दिल्ली हाईकोर्ट ने 6 वर्षीय बेटी के साथ बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार किया

Update: 2024-09-10 10:45 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले साल अगस्त में अपनी 6 वर्षीय बेटी के साथ बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार किया। कोर्ट ने यह रेखांकित किया कि बचपन में यौन शोषण के दीर्घकालिक प्रभाव कई बार असहनीय होते हैं।

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा,

“यौन उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न का कृत्य बच्चे को मानसिक आघात पहुंचाने की क्षमता रखता है। आने वाले वर्षों में उनकी विचार प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है। यह बच्चे के सामान्य सामाजिक विकास में बाधा डाल सकता है और विभिन्न मनोसामाजिक समस्याओं को जन्म दे सकता है, जिसके लिए मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप की आवश्यकता हो सकती है।”

अदालत ने कहा कि अपनी ही बेटी के साथ बलात्कार करने के आरोपी व्यक्ति को इस समय जमानत देने से उस उद्देश्य को झटका लग सकता है, जिसे POCSO Act बनाते समय ध्यान में रखा गया।

मां की शिकायत पर FIR दर्ज की गई। काउंसलिंग और मेडिकल जांच के बाद नाबालिग ने डॉक्टरों को बताया कि पिछले साल फरवरी से उसके पिता ने कई बार उसका यौन शोषण किया ।

नाबालिग के अनुसार वह व्यक्ति उसकी योनि, गुदा और मुंह में अपना गुप्तांग डालता था।

जमानत याचिका खारिज करते हुए अदालत ने पिता की इस दलील को खारिज कर दिया कि मां ने उनके बीच वैवाहिक कलह के कारण एफआईआर दर्ज कराई थी।

अदालत ने कहा,

"इस अदालत की राय में एक मां अपनी बेटी की जान को खतरे में नहीं डालेगी। उसे अदालत में मजिस्ट्रेट और वकीलों द्वारा जांच और पूछताछ का सामना नहीं करना पड़ेगा, केवल अपने पति से बदला लेने के लिए।"

यह देखते हुए कि पीड़िता का रुख सुसंगत था, अदालत ने कहा कि पिता के वकील द्वारा बताई गई विसंगतियां और सूक्ष्म विवरण परीक्षण का विषय होंगे।

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि बच्चे की भलाई पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए, जिसका मानसिक मानस कमजोर, संवेदनशील और विकासशील अवस्था में है। बचपन में यौन शोषण के दीर्घकालिक प्रभाव कई बार असहनीय होते हैं।

केस टाइटल- सबीब बनाम दिल्ली राज्य सरकार

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