घरेलू हिंसा कानून में गुज़ारे भत्ते के लिए पहली या दूसरी शादी में कोई भेद नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-07-16 06:53 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि गुज़ारे भत्ते के अधिकार के संदर्भ में घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act) पहली या दूसरी शादी में कोई अंतर नहीं करता।

जस्टिस स्वरना कांत शर्मा ने एक गुज़ारा भत्ता विवाद की सुनवाई करते हुए पति की इस दलील को खारिज कर दिया कि पत्नी की यह दूसरी शादी थी और उसके पहले विवाह से दो बच्चे हैं।

कोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें पति को पत्नी को 1,00,000 प्रति माह बढ़ा हुआ गुज़ारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया।

पति की ओर से यह तर्क दिया गया,

उसकी आय पिछले कुछ वर्षों में उसके आयकर रिटर्न में दर्शाए अनुसार लगातार घट रही है। उसे अपने दैनिक और मेडिकल खर्चों के लिए कोई पारिवारिक सहयोग नहीं है। उसे घरेलू सहायक, ड्राइवर, क्लीनर और ड्रेसर की आवश्यकता है। निजी अस्पतालों में इलाज करवाने की मजबूरी के कारण उसका मासिक खर्च अधिक है। उसने पत्नी को उसकी पहली शादी से हुए दो बेटों के साथ स्वीकार किया, जिससे उसकी नियत और सद्भावना स्पष्ट होती है।

इन सभी दलीलों को कोर्ट ने खारिज कर दिया और कहा,

पति उच्च जीवन स्तर बनाए हुए है। उसके पास आर्थिक सामर्थ्य है कि वह आदेशित गुज़ारा भत्ता दे सके। पति के पास पत्नी के अलावा कोई अन्य आश्रित नहीं है। निचली अदालत ने उचित रूप से माना कि पत्नी को भी वैसा ही जीवन स्तर मिलना चाहिए, जैसा पति स्वयं के लिए रखता है, खासकर जब पति के स्वयं के मासिक खर्च 1.5 से 2 लाख तक के हैं।

कोर्ट ने यह भी माना कि पत्नी की यह शिकायत उचित थी कि पति ने मामले की कार्यवाही के दौरान अपनी संपत्तियाँ बेचने या छुपाने की कोशिश की ताकि पत्नी के वैध दावे को निष्फल किया जा सके। कोर्ट ने कहा कि ऐसा व्यवहार पति की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाता है और पत्नी की आशंका को बल देता है। कोर्ट ने पति की इस दलील को कि यह दूसरी शादी थी पूरी तरह से गलत और भ्रामक करार दिया।

कोर्ट ने कहा,

"घरेलू हिंसा अधिनियम पहली या दूसरी शादी में गुज़ारा भत्ता पाने के अधिकार के लिए कोई भेद नहीं करता। जब एक व्यक्ति स्वेच्छा से विवाह करता है और अपनी पत्नी व उसके बच्चों को स्वीकार करता है, तो वह अब उस तथ्य को कानूनी दायित्व से बचने के बहाने के रूप में इस्तेमाल नहीं कर सकता।"

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