PMLA Act की धारा 50 के तहत सह-आरोपी का इकबालिया बयान ठोस सबूत नहीं, इसका इस्तेमाल केवल पुष्टि के लिए किया जा सकता है: हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि धन-शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA Act) की धारा 50 के तहत सह-अभियुक्त का इकबालिया बयान कोई ठोस सबूत नहीं। इसका उपयोग केवल अपराध के निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए न्यायालय को आश्वासन देने के लिए अन्य सबूतों के समर्थन में पुष्टि के लिए किया जा सकता है।
जस्टिस विकास महाजन ने दोहराया कि PMLA Act की धारा 50 के तहत दर्ज किए गए गवाहों के बयानों की सुनवाई के दौरान केवल ट्रायल कोर्ट द्वारा सावधानीपूर्वक सराहना की जानी चाहिए और जमानत के चरण में लघु सुनवाई नहीं हो सकती।
हालांकि, अदालत ने कहा कि जब ऐसे बयान जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री का हिस्सा होते हैं तो निश्चित रूप से उन्हें जमानत आवेदन पर विचार करने के चरण में देखा जा सकता है, भले ही यह सुनिश्चित करने के सीमित उद्देश्य के लिए कि क्या व्यापक संभावनाएं हैं, या विश्वास करने के कारण हैं। आवेदक दोषी नहीं है।
अदालत ने कहा,
“मतलब, PMLA Act की धारा 50 के तहत बयानों को उनके अंकित मूल्य पर लिया जाना चाहिए, लेकिन अगर ऐसा कोई भी बयान स्पष्ट रूप से आत्म-विरोधाभासी है या एक ही गवाह के दो अलग-अलग बयान भौतिक पहलुओं पर एक-दूसरे के साथ असंगत हैं तो इस तरह के विरोधाभास और विसंगतियां उन कारकों में से एक होंगी, जो व्यापक संभावनाओं का पता लगाते समय जमानत आवेदक के लाभ को सुनिश्चित करेंगी। हालांकि निस्संदेह गवाहों के बयान के संभावित मूल्य और उनकी विश्वसनीयता का विश्लेषण किया जाएगा। ट्रायल कोर्ट केवल आवेदक के अपराध के बारे में निर्णायक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए ट्रायल के चरण में है।”
अदालत ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी संजय जैन को जमानत देते हुए ये टिप्पणियां कीं।
कथित भ्रष्टाचार और उर्वरक कच्चे माल का आयात करके सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने के आरोप में इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर को-ऑपरेटिव (इफको) लिमिटेड के सीईओ और एमडी और कई अन्य लोगों के खिलाफ CBI की एफआईआर के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मामला दर्ज किया। ED ने आरोप लगाया कि जैन को अपराध से प्राप्त धन दो मार्गों से प्राप्त हुआ।
जैन को जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया अपराध की प्रकृति कमजोर प्रतीत होती है और वह इसका लाभ पाने का हकदार है।
अदालत जैन के वकील की इस दलील से सहमत हुई कि सह-अभियुक्तों की गिरफ्तारी न होना प्रासंगिक कारक है, जिसे जैन को जमानत की रियायत देने के लिए अन्य आसपास के कारकों के अलावा ध्यान में रखा जा सकता है।
जस्टिस महाजन ने कहा कि जैन भी इस तथ्य का लाभ पाने के हकदार हैं कि मुख्य आरोपी के साथ-साथ कुछ अन्य आरोपियों को पहले ही जमानत मिल चुकी है।
अदालत ने आगे कहा,
“तदनुसार, उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर और रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर यह न्यायालय संतुष्ट है कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि याचिकाकर्ता अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर रहते हुए उसके कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।”
केस टाइटल: संजय जैन बनाम प्रवर्तन निदेशालय