कर्मचारी के ट्रांसफर पोस्ट पर कार्यभार ग्रहण करने के बाद ट्रांसफर आदेश को चुनौती देना अस्वीकार्य हो जाता है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि कर्मचारी के ट्रांसफर पोस्ट पर कार्यभार ग्रहण करने के बाद ट्रांसफर आदेश को चुनौती देना सामान्यतः स्वीकार्य नहीं होता।
पृष्ठभूमि तथ्य
लेक्चरर (हिस्ट्री) शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, अभनपुर में कार्यरत थे। उन्हें अधिशेष घोषित कर राजपुर के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में ट्रांसफर कर दिया गया। बाद में वे काउंसलिंग के लिए उपस्थित हुए। हालांकि, उनके विषय में कोई रिक्त पद न होने के कारण उन्हें संभागीय काउंसलिंग में उपस्थित होने का निर्देश दिया गया। उसके बाद उन्हें बस्तर जिले में पदस्थ कर दिया गया।
प्रभारी प्राचार्य की पदोन्नति के बाद लेक्चरर के मूल विद्यालय, अभनपुर में लेक्चरर (इतिहास) का एक पद रिक्त हो गया। लेक्चरर ने तर्क दिया कि उन्हें इस पद पर अभनपुर में ही रखा जाना चाहिए था। उन्होंने अपना ट्रांसफर रद्द करने के लिए अभ्यावेदन प्रस्तुत किए। इसके बावजूद, उन्होंने नई पदस्थापना पर कार्यभार ग्रहण कर लिया। उन्होंने ट्रांसफर आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। इसे सिंगल जज ने खारिज कर दिया। इस निर्णय से व्यथित होकर उन्होंने अपील दायर की।
अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि ट्रांसफर आदेश मनमाना और अनुचित था। उन्होंने कहा कि सिंगल जज ने रिट याचिका को केवल इसलिए खारिज करके गलती की, क्योंकि वह पहले ही ट्रांसफर पद पर कार्यभार ग्रहण कर चुके थे। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने राज्य प्राधिकारियों के दबाव और विरोध के कारण नए पद पर कार्यभार ग्रहण किया। उन्होंने तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय एवं अन्य बनाम आर. अगिला एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि इस तरह कार्यभार ग्रहण करने से आदेश को चुनौती देने पर कोई रोक नहीं लगती।
यह भी रेखांकित किया गया कि अभनपुर स्कूल के प्रधानाचार्य ने अनुरोध किया कि लेक्चरर को अधिशेष घोषित न किया जाए। लेक्चरर ने यह भी तर्क दिया कि ट्रांसफर राज्य की युक्तिकरण नीति का उल्लंघन करता है, क्योंकि अभनपुर स्कूल में इतिहास का कोई लेक्चरर नहीं रह गया, जो शिक्षकों के युक्तिकरण आवंटन के मूल उद्देश्य को ही कमजोर करता है। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि प्राधिकारियों ने काउंसलिंग प्रक्रिया के दौरान अभनपुर में हिस्ट्री लेक्चरर पोस्ट सहित उपलब्ध रिक्तियों के बारे में जानकारी छिपाई, जिससे उन्हें विचार के लिए उचित अवसर नहीं मिल पाया।
दूसरी ओर, राज्य सरकार का तर्क था कि ट्रांसफर आदेश कानून और प्रशासनिक नीति के अनुसार जारी किया गया। राज्य सरकार ने यह भी तर्क दिया कि अपीलकर्ता पहले ही नए पद पर कार्यभार ग्रहण कर चुका था। इसलिए ट्रांसफर अधिशेष शिक्षकों के युक्तिकरण और परामर्श प्रक्रिया के बाद किया गया।
न्यायालय के निष्कर्ष
अदालत ने पाया कि लेक्चरर ने ट्रांसफर स्थान पर कार्यभार ग्रहण करने के बाद ही ट्रांसफर का विरोध किया। यू.पी. सिंह बनाम पंजाब नेशनल बैंक मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए यह दोहराया गया कि एक बार जब कोई कर्मचारी ट्रांसफर पोस्ट पर कार्यभार ग्रहण कर लेता है तो आदेश स्वीकार कर लिया गया माना जाता है। अनुपालन से पहले कोई भी शिकायत दर्ज की जानी चाहिए।
तरुण कानूनगो बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले में दिए गए निर्णय का हवाला दिया गया, जिसमें यह माना गया कि एक बार ट्रांसफर आदेश पूरी तरह से निष्पादित हो जाने के बाद उसका प्रभाव समाप्त हो जाता है। इसके अलावा, समाधान नए या उचित आदेश जारी करने में निहित है, न कि पहले से निष्पादित स्थानांतरण को चुनौती देने में।
यह देखा गया कि लेक्चरर ट्रांसफर विद्यालय में काम करता रहा, जिससे ट्रांसफर के कार्यान्वयन की पुष्टि हुई। न्यायालय ने माना कि ट्रांसफर आदेश लागू होने के बाद अपीलकर्ता को अपनी पूर्व नियुक्ति पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। सिंगल जज के आदेश में कोई दोष न पाते हुए उसे बरकरार रखा गया। इसके साथ ही लेक्चरर द्वारा दायर रिट अपील खारिज कर दी गई।
Case Name : Sanjay Kumar Yadav vs. State of Chhattisgarh & Others