S. 216 CrPC | आरोपों में बदलाव या वृद्धि न्यायालय की संतुष्टि के आधार पर होनी चाहिए, न कि पक्ष के आवेदन के आधार पर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
अभियोजन पक्ष द्वारा अभियुक्त के विरुद्ध अतिरिक्त आरोप तय करने के लिए दायर आवेदन खारिज करते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी पक्ष द्वारा दायर आवेदन के आधार पर धारा 216 CrPc के तहत आरोपों को जोड़ना, बदलना या संशोधित करना ट्रायल कोर्ट के लिए अस्वीकार्य होगा।
जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की पीठ ने कहा कि केवल ट्रायल कोर्ट ही रिकॉर्ड पर रखी गई संपूर्ण सामग्री का अवलोकन करने के बाद अपनी संतुष्टि के आधार पर आरोपों में बदलाव जोड़ना या संशोधन कर सकता है।
अदालत ने कहा,
"इसमें कोई संदेह नहीं कि ट्रायल कोर्ट के पास निर्णय सुनाए जाने से पहले किसी भी समय आरोप में परिवर्तन, संशोधन या नया आरोप तय करने की पर्याप्त शक्ति है, लेकिन अभियोजन पक्ष द्वारा दायर आवेदन पर नहीं यह स्पष्ट है कि धारा 216 सीआरपीसी के अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किसी भी पक्ष द्वारा किए गए आवेदन पर नहीं किया जा सकता बल्कि यह उसकी अपनी संतुष्टि पर ही लागू होता है।"
वर्तमान मामले में ट्रायल कोर्ट ने CrPc की धारा 216 के तहत अभियोजन पक्ष द्वारा दायर आवेदन के आधार पर आरोपी के खिलाफ IPC की धारा 333 के तहत आरोप जोड़ा था।
IPC की धारा 333 के तहत आरोप तय करने के लिए कोई तत्व उपलब्ध हैं या नहीं, इसका आकलन करने के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा कोई स्वतंत्र विचार नहीं किया गया।
ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के आरोप जोड़ने का आवेदन स्वीकार करने में ट्रायल कोर्ट ने गलती की है।
अदालत के अनुसार ट्रायल कोर्ट को कानून के अनुसार आरोप में परिवर्तन या जोड़ने पर विचार करना था, अगर वह संतुष्ट है, न कि अभियोजन पक्ष के आवेदन के आधार पर।
केस टाइटल: चंद्रशेखर नामदेव एवं अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य