"यदि वकील निर्धारित पोषाक में है, तो क्या उसके पास पुलिस की कठोर कार्रवाई के खिलाफ कोई विशेषाधिकार है?" इलाहाबाद हाईकोर्ट एटा मामले में इस मुद्दे की जांच करेगा

Update: 2021-01-21 06:55 GMT

एटा के अधिवक्ता पर पुलिस हमले से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार (19 जनवरी) को चार प्रश्न / मुद्दे को अपने समक्ष रखा और कहा कि इन पर न्यायालय द्वारा विचार करने की आवश्यकता है।

सीजेएम, एटा की पूरी रिपोर्ट और रिकॉर्ड पर उपलब्ध अन्य सामग्री के अध्ययन के बाद, चीफ ज‌स्ट‌िस गोविंद माथुर और जस्ट‌िस सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ अपने समक्ष विचार के लिए निम्नलिखित मुद्दे रखे-

-क्या किसी पुलिस दल के पास, किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करते हुए, जिसे कानून हाथ में लेने को कहा गया है, गैरकानूनी बल का प्रयोग करने का अधिकार है।

-क्या पुलिस को अचल संपत्ति के कब्जे से किसी व्यक्ति को निकालने या किसी व्यक्ति को संपत्ति का कब्जा देने की एजेंसी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, य‌‌दि पुलिस को पास ऐसी संपत्ति पर गैरकानूनी कब्जे या गैरकानूनी बेदखली के आरोप की रिपोर्ट है?

-क्या पुलिस अधिकारियों सहित प्रशासनिक अधिकारियों के पास यह अधिकार है कि वे किसी व्यक्‍ति को उसके परिसर से बेदखल कर करे दें, जिसके खिलाफ सक्षम न्यायालय द्वारा आदेश दिया गया है, हालांकि निष्‍पादन अदालत द्वारा निष्पादित करके कार्यवाही का का आदेश नहीं दिया गया है?

-क्या अधिवक्ता अधिनियम, 1961 अधिवक्ता को ऐसा विशेषाधिकार देता है, कि यदि वही उचित पोषाक में है तो पुलिस उसके खिलाफ कोई भी कठोर कार्रवाई नहीं कर सकती है?

प्रतिपक्षी वकीलों को उक्त मुद्दों पर अपना पक्ष न्यायालय में रखने के लिए निर्देशित किया गया है और याचिका को आगे की सुनवाई के लिए 02 फरवरी, 2021 को सूचीबद्ध किया गया है। अंत में, अदालत ने कहा कि वह जांच एजेंसी के परिवर्तन के लिए मामले में उपस्थित वकील द्वारा किए गए अनुरोध को स्वीकार करने के लिए इच्छुक नहीं है।

उल्लेखनीय है कि मामले में अंतिम सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने उल्लेख किया था कि उत्तर प्रदेश स्टेट बार काउंसिल ने न्यायालय को एक सीलबंद लिफाफा भेजा था, जिसमें पूरे मामले की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी, जैसे केंद्रीय जांच ब्यूरो या सीआईडी की अपराधा शाखा से कराने अनुरोध किया गया था।

केस की पृष्ठभूमि

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस घटना का संज्ञान लिया था और उसके बाद अदालत ने घटना की पूरी रिपोर्ट मांगी थी, जिसमें एटा के एक अधिवक्ता राजेंद्र शर्मा को पुलिस ने पीटा गया था और उनके रिश्तेदारों को भी परेशान और अपमानित किया गया था।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने पहले ही पुलिस के हमले की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया है और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और भारत के मुख्य न्यायाधीश से मामले में स्वत: संज्ञान लेने का आग्रह किया था।

काउंस‌िल ने अपनी प्रेस विज्ञप्‍ति में कहा था, "उत्तर प्रदेश की पुलिस का कृत्य चौंकाने वाला है, कानून और व्यवस्था के संरक्षकों से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है। क्रूरता स्पष्ट रूप से दिखाती है कि एटा के पुलिस कर्म‌ियों का मकसद कुछ और था।"

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्या न्यायाधीश और भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा कार्रवाई करने का अनुरोध करते हुए, बीसीआई ने यह भी कहा था कि उसके अनुरोध पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विचार नहीं किया गया था।

एससीबीए ने भी पुलिस हमले की निंदा की थी और कहा था, "एटा में हमारे बिरादरी के एक सदस्य का क्रूर हमला, जब वह अपने परिवार के साथ था, अत्याचारपूर्ण और अस्वीकार्य है। यह पुलिस की ओर से की गई एक गंभीर और सोचीसमझी कार्रवाई है।"

साथ ही, इस घटना को गंभीरता से लेते हुए, हाई कोर्ट बार एसोसिएशन, इलाहाबाद ने एक पत्र भेजा था, जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया गया था कि वे उक्त घटना के बारे में संज्ञान लें और राज्य की कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उचित आदेश पारित करें।"

यह पत्र इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित किया गया था और श्री प्रभा शंकर मिश्रा, महासचिव, उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन, इलाहाबाद ने कहा था, "जिस तरह से वकील और उसके परिवार के सदस्यों को प्रशासन और पुलिस द्वारा बेरहमी से पीटा गया था, अधिवक्ता समुदाय दुखी अनुभव कर रहा है और ऐसा लगता है कि अधिवक्ता समुदाय सबसे उपेक्षित समुदाय है।"

महत्वपूर्ण यह है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह इस मामले में सीजेएम, एटा द्वारा दी जांच रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लिया था। यह रिपोर्ट 7.1.2020 कोर्ट के निर्देशों के अनुपालन के बाद प्रस्तुत की गई थी।

संबंधित समाचार में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में राज्य में अधिवक्ताओं के संरक्षण के लिए एक विधेयक "अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम" पेश करने के लिए राज्य को निर्देश देने की मांग को खारिज कर दिया।

चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और ज‌स्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने कहा, "हम किसी भी कानून के तहत विधायिका कोई निर्देश देने के लिए खुद को कानूनी रूप से सुसज्जित नहीं पाते हैं।"

यह अवलोकन सुनीता शर्मा और एक अन्‍य द्वारा दायर याचिका पर आया था, जिसमें प्रमुख सचिव, कानून और न्याय, उत्तर प्रदेश को "एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट" बिल पेश करने के लिए निर्देश देने के लिए कहा गया था।

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