कमाने की क्षमता और वास्तविक कमाई अलग-अलग चीज़: दिल्ली हाईकोर्ट ने MBA पास पत्नी को भरण-पोषण देने का फैसला बरकरार रखा

Update: 2025-07-24 10:30 GMT

यह कहते हुए कि कमाने की क्षमता और वास्तविक कमाई दो अलग-अलग चीज़ें हैं, दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक MBA पास पत्नी को भरण-पोषण देने का फैसला बरकरार रखा।

ऐसा करते हुए जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस रेणु भटनागर की खंडपीठ ने कहा कि जब दंपति अलग हुए थे तब उनका बच्चा बहुत छोटा था और बच्चे की देखभाल के लिए पत्नी ने अपनी नौकरी छोड़ दी होगी।

जजों ने कहा,

"एक पत्नी पारिवारिक परिस्थितियों या बच्चे की देखभाल के लिए अपनी नौकरी छोड़ सकती है। समय बीतने के साथ अनुभव की कमी या अन्य कारणों से उसे उपयुक्त रोज़गार नहीं मिल पाता। ऐसी परिस्थितियों में केवल कमाने की क्षमता के आधार पर उसे अपने और बच्चे के लिए भरण-पोषण देने से इनकार नहीं किया जा सकता।"

न्यायालय अपीलकर्ता-पति द्वारा फैमिली कोर्ट के उस आदेश के विरुद्ध दायर अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें पत्नी के लिए 10,000 और उनकी नाबालिग बेटी के लिए 15,000 प्रति माह भरण-पोषण का भुगतान करने का आदेश दिया गया था।

पति ने दावा किया कि प्रतिवादी-पत्नी के पास बी.टेक और एमबीए की डिग्री है और वह शादी से पहले लगभग 3 लाख प्रति वर्ष कमाती है और भरण-पोषण याचिका दायर करने के बाद भी उसकी अच्छी-खासी कमाई जारी रही।

उसने आगे दलील दी कि उसने अपनी भरण-पोषण याचिका में झूठा दावा किया है कि वह पिछले 2 वर्षों से कमाई नहीं कर रही है।

हाईकोर्ट ने कहा कि पति फैमिली कोर्ट के समक्ष यह साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं कर सका कि पत्नी वर्तमान में काम कर रही है।

न्यायालय ने टिप्पणी की,

"प्रतिवादी नंबर 1 अच्छी तरह से योग्य है, यह एक स्वीकृत तथ्य है कि दोनों पक्ष तब अलग हो गए थे जब बच्चा बहुत छोटा था। इसलिए बच्चे की देखभाल के लिए प्रतिवादी नंबर 1 ने अपनी पिछली नौकरी छोड़ दी होगी।"

न्यायालय ने यह भी कहा कि पति स्वेच्छा से अपनी मां को 35,000 रुपये का भरण-पोषण भत्ता दे रहा था, इसलिए उसे अपनी पत्नी और बच्चे को दी गई राशि को अत्यधिक बताकर उस पर आपत्ति नहीं करनी चाहिए थी।

न्यायालय ने आगे दोहराया कि किसी भी व्यक्तिग लोन या सोसाइटी लोन, या किसी घर की खरीद या किसी घर में निवेश के लिए भरण-पोषण के मामलों में कोई छूट नहीं दी जा सकती, क्योंकि ये लोन पति द्वारा अपने लाभ के लिए लिए जा रहे हैं।

अपील खारिज कर दी गई।

केस टाइटल: एसकेडी बनाम एमजी एवं अन्य।

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