पत्नी के परिजनों का पति से अपने मां-बाप को छोड़ने, और "घर जमाई" बनने का आग्रह करना क्रूरता जैसाः दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि पत्नी के परिजनों को पति से अपने मां-बाप को छोड़ने, और "घर जमाई" बनने का आग्रह करना क्रूरता जैसा है।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्रूरता और परित्याग के आधार पर एक जोड़े को तलाक की अनुमति दी। दोनों ने 2001 में विवाह किया था और एक साल बाद अलग रहना शुरू कर दिया।
अदालत ने फैसले में कहा कि किसी जोड़े को एक-दूसरे के साथ से वंचित किया जाना, यह साबित करता है कि शादी कायम नहीं रह सकती और वैवाहिक रिश्ते से इस तरह वंचित करना बहुत क्रूरता का काम है।
मामले में अपीलकर्ता-पति ने क्रूरता का आरोप लगाया था और दावा किया था कि उसके और उसकी पत्नी (प्रतिवादी) के बीच कोई वैवाहिक संबंध नहीं है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनकी पत्नी और उनके परिवार की ओर से इस बात पर जोर दिया गया था कि उन्हें दिल्ली चले जाना चाहिए और "घर जमाई" के रूप में रहना चाहिए।
अदालत ने कहा, "प्रतिवादी के परिवार का अपीलकर्ता पर अपने माता-पिता को छोड़ने और 'घर जमाई' बनने का आग्रह क्रूरता के समान है।"
कोर्ट ने नरेंद्र बनाम के मीना (2016) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जहां यह माना गया था कि एक बेटे का अपने माता-पिता के बूढ़े होने पर उनकी देखभाल करने का नैतिक और कानूनी दायित्व है। एक बेटे को अपने परिवार से अलग होने के लिए कहना क्रूरता है।
पीठ क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की याचिका खारिज करने के पारिवारिक अदालत के आदेश के खिलाफ पति की अपील पर फैसला कर रही थी। उसने दावा किया कि शादी के छह महीने बाद पत्नी ने उससे कहा कि वह उसके साथ रहने को तैयार नहीं है। वह फरवरी 2002 में अपने माता-पिता के घर गईं, जहां उनकी बेटी का जन्म हुआ। पति ने दावा किया कि वह अप्रैल 2004 में अपनी बेटी से मिलने गया था, लेकिन उसे उससे मिलने की अनुमति नहीं दी गई।
पति का मामला था कि पत्नी ने 2007 में उसके खिलाफ क्रूरता का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई थी। हालांकि, 2016 में उसे इस मामले से बरी कर दिया गया। दूसरी ओर, पत्नी ने दावा किया कि पति उसे पीटा रहा है और उसके साथ क्रूरता कर रहा है, हालांकि अदालत ने कहा कि वह किसी भी घटना से इसकी पुष्टि करने में सक्षम नहीं थी।
यह देखते हुए कि झूठी शिकायत करना अपने आप में क्रूरता का कार्य है और यह स्थापित करने की जिम्मेदारी पत्नी की है कि उसके साथ क्रूरता हुई थी या उसके पास पति से अलग रहने का कोई ठोस कारण नहीं था, कोर्ट ने कहा कि यह 'पति के ख़िलाफ़ 'मानसिक क्रूरता' का मामला है।
फैसले में कहा गया कि पत्नी ने आरोप लगाया था कि पति ने 2015 में शादी के दरमियान ही दूसरी शादी कर ली और उसकी दूसरी शादी से एक बच्चा भी है। अदालत ने कहा कि पति ने एक बच्चा होने की बात स्वीकार की लेकिन दावा किया कि उसने महिला से शादी नहीं की थी बल्कि लिव-इन रिलेशनशिप में था।
“यहां वह मामला है जहां लंबे अलगाव ने अपीलकर्ता और प्रतिवादी दोनों को स्पष्ट रूप से किसी तीसरे व्यक्ति का साथ खोजने के लिए मजबूर किया है। जो भी हो, यह स्पष्ट है कि रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य पर्याप्त रूप से साबित करते हैं कि प्रतिवादी ने अपीलकर्ता का साथ छोड़ दिया था, जिसका वह कोई ठोस कारण नहीं बता पाई है।
याचिकाकर्ता और प्रतिवादी दोनों कार्यवाही के लंबित रहने के दरमियान रिश्ते में आ गए होंगे, लेकिन तथ्य यह है कि याचिका दायर करने की तारीख पर, प्रतिवादी बिना किसी ठोस कारण के याचिकाकर्ता के साथ से हट गई थी।”
जैसा कि पत्नी और उसकी बेटी ने अदालत को बताया कि वे पिछले तीन महीनों से प्रति माह 8,500 रुपये का आवास किराया नहीं दे सकते हैं, यह सुझाव दिया गया कि महिला ईडब्ल्यूएस श्रेणी में एक फ्लैट के आवंटन के लिए आवेदन कर सकती है।
चूंकि उक्त उद्देश्य के लिए बीपीएल कार्ड की आवश्यकता थी, खाद्य एवं आपूर्ति अधिकारी ने पीठ को आश्वासन दिया कि पत्नी से आवेदन प्राप्त होने पर 15 दिनों के भीतर बीपीएल कार्ड जारी किया जाएगा।
हालांकि, कोर्ट में मौजूद सीनियर एडवोकेट सुनील मित्तल ने स्वेच्छा से तीन महीने की किराए की राशि 25,500 रुपए का भुगतान खुद करने पर सहमत हो गए। जिसके बाद कोर्ट ने कहा, "हम एक ऐसे परिवार को समर्थन देने के लिए विद्वान सीनियर वकील के उदार भाव की सराहना करते हैं, जिसे परिस्थितियों नें गरीबी में धकेल दिया है।"
केस टाइटल: एक्स बनाम वाई