इस तरह से जुड़े होने चाहिए कि वे "एक ही लेन-देन बनाने के लिए एक साथ जुड़े हुए कामों की एक श्रृंखला" की शर्त को पूरा करें।
कोर्ट ने कहा,
"इस कोर्ट की राय में अगर ससुराल वालों द्वारा शारीरिक क्रूरता के गंभीर रूप में बलात्कार किया जाता है तो इसे क्रूरता के अपराध से अलग नहीं माना जा सकता है ताकि अलग ट्रायल की ज़रूरत पड़े, खासकर इसलिए क्योंकि इससे होने वाला मनोवैज्ञानिक तनाव भी उसी तरह बना रहेगा।"
जस्टिस महाजन एक पत्नी की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें ससुर और देवर को क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र की कमी के आधार पर बलात्कार के अपराध से बरी कर दिया गया और राज्य को उचित कोर्ट में आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की आज़ादी दी गई।
यह नोट किया गया कि पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके साथ हरियाणा में उसके ससुराल में बलात्कार हुआ था और ट्रायल कोर्ट के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में ऐसी कोई घटना होने का आरोप नहीं लगाया गया।
विवादास्पद आदेश रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा कि बलात्कार और क्रूरता के आरोप CrPC की धारा 220 की ज़रूरतों को पूरा करते हैं। इस तरह संबंधित आरोपी पर प्रत्येक अपराध के लिए एक ही ट्रायल में आरोप लगाया जा सकता है और मुकदमा चलाया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा,
"इसलिए CrPC की धारा 184 और 220 को एक साथ पढ़ने पर इस मामले में कथित अपराधों की जांच या ट्रायल किसी भी ऐसे कोर्ट द्वारा किया जा सकता है, जो किसी भी अपराध की जांच या ट्रायल करने में सक्षम हो।"
इसमें कहा गया कि मामले में रेप और क्रूरता के कथित अपराध इस तरह से जुड़े हुए हैं कि वे एक ही घटना का हिस्सा हैं। इसलिए ट्रायल कोर्ट के पास रेप के अपराध के संबंध में सही अधिकार क्षेत्र है।
कोर्ट ने मामले को तथ्यों पर नए सिरे से विचार करने के लिए ट्रायल कोर्ट को वापस भेज दिया।
Title: H v. STATE GOVT OF NCT OF DELHI & ORS