केवल पहले से लिखित नियम व शर्तों के आधार पर इंश्योरेंस पॉलिसी को खारिज किया जा सकता है: जिला आयोग कौशांबी

Update: 2023-12-19 10:26 GMT

जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, कौशांबी (उत्तर प्रदेश) के अध्यक्ष श्री लाल चंद्र (अध्यक्ष) और संचिता श्रीवास्तव (सदस्य) की खांडपीठ ने आदित्य बिड़ला हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी को शिकायतकर्ता के वैध दावे को खारिज करने के लिए उत्तरदायी ठहराया, जो अल्सर से पीड़ित था और उसका इलाज मेदांता अस्पताल, लखनऊ में किया गया था। जिला आयोग ने कहा कि बीमा कंपनी पॉलिसी कराते समय शिकायतकर्ता को सभी नियम व शर्तों के बारे में सूचित नहीं कि थी। इसके अलावा, शिकायतकर्ता ने किसी भी दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं किए, जिसमें नियम व शर्तों का उल्लेख किया गया हो, जिसके आधार पर बीमा कंपनी दावे को खारिज कर रही थी। ऐसे में, बाद के चरण में, यह शिकायतकर्ता को ऐसी शर्तों के साथ बाध्य नहीं कर सकता।

पूरा मामला:

श्री सतीश कुमार (शिकायतकर्ता) ने आदित्य बिड़ला हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड से 'एक्टिव हेल्थ' इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदी थी। पॉलिसी लेने के लगभग 9 महीने बाद, शिकायतकर्ता को अल्सर कि बीमारी हुई। इस बीमारी के कारण, उन्हें मेदांता अस्पताल, लखनऊ में भर्ती कराया गया। उन्होंने अस्पताल में पूरे खर्च के लिए कुल 2,14,000 रुपये की राशि खर्च की और इसे चेक द्वारा भुगतान किया। इसके बाद, उन्होंने बीमा कंपनी को सभी संबंधित रसीदों के साथ दावा प्रस्तुत किया। लेकिन, इसे अस्वीकार कर दिया गया। शिकायतकर्ता ने कई बार बीमा कंपनी के प्रतिनिधियों से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन बीमा कंपनी दावे को स्वीकार करने के लिए तैयार नही थी। परेशान होकर, शिकायतकर्ता ने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, कौशांबी, उत्तर प्रदेश में उपभोक्ता शिकायत दर्ज कराई।

बीमा कंपनी ने दलील दी कि पॉलिसी के नियम व शर्तों के अनुसार, पॉलिसी का लाभ उठाने के बाद पुरानी बीमारियों के लिए 24 महीने की प्रतीक्षा अवधि (waiting period) है। इसका मतलब, शिकायतकर्ता राशि का दावा करने में तभी सक्षम होता यदि पॉलिसी का लाभ उठाने के 2 साल बाद अल्सर का इलाज किया गया होता।

आयोग की टिप्पणियां:

जिला आयोग ने दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों का अवलोकन किया। यह पाया गया कि बीमा पॉलिसी करते समय, शिकायतकर्ता को ऐसे किसी भी नियम और शर्तों के बारे में सूचित नहीं किया गया था जो उसे पॉलिसी की शुरुआत के 24 महीने बाद ही राशि का हकदार बनाता है। जिला आयोग ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता ने ऐसे किसी अनुबंध पर हस्ताक्षर नहीं किए जिसमें ऐसे किसी खंड का उल्लेख किया गया हो। इसलिए, यह माना गया कि, बीमा कंपनी शिकायतकर्ता द्वारा दावा की गई राशि को अस्वीकार करने के लिए ऐसे किसी नियम व शर्तों का हवाला नहीं दे सकती है।

नतीजतन, जिला आयोग ने बीमा कंपनी को अस्पताल के खर्च के लिए 2,14,000 रुपये का भुगतान करने, मुआवजे के रूप में 5,000 रुपये और कानूनी लागत (लिटिगेशन चार्ज) के रूप में 3,000 रुपये शिकायतकर्ता को देने का आदेश दिया।

केस टाइटल: सतीश कुमार बनाम शाखा प्रमुख, आदित्य बिड़ला हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड

केस नंबर: शिकायत संख्या 99/2023

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