
दिल्ली हाईकोर्ट ने कस्टम विभाग को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि वह कस्टम्स एक्ट, 1962 के तहत असेसी (करदाता) को नोटिस और आदेश ईमेल के माध्यम से भेजने के अपने बार-बार दिए गए निर्देशों का कड़ाई से पालन करे।
अधिनियम के किसी भी उल्लंघन से संबंधित पत्राचार डाक के माध्यम से किया जाता था। हालांकि, तकनीक के विकास और देरी से बचने के लिए, कोर्ट ने "बोनांजा एंटरप्राइज़ेज बनाम असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ कस्टम्स एवं अन्य (2024)" मामले में विभाग को निर्देश दिया था कि वह स्पीड पोस्ट, रजिस्टर्ड पोस्ट या कूरियर के साथ-साथ ईमेल के माध्यम से भी नोटिस भेजे।
कोर्ट ने कहा था कि "पक्षकारों को अनुचित सेवा से बचाने और एकतरफा कार्यवाही रोकने के लिए यह आवश्यक है कि नोटिस, संचार और आदेश पारंपरिक तरीकों के साथ-साथ ईमेल और कॉमन पोर्टल पर भी उपलब्ध कराए जाएं।"
हालांकि, हाईकोर्ट को एक बार फिर सोने की छड़ों की जब्ती के एक मामले का सामना करना पड़ा, जहां याचिकाकर्ता-असेसी ने तर्क दिया कि उसे कोई कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया गया था।
याचिकाकर्ता ने 174 ग्राम वजन की अपनी सोने की छड़ें जारी करने की मांग की थी, जिन्हें कस्टम विभाग ने नवंबर 2023 में सऊदी अरब से वापसी के दौरान जब्त कर लिया था।
विभाग ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि मामले में 'पूर्ण जब्ती' और जुर्माना लगाने का अंतिम आदेश पहले ही पारित किया जा चुका है। विभाग ने यह भी दावा किया कि यह आदेश स्पीड पोस्ट के माध्यम से याचिकाकर्ता को भेजा गया था।
वहीं, याचिकाकर्ता का कहना था कि उसे यह आदेश कभी प्राप्त नहीं हुआ।
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस रजनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने टिप्पणी की,"कस्टम विभाग को बार-बार निर्देश दिया गया है कि कारण बताओ नोटिस, पत्राचार और आदेश ईमेल के माध्यम से भी भेजे जाएं… यह अपेक्षित है कि कस्टम विभाग इन निर्देशों का कस्टम्स एक्ट, 1962 की धारा 153 के तहत पालन करेगा।"
कस्टम्स एक्ट की धारा 153(c) विभाग को ईमेल के माध्यम से नोटिस देने का अधिकार प्रदान करती है।
इसके बाद, अदालत ने याचिका का निपटारा करते हुए याचिकाकर्ता को कानून के अनुसार अंतिम आदेश के खिलाफ उपलब्ध कानूनी उपाय अपनाने का समय दिया।