निजी शैक्षणिक संस्थानों के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य, क्योंकि ऐसे संस्थान भी सार्वजनिक कार्य में शामिल हैंः जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह दोहराया कि विशुद्ध रूप से निजी, बिना मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों के खिलाफ दायर याचिकाएं, यह ध्यान में रखते हुए कि ऐसे संस्थान सार्वजनिक कार्य कर रहे हैं, भी सुनवाई योग्य हैं।
जस्टिस जावेद इकबाल वानी एक गैर-मान्यता प्राप्त निजी स्कूल में नियुक्त शिक्षक की याचिका पर विचार कर रहे थे, जिसे नौकरी से निकाल दिया गया था।
याचिकाकर्ता ने आग्रह किया था कि उत्तरदाता-विद्यालय, राज्य की ओर से अपनी संप्रभु क्षमता अनुसार प्रदान की जा रही शैक्षिक गतिविधियों के अनुरूप ही गतिविधियां प्रदान कर रहा है और इस पूरी प्रक्रिया में सार्वजनिक हित का एक तत्व शामिल है। इसलिए, यह दलील दी गई कि याचिकाकर्ता के रूप में उत्तरदाताओं की कार्रवाइयां सार्वजनिक कर्तव्य/ सार्वजनिक कार्यों के दायरे और परिधि में आती हैं और इस प्रकार उनकी उक्त कार्रवाई इस अदालत के अधिकार क्षेत्र के लिए उत्तरदायी है।
हालांकि उत्तरदाताओं ने प्रारंभिक/ पहली आपत्ति के रूप में यह कहते हुए कि रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, याचिका को रद्द करने की मांग की। उत्तरदाताओं ने दलील दी कि प्रतिवादी-स्कूल एक निजी मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान है और अनुच्छेद 12 के तहत राज्य सरकार का संस्थान नहीं है, इसलिए इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के लिए उत्तरदायी नहीं है।
प्रतिवादी-स्कूल ने तर्क दिया कि स्कूल के कर्मचारियों की सेवा शर्तों को 2007 के नियमों के जरिए संचालित किया जाता है, जिसे खुद स्कूल ने बनाया है। उन्हीं के तहत किसी भी कदाचार के लिए एक कर्मचारी के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए नियम 5 के तहत एक तंत्र प्रदान किया गया है। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि हालांकि उत्तरदाता ने शुरू में नियमों का पालन किया और उसे आरोपों की सूचना दी, लेकिन उसे जवाब को अवसर दिए बिना और बिना किसी जांच के नौकरी से निकाल दिया।
रिट याचिका के सुनवाई योग्य होने के संबंध में, सिंगल जज ने कहा कि 2019 में मारवाड़ी बालिका विद्यालय बनाम आशा श्रीवास्तव और अन्य के मामले में, सुप्रीम कोर्ट की ओर से निर्धारित कानून के मद्देनजर यह मुद्दा नहीं है, जिसमें 2012 रमेश अहलूवालिया बनाम पंजाब राज्य और अन्य, और राज कुमार बनाम निदेशक स्कूल शिक्षा और अन्य (2016) के आधार पर माना है कि सार्वजनिक कार्यों में शामिल विशुद्ध गैर-सहायता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों के खिलाफ भी रिट आवेदन सुनवाई योग्य है।
सिंगल बेंच ने कहा कि वर्तमान मामले में, हालांकि प्रतिवादी शैक्षणिक संस्थान एक गैर-सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान है, फिर भी यह जम्मू और कश्मीर स्कूल शिक्षा अधिनियम 2002, जम्मू और कश्मीर स्कूल शिक्षा नियम, 2010 के साथ पढ़ें, के नियंत्रण और पर्यवेक्षण के अधीन है। उक्त अधिनियम की धारा 3 राज्य के सभी स्कूलों पर अधिनियम के प्रावधानों को लागू करती है, वह निजी हों या सरकारी।
अधिनियम की धारा 11 में सक्षम प्राधिकारी, जो अधिनियम की धारा 2 के तहत सरकार की एक नियुक्ति है, की अनुमति के बिना एक निजी स्कूल की स्थापना और चलाना प्रतिबंधित है। अधिनियम की धारा 12 केवल उन निजी स्कूलों को कार्य करने की अनुमति प्रदान करती है, जिन्हें अधिनियम के तहत मान्यता प्राप्त है और खंड 13 निजी स्कूलों के प्रबंधन से संबंधित है। अधिनियम की धारा 19 और 20 क्रमशः निजी स्कूलों में शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के लिए नियम प्रदान करते हैं और उनकी सेवा की शर्तों को तैयार करने और अधिसूचित करने की स्थितियों को तय करते हैं।
याचिका को सुनवाई की अनुमति देते हुए और नौकरी से निकाले जाने के आदेश को रद्द करते हुए, अदालत ने कहा कि उत्तरदाताओं को या तो याचिकाकर्ता के खिलाफ कथित कदाचार के मामले में एक नई जांच शुरू करने की स्वतंत्रता होगी या फिर याचिकाकर्ता के खिलाफ पहले से की जा रही जांच को वहीं से शुरू करनी होगी, जहां से यह रुक गई थी।
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