दिल्ली हाईकोर्ट जज ने यासीन मलिक के लिए मृत्युदंड की मांग करने वाली अपील पर सुनवाई से खुद को अलग किया

Update: 2024-07-11 08:26 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस अमित शर्मा ने गुरुवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक के लिए मृत्युदंड की मांग करने वाली अपील पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। यासीन को टेरर फंडिंग मामले में दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

जस्टिस शर्मा को 2010 में NIA के लिए विशेष लोक अभियोजक (SPP) के रूप में नियुक्त किया गया था। SPP के रूप में न्यायाधीश ने अनुसूचित आतंकवादी संगठनों से जुड़े राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित अभियोजन को संभाला।

जस्टिस शर्मा के परिचय में हाईकोर्ट की वेबसाइट पर लिखा,

"विशेष लोक अभियोजक के रूप में वह NIA की ओर से प्रत्यर्पण कार्यवाही में भी सक्रिय रूप से शामिल थे।"

यह मामला जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया।

जस्टिस शर्मा के मामले से अलग होने के बाद अदालत ने एक्टिंग चीफ जस्टिस के आदेश के अधीन मामले को 09 अगस्त को अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया। पिछले साल पारित आदेश के अनुसार मलिक को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (VC) के माध्यम से तिहाड़ जेल से अदालत के समक्ष पेश किया गया।

इस साल की शुरुआत में सिंगल जज ने तिहाड़ जेल अधीक्षक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि मलिक को जेल अस्पताल में उचित मेडिकल उपचार दिया जाए। मलिक ने याचिका दायर कर केंद्र सरकार और जेल अधिकारियों को उचित निर्देश देने की मांग की थी कि उन्हें आवश्यक मेडिकल उपचार के लिए एम्स या किसी अन्य अस्पताल में शारीरिक रूप से रेफर किया जाए, क्योंकि वह हृदय और गुर्दे से संबंधित बीमारियों से पीड़ित हैं।

मई 2022 में ट्रायल कोर्ट ने मलिक को मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। मलिक ने मामले में दोषी होने की दलील दी थी और अपने खिलाफ आरोपों का विरोध नहीं किया था। आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए स्पेशल जज ने कहा कि अपराध सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दुर्लभतम मामलों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता।

न्यायाधीश ने मलिक की इस दलील को भी खारिज कर दिया था कि उन्होंने अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत का पालन किया था और शांतिपूर्ण अहिंसक संघर्ष का नेतृत्व कर रहे थे।

अदालत ने मार्च 2022 में मामले में मलिक और कई अन्य के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत आरोप तय किए थे। जिन अन्य लोगों पर आरोप लगाए गए और जिन पर मुकदमा चलाने का दावा किया गया, उनमें हाफिज मुहम्मद सईद, शब्बीर अहमद शाह, हिजबुल मुजाहिदीन प्रमुख सलाहुद्दीन, राशिद इंजीनियर, जहूर अहमद शाह वटाली, शाहिद-उल-इस्लाम, अल्ताफ अहमद शाह उर्फ ​​फंटूश, नईम खान, फारूक अहमद डार उर्फ ​​बिट्टा कराटे शामिल थे।

हालांकि अदालत ने कामरान यूसुफ, जावेद अहमद भट्ट और सईदा आसिया फिरदौस अंद्राबी नामक तीन लोगों को बरी कर दिया था।

केस टाइटल- NIA बनाम यासीन मलिक

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