अनुकंपा नियुक्ति में देरी से उसका उद्देश्य विफल, मृत्यु तिथि से 15 वर्ष बीत जाने के बाद राहत नहीं दी जा सकती: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति लंबे समय (15 वर्ष) के बाद नहीं दी जा सकती, क्योंकि इसका उद्देश्य मृतक कर्मचारी के परिवार को तत्काल वित्तीय राहत प्रदान करना है।
पृष्ठभूमि तथ्य
अपीलकर्ता की माँ विकासखंड शिक्षा अधिकारी, गरियाबंद के अधीन सहायक शिक्षिका के पद पर कार्यरत थीं। 09.12.2000 को सेवाकाल के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। उस समय अपीलकर्ता-पुत्री नाबालिग थी। अपीलकर्ता वर्ष 2015 में वयस्क हो गई। 05.08.2015 को उसने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन प्रस्तुत किया। विभाग ने 29.08.2017 के आदेश द्वारा इस आवेदन अस्वीकार कर दिया।
अपीलकर्ता ने इस अस्वीकृति को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की। सिंगल जज ने रिट याचिका खारिज कर दी। यह पाया गया कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य आकस्मिक संकट से निपटने के लिए तत्काल वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इसलिए 15 वर्षों से अधिक समय बीत जाने के बाद यह उद्देश्य समाप्त हो गया।
सिंगल जज के आदेश से व्यथित होकर अपीलकर्ता ने रिट अपील दायर की।
अपीलकर्ता का तर्क था कि प्राधिकारियों ने 2003 की अनुकंपा नियुक्ति नीति को गलत तरीके से लागू किया। वर्ष 2000 में उसकी माँ की मृत्यु के समय लागू नीति 1994 की नीति थी। 1994 की नीति आश्रित को वयस्क होने पर अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन करने की अनुमति देती थी। इसलिए 2015 में उसका आवेदन समय पर था। यह भी तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता और उसके भाई-बहनों को उनकी माँ की मृत्यु के तुरंत बाद उनके पिता ने छोड़ दिया था। उन्हें अपनी वृद्ध नानी के साथ रहने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिससे परिवार आर्थिक संकट में पड़ गया। दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने सिंगल जज के आदेश का समर्थन किया और कहा कि रिट याचिका को सही ढंग से खारिज किया गया और इसमें न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी।
कोर्ट के निष्कर्ष
कोर्ट ने यह पाया कि अनुकंपा नियुक्ति प्रदान करने का उद्देश्य सेवाकाल के दौरान मृत्यु को प्राप्त होने वाले सरकारी कर्मचारी के परिवार को तत्काल वित्तीय सहायता प्रदान करना है। यह उन्हें आकस्मिक संकट से उबरने में सक्षम बनाता है। यह मानवीय दृष्टि से प्रदान किया जाता है। न्यायालय ने पाया कि अपीलकर्ता की माँ का निधन 09.12.2000 को हुआ था और अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन काफी समय बीत जाने के बाद 05.08.2015 को प्रस्तुत किया गया था। न्यायालय ने यह माना कि इस तरह की अत्यधिक देरी तत्काल कठिनाई को दूर करने के उद्देश्य को ही विफल कर देती है।
कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य बनाम सुश्री माधुरी मारुति विधाते मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि अनुकंपा नियुक्ति रोजगार के सामान्य नियम का अपवाद है। इसका उद्देश्य केवल उस सरकारी कर्मचारी के परिवार की सहायता करना है, जिसकी सेवाकाल के दौरान मृत्यु हो जाती है और जो आर्थिक संकट में फंस जाता है। इसका उद्देश्य तत्काल राहत प्रदान करना और परिवार को अचानक आए संकट से उबरने में मदद करना है, न कि मृतक के समकक्ष नौकरी प्रदान करना। इसके अतिरिक्त, दावेदार को कई वर्षों के बाद मृतक कर्मचारी का आश्रित नहीं माना जा सकता है। इतनी लंबी अवधि के बाद नियुक्ति प्रदान करना नीति के उद्देश्य और प्रयोजन के विपरीत है।
कोर्ट ने यह माना कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य मृतक की मृत्यु की तिथि से कुछ वर्षों के बाद भर्ती का स्रोत बनना नहीं है। यह भी माना गया कि सिंगल जज के निष्कर्ष न्यायसंगत और उचित थे और उनमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी। उपरोक्त टिप्पणियों के साथ अपीलकर्ता द्वारा दायर अपील कोर्ट ने खारिज कर दी।
Case Name : Ku. Smriti Verma vs. The State of Chhattisgarh & Anr.