दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रेडमार्क उल्लंघन के मुकदमे में कनाडाई बेसबॉल टीम टोरंटो ब्लू जेज़ की आईपी होल्डिंग कंपनी को राहत दी

Update: 2025-07-30 07:10 GMT

टोरंटो स्थित कनाडाई पेशेवर बेसबॉल टीम ब्लू जेज़ की वैश्विक साख को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने भारत में साझेदारी फर्म के पक्ष में रजिस्टर ब्लू-जे ट्रेडमार्क को रद्द करने का आदेश दिया।

मेजर लीग बेसबॉल की आईपीआर होल्डिंग कंपनी प्रतिवादी-फर्म द्वारा निर्मित परिधानों पर भ्रामक रूप से समान ट्रेडमार्क के उपयोग से व्यथित थी।

राहत प्रदान करते हुए जस्टिस सौरभ बनर्जी ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा ब्लू जेज़ ट्रेडमार्क को अपनाने के 22 साल बाद प्रतिवादी द्वारा विवादित ट्रेडमार्क को अपनाने का उद्देश्य दुर्भावना से दूषित था।

पीठ ने टिप्पणी की,

"ट्रेडमार्क को अपनाने की परिस्थितियां अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं और जहां ट्रेडमार्क को अपनाना ही बेईमानी के इरादे से दूषित हो, वहां कोई भी अनुवर्ती उपयोगकर्ता या बिक्री की मात्रा बेईमानी के दोषों को दूर नहीं कर सकती यदि किसी ट्रेडमार्क को अपनाने का 'उद्देश्य' संदिग्ध पाया जाता है तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ट्रेडमार्क का पंजीकरण 'दुर्भावना' से दूषित है और इसे ट्रेडमार्क रजिस्टर से हटाया जा सकता है।"

वर्तमान मामले में यह ध्यान दिया गया कि शुरू में प्रतिवादी ने दावा किया कि उसने इसी नाम के उत्तरी अमेरिकी पक्षी से प्रेरणा लेकर विवादित चिह्न को अपनाया था। बाद में यह एक और कहानी के साथ सामने आया जिससे न्यायालय के मन में एक विश्वसनीय संदेह पैदा हो गया।

न्यायालय ने कहा,

"प्रथम दृष्टया, यह एक बाद का विचार प्रतीत होता है, क्योंकि प्रतिवादी नंबर 1 और 2, विवादित चिह्न 'ब्लू-जे' को अपनाने के लिए कोई ठोस और ठोस कारण/औचित्य प्रस्तुत करने में विफल रहे। यह मुख्यतः प्रतिवादी नंबर 1 और 2 के याचिकाकर्ता से जुड़ी विश्वव्यापी प्रतिष्ठा और साख को हड़पने और उसका लाभ उठाने के दुर्भावनापूर्ण और बेईमान इरादों को दर्शाता है।"

सुनवाई के दौरान प्रतिवादी ने यह तर्क देने का प्रयास किया कि ब्लू जेज़ चिह्नों के संबंध में याचिकाकर्ता द्वारा दावा की गई कोई भी साख केवल अमेरिका और कनाडा तक ही सीमित है। भारतीय उपभोक्ताओं के बीच इसकी प्रतिष्ठा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि बेसबॉल भारत में लोकप्रिय नहीं है।

न्यायालय का मत था कि याचिकाकर्ता का ट्रेडमार्क उसकी वेबसाइटों पर मौजूद है जो वर्ष 1996 से भारत में उपलब्ध हैं।

न्यायालय ने कहा,

"ये तथ्य याचिकाकर्ता के लिए भारत में 'उपयोग' स्थापित करने के लिए पर्याप्त हैं, जो वास्तविक/भौतिक होना आवश्यक नहीं है।"

याचिका स्वीकार कर ली गई।

केस टाइटल: मेजर लीग बेसबॉल प्रॉपर्टीज इंक बनाम मनीष विजय एवं अन्य।

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