केवल सरकारी अनुशंसा से व्यक्ति को अपनी पसंद के क्षेत्र में DDA प्लॉट का दावा करने का अधिकार नहीं मिलता, आवंटन उपलब्धता के अधीन: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि कोई व्यक्ति अपनी पसंद के किसी विशेष क्षेत्र में किसी विशेष भूखंड पर अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकता भले ही किसी सरकारी प्राधिकरण या एजेंसी द्वारा व्यक्ति को वैकल्पिक भूमि के आवंटन के लिए अनुशंसा की गई हो।
जस्टिस धर्मेश शर्मा की एकल न्यायाधीश पीठ भूमि और भवन विभाग के अनुशंसा पत्र के आधार पर 400 वर्ग गज भूमि के आवंटन के लिए याचिकाकर्ता की प्रार्थना पर विचार कर रही थी।
मामले के तथ्य यह हैं कि नई दिल्ली के नांगली जालिब गांव में याचिकाकर्ता के पूर्ववर्ती हितधारक की भूमि अधिग्रहित की गई। हितधारक ने वैकल्पिक भूखंड के आवंटन के लिए आवेदन किया। हालांकि जब उनका आवेदन लंबित था, तब उनकी मृत्यु हो गई। भूमि एवं भवन विभाग ने दिनांक 03.10.2017 को अपने अनुशंसा पत्र में DDA के आयुक्त (भूमि) को पत्र लिखकर नंगली जालिब गांव में भूमि अधिग्रहण के मद्देनजर याचिकाकर्ता को 400 वर्ग गज भूमि आवंटित करने के लिए कहा था।
याचिकाकर्ता को DDA द्वारा द्वारका में वैकल्पिक भूखंड आवंटित किया गया। हालांकि उनकी शिकायत यह है कि उन्हें आवंटित भूमि 400 वर्ग गज नहीं है। उनका दावा है कि DDA कानूनी रूप से उन्हें 400 वर्ग गज भूमि का वैकल्पिक आवंटन प्रदान करने के लिए बाध्य है।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (विकसित नजूल भूमि का निपटान) नियम, 1981, विशेष रूप से नियम 6, जो DDA द्वारा पूर्व निर्धारित दरों पर नजूल भूमि के आवंटन का प्रावधान करता है, के मद्देनजर DDA उन्हें वैकल्पिक भूखंड प्रदान करने के लिए बाध्य है। यह तर्क दिया गया कि DDA द्वारका में या किसी अन्य स्थान पर उसके लिए आवश्यक आकार की भूमि का चयन करने में विफल रहा, यदि द्वारका में भूमि उपलब्ध नहीं थी।
दूसरी ओर DDA के वकील ने तर्क दिया कि दिनांक 03.10.2017 के अनुशंसा पत्र ने याचिकाकर्ता को भूमि का वैकल्पिक भूखंड आवंटित करने के लिए उस पर कोई कानूनी दायित्व नहीं बनाया। यह तर्क दिया गया कि द्वारका में भूखंड याचिकाकर्ता को आवंटित किया जा सकता है, क्योंकि भूखंड पूरी तरह से भरे हुए थे और उनका प्रीमियम उच्च था।
हाईकोर्ट ने रामानंद बनाम भारत संघ और अन्य, 1993 के मामले का उल्लेख किया, जहां हाईकोर्ट की फुल बेंच ने फैसला किया कि क्या किसी व्यक्ति की भूमि DDA द्वारा अधिग्रहित की गई, उसे आवासीय उद्देश्यों के लिए भूमि के वैकल्पिक भूखंड के आवंटन का निहित अधिकार है।
न्यायालय ने माना कि दिल्ली विकास अधिनियम,1957 और नजूल नियम व्यक्तियों को नजूल और अन्य भूमि पर वैकल्पिक आवास की मांग करने का कोई अधिकार नहीं देते हैं।
इस निर्णय का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि निष्कर्ष में यह माना गया कि किसी व्यक्ति को आवंटन के लिए दिल्ली प्रशासन द्वारा मात्र अनुशंसा करने से वैकल्पिक भूखंड के आवंटन के लिए कोई कानूनी प्रतिबद्धता नहीं होती। इस प्रकार, वर्तमान मामले में समान सादृश्य लागू करते हुए याचिकाकर्ता द्वारा दिनांक 03.10.2017 के पत्र पर भरोसा करना केवल अनुशंसात्मक प्रकृति का है। यह याचिकाकर्ता के पक्ष में कोई कानूनी अधिकार नहीं बनाता।
इसने आगे अमोलक राज बनाम भारत संघ (जेटी 2002 (10) एससी 86) के सुप्रीम कोर्ट के मामले का हवाला दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने पुष्टि की कि कोई व्यक्ति नजूल नियमों के तहत अधिकार के रूप में अपनी पसंद की भूमि के आवंटन का दावा नहीं कर सकता। यह देखा गया कि भले ही भूमि के आवंटन के लिए किसी सरकारी प्राधिकरण द्वारा कोई अनुशंसा की गई हो, यह DDA के पास भूखंड की उपलब्धता के अधीन होगा।
इस प्रकार हाईकोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता अधिकार के रूप में भूमि के वैकल्पिक भूखंड की मांग नहीं कर सकता। इसमें कहा गया कि अंतिम विश्लेषण में याचिकाकर्ता आवासीय उद्देश्यों के लिए भूमि के वैकल्पिक भूखंड का हकदार नहीं है। वास्तव में वह कुछ शर्तों के अधीन भूखंड के आवंटन के लिए पात्र था, आवासीय उद्देश्यों के लिए वैकल्पिक भूखंड के आवंटन का कोई अर्जित अधिकार नहीं है।
इस प्रकार न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल- राष्टर कुमार बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण और अन्य