दिल्ली हाईकोर्ट ने बिजली के करंट से मरने वाले मोरों की सुरक्षा के लिए नियम बनाने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की

Update: 2025-04-09 07:50 GMT
दिल्ली हाईकोर्ट ने बिजली के करंट से मरने वाले मोरों की सुरक्षा के लिए नियम बनाने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार (9 अप्रैल) को राष्ट्रीय राजधानी में बिजली के करंट से मरने वाले राष्ट्रीय पक्षी मोरों की सुरक्षा के लिए नियम बनाने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की।

चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने सेव इंडिया फाउंडेशन द्वारा दायर याचिका खारिज की और कहा कि मांगी गई राहत के लिए उचित अधिकारियों से संपर्क किया जाना चाहिए, क्योंकि न्यायालय कानून नहीं बना सकता।

याचिकाकर्ता के वकील ने न्यायालय को बताया कि हाल ही में 03 अप्रैल को वन एवं वन्यजीव विभाग दिल्ली सरकार के ऊर्जा सचिव और अन्य अधिकारियों के समक्ष एक अभ्यावेदन दिया गया।

इस पर खंडपीठ ने वकील से सवाल किया कि याचिकाकर्ता केवल छह दिन पहले किए गए अभ्यावेदन पर अधिकारियों के जवाब का इंतजार किए बिना याचिका कैसे दायर कर सकता है।

न्यायालय ने वकील से अधिकारियों की प्रतिक्रिया या उनके द्वारा कोई प्रतिक्रिया न देने की प्रतीक्षा करने को भी कहा। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि कानून में ऐसी कोई धारणा नहीं है कि कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी।

चीफ जस्टिस ने मौखिक रूप से कहा,

"हम ऐसे मामलों को प्रोत्साहित नहीं करते। हमें आपके मामले से सहानुभूति हो सकती है, लेकिन हम इस तरह की याचिका दायर करने की सराहना नहीं कर सकते।"

न्यायाधीश ने एडवोकेट से यह भी कहा कि न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से पहले यह सुनिश्चित करें कि उचित अधिकारियों से संपर्क किया जाए जिनके पास उचित कर्तव्य हैं।

न्यायालय ने कहा,

"आप लोग सोचते हैं कि हमारे पास कोई जादू की छड़ी है। कृपया समझने की कोशिश करें। आपकी सभी शिकायतों को दूर करने के लिए पूरी व्यवस्था है। उनकी ओर से विफलता की स्थिति में ही आप न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं।"

जब याचिकाकर्ता के एडवोकेट ने कहा कि वह बिजली के झटके से मरने वाले मोरों की सुरक्षा के लिए नियमन की मांग कर रहे हैं तो न्यायालय ने मौखिक रूप से कहा,

"यदि कोई कानून नहीं है तो विधायिका का दरवाजा खटखटाएं। यह किस तरह का तर्क है? हम कानून नहीं बना सकते। हम कोई नियमन नहीं बना सकते।"

कुछ डिस्कॉम की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि उनके समक्ष ऐसा कोई अभ्यावेदन नहीं किया गया।

अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि अधिकारियों के समक्ष अभ्यावेदन 03 अप्रैल को ही किया गया और याचिका बमुश्किल एक सप्ताह के भीतर दायर की गई।

अदालत ने कहा,

"हम इस याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं। याचिका खारिज की जाती है।"

पीठ ने याचिकाकर्ता को एक पखवाड़े के भीतर कानून के तहत उपलब्ध सभी दलीलों को लेकर एक विस्तृत अभ्यावेदन देकर अधिकारियों से संपर्क करने की अनुमति दी।

अदालत ने कहा कि जब ऐसा अभ्यावेदन किया जाता है तो उस पर विचार किया जाना चाहिए और निर्णय लिया जाना चाहिए तथा अधिकारियों द्वारा उचित कार्रवाई की जानी चाहिए।

याचिका में आरोप लगाया गया कि मोरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किसी भी SOP प्रोटोकॉल या नियमों के अभाव में बिजली के खंभों पर करंट लगने से बचाने में संबंधित अधिकारियों की निष्क्रियता थी।

याचिका में कहा गया,

"मोर राष्ट्रीय पक्षी है लेकिन खुले बिजली के तारों, खंभों के कारण उसकी मौत हो रही है। राष्ट्रीय पक्षी की सुरक्षा के लिए कोई नियम, कानून नहीं है इसलिए अधिकारी एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं।"

इसमें आगे कहा गया,

याचिकाकर्ता ने ठोस काम किया और दिल्ली में बिजली के झटके से राष्ट्रीय पक्षी की मौत से संबंधित डेटा एकत्र किया और देश के गौरव की सुरक्षा के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देश जारी करने में अदालत की सहभागिता की मांग की।”

टाइटल: सेव इंडिया फाउंडेशन बनाम वन एवं वन्यजीव विभाग और आदेश

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