तलाक की डिक्री को चुनौती देने और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत स्थायी भरण-पोषण स्वीकार नहीं करने वाली पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती है : इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उस मामले में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी के भरण-पोषण के दावे को स्वीकार किया है, जिसमें फैमिली कोर्ट ने पति के पक्ष में तलाक का आदेश पारित किया है। हाईकोर्ट ने कहा कि उक्त तलाक की डिक्री के खिलाफ एक अपील न्यायालय के समक्ष लंबित है और उस पर अभी अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। हाईकोर्ट ने माना कि तलाक की डिक्री के बावजूद पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती है।
जस्टिस सैयद आफताब हुसैन रिजवी ने पति की उस दलील को खारिज कर दिया कि एक तलाकशुदा पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती है। कोर्ट ने उस तर्क को भी खारिज कर दिया कि इस मामले में फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत स्थायी भरण-पोषण दिया है, इसलिए सीआरपीसी के तहत कोई भरण-पोषण नहीं दिया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि,
''यह स्पष्ट है कि चूंकि प्रतिवादी नंबर 2 (पत्नी) ने भरण-पोषण या एलिमनी (alimony)की राशि को स्वीकार नहीं किया है क्योंकि उसने अपील में तलाक की डिक्री को चुनौती दी है और अपील लंबित है और उस परिस्थिति में वह स्थायी भरण-पोषण की राशि को स्वीकार नहीं कर सकती है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि उसके पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन हैं क्योंकि उसे स्थायी भरण-पोषण दिया गया है। वर्तमान में उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है और अपने जीवन-यापन के लिए कोई वित्तीय सहायता नहीं है और वह निराश्रित की श्रेणी में आती है।''
न्यायालय इस मामले में फैमिली कोर्ट द्वारा पारित निर्णय और आदेश के खिलाफ पति द्वारा दायर एक पुनरीक्षण/संशोधन याचिका पर विचार कर रहा था,जिसमें फैमिली कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पति को निर्देश दिया था कि वह अपनी पत्नी को हर माह 25000 रुपये भरण-पोषण के तौर पर प्रदान करें। इससे पहले फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत पति के पक्ष में तलाक का आदेश पारित करते हुए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत स्थायी भरण-पोषण के रूप में 25 लाख रुपये देने का निर्देश दिया था। हालांकि पत्नी ने तलाक के आदेश को चुनौती दे रखी है।
प्रतिवादी नंबर 2 (पत्नी) के वकील ने कहा कि उसने स्थायी भरण-पोषण की राशि स्वीकार नहीं की है और वह अदालत में झूठ बोल रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि स्थायी भरण-पोषण की राशि को स्वीकार करना तलाक की डिक्री की स्वीकृति के बराबर होगा। यह भी तर्क दिया गया कि प्रतिवादी नंबर 2 ने स्थायी भरण-पोषण का दावा करने के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत कभी भी कोई आवेदन दायर नहीं किया है और अदालत ने अपनी इच्छा से यह राशि प्रदान की है।
निष्कर्ष
शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में पति द्वारा तलाक की याचिका दायर की गई है। जिसका पत्नी द्वारा विरोध किया जा रहा है और उसने अपील दायर की है और उसने स्थायी भरण-पोषण भी स्वीकार नहीं किया है जो इस समय निचली अदालत के पास जमा है।
कोर्ट ने रजनीश बनाम नेहा मामले का उल्लेख किया,जहां सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक मामलों में भरण-पोषण के भुगतान पर दिशा-निर्देश जारी किए हैं और यह माना है कि एक पत्नी विभिन्न क़ानूनों के तहत भरण-पोषण के लिए दावा कर सकती है।
इसके बाद कोर्ट ने रोहताश सिंह बनाम रामेंद्री (2000) 3 एससीसी 180 मामले का जिक्र किया, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर तलाकशुदा पत्नी खुद को बनाए रखने में असमर्थ है और अगर उसने दोबारा शादी नहीं की है, तो वह भरण-पोषण भत्ता पाने की हकदार होगी।
वर्तमान मामले के तथ्यों पर कानून के पूर्वाेक्त प्रस्ताव को लागू करते हुए, न्यायालय ने कहा कि यह स्पष्ट है कि पत्नी ने निर्वाह-धन/स्थायी भरण-पोषण की राशि को स्वीकार नहीं किया है क्योंकि उसने अपील में तलाक की डिक्री को चुनौती दी है, जो अभी लंबित है।
मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, अदालत ने माना कि आक्षेपित आदेश किसी भी दुर्बलता या अवैधता से ग्रस्त नहीं है और इसलिए, आपराधिक संशोधन याचिका को खारिज कर दिया।
केस शीर्षक-तरुण पंडित बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य
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