'क्या आप राउडी राठौर या हुड़दंगी बनना चाहते हैं', हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने बीसीआई के नए नियमों के खिलाफ दायर याचिका निस्तारित की

Update: 2021-06-30 04:44 GMT

Himachal Pradesh High Court

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक याचिका का निस्तारण 'विदड्रॉन' यानी 'वापस ले लिया' के रूप में किया, जिसमें बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के भाग VI के चैप्टर II में हाल ही में शामिल सेक्‍शन V और V-A को असंवैधानिक और अनुच्छेद 14, 19 (1) (a), और 21 के खिलाफ बताया गया था।

याचिका हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के एक वकील नीरज शाश्वत ने दायर की थी, जिन्होंने सेक्‍शन-V को चुनौती दी थी, जिसे बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के भाग VI के चैप्टर II में जोड़ा गया है, ‌जिसमें कहा गया है-

"एक वकील दैनिक जीवन में एक जेंटलमैन/जेंटललेडी के रूप में आचरण करेगा और वह कोई भी गैर कानूनी कृत्य नहीं करेगा। वह प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक या सोशल मीडिया में कोई भी ऐसा बयान नहीं देगा, जो किसी भी कोर्ट या जज या न्यायपालिका के किसी भी सदस्य के खिलाफ या राज्य बार काउंसिल या बार काउंसिल ऑफ इंडिया के खिलाफ अभद्र या लज्जाजनक, अपमानजनक या प्रेरित, दुर्भावनापूर्ण या शरारती है; और न ही कोई एडवोकेट स्टेट बार काउंसिल या बार काउंसिल ऑफ इंडिया के किसी भी संकल्प या आदेश के किसी भी जानबूझकर किए गए उल्लंघन, अवहेलना या अवज्ञा में शामिल नहीं होगा.."

जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस चंद्र भूषण बरोवालिया की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता/एडवोकेट की ओर से पेश वकील से पूछा कैसे उक्त नियमों ने उन्हें प्रभावित किया है और एसोसिएशन/बार काउंसिल के बजाय केवल एक एडवोकेट ने न्यायालय के समक्ष क्यों याचिका दायर की है।

इस पर, वकील ने दलील दी कि इस मामले में केरल उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की गई है और यदि कोई एसोसिएशन या काउंसिल ने नियमों को चुनौती नहीं दी है, तो यह न्यायालय से संपर्क करने का उसका अधिकार कैसे छीन लेता है।

कोर्ट ने कहा, "आप यह नहीं कह सकते कि बार मूर्ख हैं और केवल मैं एक साक्षर व्यक्ति हूं। बार में सक्षम लोग होते हैं, कई जज बार से आए हैं।"

कोर्ट ने वकील से यह भी पूछा कि 'जेंटलमैन/जेंटललेडी' शब्द से उन्हें क्या समस्या है और अगर वह नए नियम के खिलाफ हैं तो क्या वह राउडी राठौर या हुड़दंगी बनना चाहते हैं।

इसके अलावा, जब एडवोकेट सेठी ने दलील दी कि नियम व्यापक और व्यक्तिपरक हैं और बार काउंसिल के सदस्य शिकार होंगे तो जस्टिस तरलोक सिंह चौहान ने कहा, "सब कुछ व्यक्तिपरक है, कानून व्यक्‍तिपरक है। बार काउंसिल अधिवक्ताओं का नियामक है।"

बेंच ने याचिका को खारिज करने का मन बनाते हुए याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील से पूछा, "कितना जुर्माना लगाया जाए?" इस पर एडवोकेट सेठी ने कहा, "अगर मैं आपको समझाने में सक्षम नहीं हूं, तो आप जुर्माना लगा दें, और अगर मेरा मुवक्किल कहता है कि वह जुर्माना नहीं दे पाएगा तो मैं खुद दूंगा।"

इस पर कोर्ट ने कहा, "आप अपने करियर की दहलीज पर हैं, आप अपने मुवक्किल के एकमात्र प्रवक्ता हैं, भूमिकाओं को आपस में ना मिलाएं। आप कैसे कह सकते हैं कि आप जुर्माना अदा करेंगे?"

हालांकि, बाद में अदालत ने याचिका का निस्तारण 'वापस ली गई' के रूप में किया।

बार काउंसिल ऑफ इं‌डिया की ओर से जारी अधिसूचना को निम्न बिंदुओं पर चुनौति दी गई थी-

-अधिसूचना एक हद तक संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और (जी) के खिलाफ है और संविधान के अनुच्छेद 19(2) और 19(6)(i) के तहत अपवाद को संतुष्ट नहीं करती है।

-यह कि प्रावधान और उसमें इस्तेमाल की गई भाषा इतनी अस्पष्ट है कि मनमाने प्रतिबंध के समान है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के खिलाफ है।

-प्रतिवादी संख्या 1 या 2 के मामले में, अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 5 के आधार पर, आक्षेपित विनियमों में निर्दिष्ट मुद्दों से संबंधित किसी भी अधिवक्ता के आचरण से किसी भी प्रकार से व्यथित हैं, उनके पास ऐसे अपराधों/मुद्दों के न्यायनिर्णयन के लिए निर्दिष्ट विशिष्ट न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र का सहारा है।

-अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 35/36 पढ़ें धारा 9 के साथ, के तहत अपराध के निर्णय की प्रक्रिया भी प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांतों और निष्पक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ है क्योंकि कोई अपने ही मामले में जज नहीं हो सकता है।

याचिका में प्रार्थना की गई थी कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया की अधिसूचना को रद्द किया जाए बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स में जोड़े गए नियमों को असंवैधानिक बताया जाए।

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