दिल्ली हाइकोर्ट ने PMLA Act की धारा 66 की आधिकारिक व्याख्या की मांग करने वाली जनहित याचिका पर विचार करने से किया इनकार

Update: 2024-04-29 08:34 GMT

दिल्ली हाइकोर्ट ने सोमवार को PMLA Act की धारा 66 की आधिकारिक व्याख्या की मांग करने वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया कि ED पुलिस और CBI पर एजेंसियों के साथ साझा की गई जानकारी के आधार पर अपराध के तहत एफआईआर दर्ज करने का दबाव बना रहा है।

एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं अशोक कुमार सिंह और अन्य व्यक्ति को उचित कार्यवाही में उचित अदालतों के समक्ष व्याख्या का मुद्दा उठाने की स्वतंत्रता दी।

एक्ट की धारा 66 ED को कुछ शर्तों की संतुष्टि के अधीन विभिन्न सरकारी एजेंसियों के साथ जानकारी साझा करने का अधिकार देती है।

शुरुआत में ED की ओर से पेश एडवोकेट ज़ोहेब हुसैन ने कहा कि जनहित याचिका निजी हित याचिका है और वकील अपने मुवक्किल के पक्ष में दलील दे रहे हैं, जिन्होंने सिंगल जज के समक्ष याचिका दायर की, जिसमें यही सवाल उठाया गया।

एडवोकेट ज़ोहेब ने कहा,

"क्या कोई वकील अपने मुवक्किल की ओर से लंबित कार्यवाही में निजी हित की वकालत करते हुए, जहां मुद्दा आम है, जनहित याचिका के रूप में मुद्दा उठा सकता है? यह केवल निजी हित के आधार पर बार द्वारा मारा गया। यह माना गया कि निजी हित की वकालत करने वाली जनहित याचिका को कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग घोषित किया जाना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि जनहित याचिका एकल न्यायाधीश के समक्ष लंबित कार्यवाही को आगे बढ़ाने का प्रयास है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि केवल इसलिए कि कोई वकील अपने मुवक्किल के मुद्दे को अदालत के समक्ष उठाता है, उसे जनहित याचिका में समान मुद्दे को उठाने से नहीं रोका जा सकता।

वकील ने प्रार्थना की कि PMLA Act की धारा 66 की व्याख्या के मुद्दे को आधिकारिक रूप से सुलझाया जाए और स्पष्ट किया जाए कि इस मामले में उनका कोई व्यक्तिगत हित नहीं है।

खंडपीठ ने टिप्पणी की कि इस मुद्दे पर सिंगल जज द्वारा निर्णय लिया जा सकता है, क्योंकि प्रावधान की संवैधानिक वैधता को कोई चुनौती नहीं दी गई है। इसलिए इसे खंडपीठ द्वारा तय नहीं किया जा सकता।

अदालत ने कहा,

"इसे कानून के अनुसार किया जाना चाहिए। इस मुद्दे पर सिंगल जज द्वारा निर्णय लिया जाएगा।"

खंडपीठ ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि आपराधिक मामले में पक्षकारों के लिए उचित समय पर उचित मंच के समक्ष सभी प्रश्न उठाने और कार्यवाही को चुनौती देने की स्वतंत्रता है न कि तीसरे पक्ष के रूप में जनहित याचिका की आड़ में।

अदालत ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा,

“पक्षकारों को उचित कार्यवाही में उचित अदालतों के समक्ष (पीएमएलए की धारा 66 की) व्याख्या के मुद्दे को उठाने की स्वतंत्रता है।"

जनहित याचिका में आरोप लगाया गया कि एजेंसियों पर उसके द्वारा साझा की गई जानकारी के आधार पर एफआईआर दर्ज करने का दबाव बनाकर ED शिकायतकर्ता गवाह और पीड़ित के रूप में काम कर रहा है।

इसमें आगे आरोप लगाया गया कि ED अपने एफआईआर में नामित उन्हीं आरोपियों के खिलाफ जांचकर्ता के रूप में काम कर रहा है।

केस टाइटल- अशोक कुमार सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य

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