दिल्ली हाईकोर्ट ने सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट को गिराने की कार्रवाई को सही ठहराया, घटिया निर्माण के लिए डीडीए को फटकार लगाई

Update: 2024-12-25 06:49 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने मुखर्जी नगर स्थित सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट को ध्वस्त करने और पुनर्निर्माण करने के दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के निर्णय को बरकरार रखा है। अपार्टमेंट को संरचनात्मक विशेषज्ञों ने रहने के लिए अनुपयुक्त पाया था और इसे खतरनाक घोषित किया था।

जस्टिस मिनी पुष्करणा ने यह देखते हुए कि डीडीए ने आवासीय टावरों के घटिया निर्माण के कारण आम नागरिकों को खतरनाक स्थिति में डाल दिया है, प्राध‌िकरण को सार्वजनिक कार्यों का निर्वहन करने में विफल रहने के लिए फटकार लगाई।

न्यायालय ने कहा,

"मौजूदा मामले अपनी तरह के अनोखे मामले हैं, जो डीडीए आवास योजना के तहत आवासीय टावरों के निर्माण में दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा दिखाई गई उदासीनता के बारे में चौंकाने वाले तथ्यों को सामने लाते हैं, जो निवासियों द्वारा कब्जे और सेटलमेंट के कुछ ही समय बाद ही खराब होने के संकेत दिखाने लगे थे।"

आदेश में कहा गया है कि डीडीए द्वारा की गई लापरवाही अक्षम्य है, क्योंकि इससे सैकड़ों निवासियों की जान जोखिम में पड़ गई है।

कोर्ट ने कहा, "व्यापक मरम्मत कार्य के बावजूद, घटिया निर्माण के कारण संरचनाओं के क्षरण और जीर्णता को रोका नहीं जा सका। रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्य अपार्टमेंट के निर्माण में संरचनात्मक दोष और खामियां साबित करते हैं, जिससे वे संरचनात्मक रूप से असुरक्षित हो गए हैं।"

आदेश में आगे कहा गया है, "संरचनाओं के बीम, स्तंभ और खंभों में चौड़ी और गहरी दरारें विकसित हो गई हैं। स्टील की सलाखों में जंग लग गई है, साथ ही प्रबलित कंक्रीट में भी भारी जंग लग गई है। फ्लैटों की छतों की आंतरिक छत गिरने और बाहरी प्लास्टर के बड़े-बड़े टुकड़े गिरने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं।"

न्यायालय ने निवासियों द्वारा दायर याचिकाओं के एक समूह का निपटारा करते हुए 145 पृष्ठ के फैसले में ये टिप्पणियां कीं, जिसमें निवासियों के पुनर्वास सहित विभिन्न मुद्दे उठाए गए थे। जस्टिस पुष्करणा ने कहा कि याचिकाकर्ता फ्लैटों के आवंटी होने के नाते आनुपातिक भूमि के साथ-साथ साझा क्षेत्र और सुविधा में अधिकार या हित के हकदार हैं।

कोर्ट ने कहा,

“यह न्यायालय याचिकाकर्ताओं की गरिमापूर्ण जीवन और पर्याप्त खुली जगहों की ज़रूरतों से अनभिज्ञ नहीं हो सकता। यह ध्यान देने योग्य है कि याचिकाकर्ताओं ने पार्किंग क्षेत्र, सामुदायिक स्थान, साझा क्षेत्र, हरित क्षेत्र/खुली जगह, प्राकृतिक वायु प्रवाह और सूर्य के प्रकाश और अन्य बुनियादी सुविधाओं के संबंध में हाउसिंग एस्टेट/सोसाइटी की मूल स्वीकृत लेआउट योजना को ध्यान में रखते हुए फ्लैट खरीदे थे। इसलिए, साझा क्षेत्रों पर निवासियों के मूल्यवान अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता है।”

इसके अलावा, न्यायालय ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के उस निर्णय को बरकरार रखा जिसमें संरचनाओं को खतरनाक घोषित किया गया था और कहा कि डीडीए के पास संरचनाओं को ध्वस्त करने और उनका पुनर्निर्माण करने का अधिकार है।

कोर्ट ने कहा, “सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट के निवासियों के पास साझा क्षेत्रों और सुविधाओं पर अधिकार हैं। डीडीए अतिरिक्त फ्लैट बनाने का हकदार नहीं है। बढ़े हुए एफएआर का लाभ सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट के फ्लैटों के मालिकों को मिलेगा।''

न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट के सभी रहने वाले, जिन्होंने अभी तक फ्लैट खाली नहीं किए हैं, तीन महीने के भीतर फ्लैट खाली कर देंगे। न्यायालय ने आदेश दिया कि डीडीए फ्लैट खाली होने की तिथि से एचआईजी फ्लैटों के मालिकों/रहने वालों को 50,000 रुपये प्रति माह और एमआईजी फ्लैटों के मालिकों/रहने वालों को 38,000 रुपये प्रति माह की दर से सुविधा राशि/किराया का भुगतान करेगा।

न्यायालय ने डीडीए को सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट के मालिकों/रहने वालों को सुविधा राशि या किराया देना जारी रखने का भी निर्देश दिया, जब तक कि पुनर्निर्मित फ्लैटों का कब्जा उन्हें नहीं सौंप दिया जाता।

केस टाइटलः विश्वजीत सिंह और अन्य बनाम श्री सुभाषिश पांडा और अन्य संबंधित मामले

आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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