जांच के लिए पुलिस के समक्ष आरोपी को पेश करने के लिए धारा 73 CrPc के तहत गैर-जमानती वारंट जारी नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि जांच के लिए पुलिस के समक्ष आरोपी को पेश करने के लिए मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 73 CrPc के तहत गैर-जमानती वारंट जारी करना अवैध है, क्योंकि ऐसा वारंट केवल अदालत के समक्ष आरोपी को पेश करने के लिए ही जारी किया जा सकता है।
इसके अलावा न्यायालय ने माना कि धारा 82 CrPc के तहत मजिस्ट्रेट को किसी भी उद्घोषणा को जारी करने से पहले यह मानने के कारण दर्ज करने चाहिए कि कोई व्यक्ति फरार हो गया है।
जस्टिस विकास महाजन याचिकाकर्ता द्वारा मजिस्ट्रेट के दिनांक 26.04.2024 के आदेश को चुनौती देने पर विचार कर रहे थे, जिसने 23.02.2024 को धारा 82 सीआरपीसी के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही पर रोक रद्द कर दी गई थी।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता/आरोपी के खिलाफ IPC की धारा 354(बी), 506 और 509 के तहत मामला दर्ज किया गया।
जांच अधिकारी (IO) ने 03.02.2024 को धारा 41ए CrPc के तहत याचिकाकर्ता को 04.02.2024 को पेश होने के लिए नोटिस जारी किया। इसी तरह का नोटिस 05.02.2024 को दिया गया, जिसमें याचिकाकर्ता को 06.02.2024 को पेश होने के लिए कहा गया। ये दोनों नोटिस याचिकाकर्ता की मां को दिए गए।
06.02.2024 को आईओ ने याचिकाकर्ता/आरोपी के खिलाफ गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी करने के लिए मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दायर किया, जिसमें दावा किया गया कि याचिकाकर्ता जानबूझकर जांच से बच रहा है। मजिस्ट्रेट ने उसी दिन NBW जारी किया और यह आदेश केवल एक पंक्ति का था, जिसमें लिखा था. “सुना गया। आरोपी लक्ष्य के खिलाफ 12/2/24 के लिए NBW जारी किया गया।
मामले में गिरफ्तारी की आशंका के चलते याचिकाकर्ता ने सेशन कोर्ट के समक्ष अग्रिम जमानत आवेदन दायर किया। जब यह लंबित था तो आईओ ने याचिकाकर्ता के खिलाफ धारा 82 सीआरपीसी के तहत प्रक्रिया शुरू करने के लिए 14.02.2024 को मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष एक आवेदन दायर किया। उसी दिन मजिस्ट्रेट ने आवेदन स्वीकार कर लिया और याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रक्रिया शुरू कर दी। यह आदेश भी एक पंक्ति का था और इसमें लिखा था सुना गया। आवेदन स्वीकार किया जाता है।
आरोपी लक्ष्य जायसवाल के खिलाफ 82 CrPc 28.03.2024 के लिए जारी किया जाता है।
मजिस्ट्रेट ने 23.02.2024 को धारा 82 सीआरपीसी के तहत प्रक्रिया पर रोक लगा दी। लेकिन एक बार फिर आईओ द्वारा आवेदन करने पर मजिस्ट्रेट ने प्रक्रिया पर लगी रोक हटा दी, यानी 26.04.2024 को उपरोक्त आदेश रद्द कर दिया।
31.05.2024 को मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ता/आरोपी को भगोड़ा घोषित कर दिया। इसके बाद 28.06.2024 को मजिस्ट्रेट ने धारा 83 सीआरपीसी के तहत आरोपी की चल संपत्ति की कुर्की के वारंट जारी किए।
हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्ति
हाईकोर्ट ने कहा कि वर्तमान में केवल मजिस्ट्रेट के 26.04.2024 के आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें धारा 82 सीआरपीसी के तहत प्रक्रिया रद्द कर दी गई।
हालांकि कोर्ट ने मजिस्ट्रेट द्वारा जारी अन्य आदेशों की वैधता पर भी फैसला सुनाया।
कोर्ट ने कहा कि वर्तमान याचिका धारा 482 सीआरपीसी के तहत दायर की गई, इसलिए वह न्याय सुनिश्चित करने के लिए किसी भी कार्यवाही को रद्द करने की अपनी अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
कोर्ट ने कहा,
"यह न्यायालय उक्त प्रावधानों के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता। यदि उसे लगता है कि संहिता के तहत पारित कुछ आदेश भले ही उन्हें विशेष रूप से चुनौती न दी गई हो, न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के समान हैं।”
न्यायालय ने निम्नलिखित आदेशों पर निर्णय लिया:
गैर-जमानती वारंट जारी करना हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 73 CrPc के तहत गिरफ्तारी का वारंट केवल आरोपी को न्यायालय के समक्ष पेश करने के लिए जारी किया जा सकता है, न कि जांच के लिए पुलिस के समक्ष पेश करने के लिए। इसने इंदर मोहन गोस्वामी एवं अन्य बनाम उत्तरांचल राज्य एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया गया, जिसमें यह माना गया कि किसी व्यक्ति को न्यायालय में लाने के लिए गैर-जमानती वारंट तभी जारी किया जाना चाहिए, जब समन या जमानती वारंट से वांछित परिणाम मिलने की संभावना न हो।
वर्तमान मामले में न्यायालय ने नोट किया कि मजिस्ट्रेट के समक्ष दिनांक 06.02.2024 को जांच अधिकारी के आवेदन में आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता जांच में शामिल होने से बच रहा था। इस प्रकार गैर-जमानती वारंट जारी करने की प्रार्थना की। न्यायालय ने कहा कि जिस उद्देश्य के लिए गैर जमानती वारंट मांगा गया था, वह धारा 73 सीआरपीसी का उल्लंघन है।
न्यायालय ने कहा,
“जिस उद्देश्य के लिए जांच अधिकारी ने गैर जमानती वारंट जारी करने के लिए ट्रायल कोर्ट से संपर्क किया, वह कानून के आदेश के विपरीत है।”
इसने यह भी नोट किया कि पहले समन जारी करने के बजाय मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ सीधे गैर जमानती वारंट जारी कर दिया। इसने कहा कि यह आदेश उचित तथ्यों की जांच किए बिना और बिना सोचे-समझे पारित किया गया। इस प्रकार इसने मजिस्ट्रेट के दिनांक 06.02.2024 का आदेश रद्द कर दिया।
उद्घोषणा जारी करना
इसने नोट किया कि धारा 82 सीआरपीसी के तहत न्यायालय को यह मानने के लिए अपने कारण दर्ज करने की आवश्यकता है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ वारंट जारी किया गया, वह फरार है और इसलिए उद्घोषणा जारी करने की आवश्यकता है।
वर्तमान मामले में न्यायालय ने नोट किया कि मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ता के फरार होने का संकेत देने के लिए कोई कारण नहीं बताए। इसने कहा कि उद्घोषणा जारी करने वाला मजिस्ट्रेट का यह आदेश भी बिना सोचे-समझे था। इसने उनके आदेश को अवैध माना।
इस प्रकार इसने मजिस्ट्रेट के दिनांक 14.02.2024 का आदेश रद्द कर दिया।
इसने दिनांक 31.05.2024 के आदेश सहित बाद की कार्यवाही भी रद्द कर दी, जिसमें याचिकाकर्ता/आरोपी को फरार घोषित किया गया था। दिनांक 28.06.2024 के आदेश जिसमें याचिकाकर्ता की चल संपत्ति की कुर्की का वारंट जारी किया गया था।
अग्रिम जमानत देने पर कोई रोक नहीं
शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि एक बार किसी आरोपी के खिलाफ NBW जारी हो जाने के बाद न्यायालय को अग्रिम जमानत के लिए आवेदन पर विचार नहीं करना चाहिए। इस पर न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ जारी गैर जमानती वारंट को न्यायालय ने खारिज कर दिया, इसलिए अग्रिम जमानत देने पर कोई रोक नहीं है।
न्यायालय ने कहा कि अग्रिम जमानत मांगना आरोपी का वैधानिक अधिकार है और जांच अधिकारी द्वारा इस अधिकार की अवहेलना नहीं की जा सकती।
न्यायालय ने कहा कि अग्रिम जमानत मांगने के याचिकाकर्ता के अधिकार को जांच अधिकारी द्वारा आपराधिक मामला दर्ज होने के कुछ दिनों के भीतर ही गैर जमानती वारंट जारी करके खत्म नहीं किया जा सकता, जब जांच अभी शुरुआती चरण में है। आरोपी के पास पेशेवर सलाह लेने और गिरफ्तारी से पहले जमानत के लिए आवेदन करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है।
न्यायालय ने कहा कि CrPc की धारा 41ए के तहत जांच अधिकारी द्वारा जारी किए गए नोटिस याचिकाकर्ता की मां को दिए गए और जांच अधिकारी ने याचिकाकर्ता को पेश होने के लिए बिल्कुल भी समय नहीं दिया। उन्होंने टिप्पणी की कि जिस दिन याचिकाकर्ता को पेश होना था (06.02.2024), उसी दिन आईओ ने NBW प्राप्त कर लिया, जिससे अधिकारी की निष्पक्षता पर चिंता जताई गई।
इस प्रकार न्यायालय ने याचिकाकर्ता/आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी।
केस टाइटल- लक्ष्य जायसवाल बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) और अन्य