शिक्षा निदेशालय की ओर से सीट आवंटन के बाद किसी भी बच्चे को प्रवेश देने से इनकार करना आरटीई एक्ट के उद्देश्यों का उल्लंघन: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2024-08-27 11:23 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि शिक्षा निदेशालय (डीओई) की ओर से सीट आवंटित किए जाने के बाद किसी भी बच्चे को प्रवेश देने से मना करना शिक्षा के अधिकार अधिनियम के उद्देश्यों का उल्लंघन होगा।

जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने कहा कि लॉटरी में सफलतापूर्वक अपना नाम पाने के बाद जब छात्रों के मन में प्रवेश की वैध उम्मीद की धारणा बन जाती है तो संवैधानिक न्यायालयों को उनके हितों की रक्षा करनी चाहिए और उन्हें "न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए प्रक्रियात्मक उलझनों की बेड़ियों से मुक्त करना चाहिए।"

अदालत ने कहा कि गैर-सहायता प्राप्त निजी संस्थान द्वारा शिक्षा प्रदान करना सार्वजनिक कर्तव्य की परिभाषा के अंतर्गत आता है। इसलिए, रिट अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ऐसे कर्तव्य के उल्लंघन का निवारण किया जाना चाहिए।

अदालत एक लड़के की ओर से अपने पिता के माध्यम से दायर याचिका पर विचार कर रही थी। लड़के का चयन एक निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल में ईडब्ल्यूएस श्रेणी में कक्षा 1 में प्रवेश के लिए हुआ था, लेकिन जब वह अपना एडमिशन की प्रक्रिया पूर्ण करने के लिए गया तो उसे प्रवेश देने से मना कर दिया गया।

उसे 31 मई को आयोजित लॉटरी के माध्यम से शिक्षा विभाग ने प्रवेश के लिए पात्र पाया और एक निजी स्कूल आवंटित किया गया। वह छह-सात बार स्कूल गया, लेकिन उसे कभी भी स्कूल परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई और सुरक्षा कर्मचारियों ने उसे वापस कर दिया।

जस्टिस कौरव ने निजी स्कूल के खिलाफ याचिका को विचारणीय पाते हुए निराशा के साथ कहा कि स्कूल की ओर से दिए गए जवाब में इस बात का कोई संतोषजनक आधार नहीं बताया गया कि कई बार जाने के बावजूद लड़के को प्रवेश क्यों नहीं दिया गया।

अदालत ने कहा कि छात्रों की प्रवेश प्रक्रिया में शामिल हितधारकों, विशेष रूप से वे जो ईडब्ल्यूएस या डीजी श्रेणी सहित समाज के कमजोर वर्गों से संबंधित हैं, से यह सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती है कि प्रवेश चाहने वाले छात्रों या अभिभावकों के मन में किसी भी तरह का भेदभावपूर्ण व्यवहार, चाहे जानबूझकर या प्रणालीगत, न हो।

निर्णय में कहा गया कि आरटीई अधिनियम भारतीय लोकतंत्र की अवसर की समानता के प्रति प्रतिबद्धता को मजबूत करने में एक "उल्लेखनीय उपलब्धि" है और यह सभी छात्रों के लिए समानता का मार्ग प्रशस्त करता है, चाहे उनकी वित्तीय स्थिति कुछ भी हो।

अदालत ने संबंधित स्कूल को याचिकाकर्ता लड़के को 27 अगस्त तक प्रवेश की औपचारिकताएं पूरी करने की अनुमति देने का निर्देश दिया, साथ ही कहा कि स्कूल द्वारा किसी भी तरह की चूक या गैर-अनुपालन से सख्ती से निपटा जाएगा।

इसके अलावा, अदालत ने दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग के सचिव को यह पता लगाने के लिए जांच शुरू करने का निर्देश दिया कि विसंगति पैदा करने में कौन दोषी था, जिसके कारण सीट लड़के को आवंटित की गई।

अदालत ने कहा, "शिक्षा विभाग, जीएनसीटीडी के सचिव, आरटीई अधिनियम के उचित क्रियान्वयन के लिए निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों के शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को उपयुक्त संवेदीकरण प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए विभाग द्वारा उठाए गए कदमों, यदि कोई हों, को रिकॉर्ड में रखेंगे।"

अब मामले की सुनवाई 09 सितंबर को होगी।

केस टाइटलः मास्टर जय कुमार अपने पिता मनीष कुमार के माध्यम से बनाम आधारशिला विद्या पीठ और अन्य।

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