परमबीर सिंह को एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर में 21 अक्टूबर तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा: महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट में कहा
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक अधीनस्थ अधिकारी की शिकायत पर अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अधिनियम (अत्याचार की रोकथाम) के तहत ठाणे पुलिस की प्राथमिकी को रद्द करने के लिए पूर्व पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह की याचिका को 20 अक्टूबर तक के लिए स्थगित किया।
महाराष्ट्र सरकार के वकील एपीपी जेपी याज्ञनिक ने सिंह को 21 अक्टूबर तक गिरफ्तार नहीं करने पर सहमति जताई। राज्य सरकार के मुताबिक 24 मई तक गिरफ्तारी नहीं करने के बयान को बढ़ा दिया गया है।
ठाणे पुलिस सिंह और 32 अन्य के खिलाफ एससी/एसटी अधिनियम, नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम और आईपीसी के तहत विभिन्न अपराधों के मामले की जांच कर रही है।
शुक्रवार को वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने न्यायमूर्ति एस एस शिंदे और न्यायमूर्ति एन जे जमादार की पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख किया। राज्य ने तब पीठ को आश्वासन दिया कि परम बीर सिंह के खिलाफ 21 अक्टूबर तक प्राथमिकी में कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाएगा।
परम बीर सिंह के खिलाफ महाराष्ट्र में पांच एफआईआर दर्ज हैं, इनमें से केवल एक एफआईआर में सुरक्षा दी गई है।
शिकायत
पुलिस इंस्पेक्टर भीमराव घाडगे ने आरोप लगाया कि सिंह ने 2015 में आठ दिनों के भीतर उनके खिलाफ चार झूठी शिकायतें दर्ज करने के लिए पुलिस आयुक्त (ठाणे) के रूप में अपने अधिकार का दुरुपयोग किया, क्योंकि उन्होंने उन मामलों में कुछ प्रभावशाली लोगों के नाम छोड़ने से इनकार कर दिया, जिनकी वह जांच कर रहे थे।
घाडगे का दावा है कि सिंह ने उन्हीं आरोपियों को उकसाया, जिनके खिलाफ वह जांच कर रहे थे, ताकि उनके खिलाफ मामले दर्ज किए जा सकें। उनका कहना है कि इन शिकायतों के कारण उन्हें 14 महीने के लिए निलंबित रखा गया था।
अधिकारी ने कहा कि उन्होंने राज्य मानवाधिकार आयोग, पुलिस महानिदेशक परमबीर सिंह, गृह मंत्री के खिलाफ पुलिस से संपर्क किया, लेकिन कुछ न हो सका। अंत में उन्होंने पुलिस महानिदेशक से 2018 में उनकी शिकायत पर फैसला करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
एक अवमानना याचिका लंबित होने के बावजूद, राज्य ने परमबीर सिंह और 32 अन्य के खिलाफ 28 अप्रैल, 2021 को आईपीसी की धारा 3 (1) (पी), 3 (1) (क्यू), 3 (1) (आर), 3 (2) (ii), 3 (2) (v) और 3 (2) (vii) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 की धारा 7 (1-ए) के नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 r/w की धारा 109, 110, 111, 113,166,167, 500, 120 बी का IPC r/w धारा 22 में महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज की।
अकोला में दर्ज एफआईआर को बाद में कल्याण, ठाणे के बाज़ार पेठ पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित कर दिया गया।
परम बीर सिंह की याचिका
परमबीर सिंह ने प्राथमिकी रद्द करने की मांग करते हुए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र सरकार राज्य के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ अपने भ्रष्टाचार के आरोपों को वापस लेने के लिए दबाव बनाने के लिए उन पर एफआईआर दर्ज कर रही है।
घाटगे की एफआईआर के बारे में सिंह कहते हैं कि यह संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं करता है और महत्वपूर्ण तथ्यों को दबा दिया गया है। उन्होंने प्राथमिकी को "भयावह उद्देश्यों" से दर्ज की गई कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग बताया है।
सिंह आगे कहते हैं कि एससी / एसटी एक्ट की धाराओं को गलत तरीके से लागू किया गया है और इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि एफआईआर क्यों दर्ज की गई। उन्होंने दबाव बनाने के लिए किए जा रहे प्रयासों की सीबीआई जांच की मांग की है। उन्होंने सभी कार्यवाही पर एफआईआर पर रोक लगाने की भी मांग की है।
[परम बीर सिंह बनाम महाराष्ट्र राज्य]