लोक सेवक को सुने बिना भ्रष्टाचार पर प्रथम दृष्टया राय नहीं बना सकता लोकपाल: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-12-03 07:05 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद में भर्ती और पदोन्नति से जुड़ी कथित अनियमितताओं की जांच का आदेश रद्द करते हुए कहा कि लोकपाल किसी भी लोक सेवक को नोटिस देकर सुनवाई का अवसर दिए बिना भ्रष्टाचार को लेकर प्रथम दृष्टया राय नहीं बना सकता। अदालत ने माना कि लोकपाल ने इस प्रकरण में पहले ही मामले पर पूर्वाग्रहपूर्ण निष्कर्ष निकाल लिया, जो कानून के विपरीत है।

जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 की धारा 20(3) का हवाला देते हुए कहा कि प्रक्रिया स्पष्ट है कि पहले संबंधित लोक सेवक को सुना जाना अनिवार्य है। उसके बाद ही यह निर्णय लिया जाना चाहिए कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं तथा फिर जांच के निर्देश दिए जा सकते हैं।

अदालत ने पाया कि वर्तमान मामले में लोकपाल ने तथ्यों और आरोपों के गुण-दोष पर विस्तार से टिप्पणी करते हुए यह कह दिया कि मामले में गहन जांच आवश्यक है ताकि कथित अवैध गतिविधियों को उजागर किया जा सके, जो भ्रष्टाचार की सीमा पर प्रतीत होती हैं। खंडपीठ ने कहा कि इस तरह की भाषा न तो अस्थायी है और न ही खोजपरक बल्कि यह साफ तौर पर दर्शाती है कि सुनवाई से पहले ही प्रथम दृष्टया राय बना ली गई।

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि लोकपाल ने जिन लोक सेवकों के खिलाफ कार्यवाही की उन्हें सुनवाई का नोटिस तब जारी किया गया, जब पहले ही यह दर्ज कर लिया गया कि उनके विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला बनता है। अदालत ने इस प्रक्रिया को अनुचित बताते हुए कहा कि धारा 20(3) केवल संदेह या आशंका के आधार पर सक्रिय नहीं हो सकती चाहे संदेह कितना भी गंभीर क्यों न हो। प्रथम दृष्टया निष्कर्ष संबंधित लोक सेवकों को सुनने के बाद ही विधिसम्मत रूप से निकाला जाना चाहिए।

खंडपीठ ने अपने हालिया फैसले मुझाहिद अली खान बनाम लोकपाल ऑफ इंडिया का भी उल्लेख किया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि किसी लोक सेवक को सुने बिना उसके खिलाफ जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता। अदालत ने कहा कि लोकपाल को कानून के तहत व्यापक जांच और पड़ताल की शक्तियां प्राप्त हैं, जिनके प्रयोग से संबंधित लोक सेवक के खिलाफ गंभीर नागरिक प्रतिष्ठात्मक और संभावित आपराधिक परिणाम हो सकते हैं। इसी कारण अधिनियम में कई स्तरों पर अनिवार्य सुरक्षा प्रावधान शामिल किए गए ताकि निष्पक्षता, पारदर्शिता और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित हो सके।

इन सभी कारणों के आधार पर दिल्ली हाईकोर्ट ने लोकपाल के जांच आदेश और उससे जुड़े सभी नोटिसों को रद्द कर दिया।

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