जब बच्ची मां के साथ सहज ना हो तो पिता को कस्टडी देना जरूरी: पटना हाईकोर्ट

Update: 2023-04-10 16:20 GMT

पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर कोई लड़की अपनी मां के साथ रहने में असुविधा व्यक्त करती है, भले ही यह एक अस्थायी परिस्थिति हो, तो फैमिली कोर्ट के लिए यह राय और निर्देश देने के लिए एक बहुत ही आवश्यक आधार है कि लड़की को उसके पिता के साथ रहना चाहिए।

जस्टिस हरीश कुमार और जस्टिस आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने कहा,

"अदालत ने माता-पिता के क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए बच्चे के आराम, संतोष, स्वास्थ्य, शिक्षा, बौद्धिक विकास, अनुकूल परिवेश आदि को देखा है। इस प्रकार उसे कस्टडी और पालन-पोषण के संबंध में पिता के दावा श्रेष्ठ या मां का, यह तय करते समय नाजुक रास्ते पर बहुत सावधानी से चलना है।"

अपीलकर्ता पत्नी ने फैमिली कोर्ट, पटना के फैसले और आदेश के खिलाफ एक विविध अपील दायर की थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि 6 साल की बच्ची का अपने पिता के साथ रहना सबसे अच्छा होगा क्योंकि उसका भाई पहले से ही उनके साथ रह रहा था।

फैमिली कोर्ट ने पिता को बेटी की फिजिकल कस्टडी सौंपी थी, साथ ही मां को स्कूल की छुट्टियों और त्योहारों के दरमियान किसी उपयुक्त स्‍थान, जैसे पटना में पार्क आद‌ि में महीने में एक बार मिलने का अधिकार प्रदान किया था।

पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता और प्रतिवादी, जिनका विवाह हिंदू रीति-रिवाजों से हुआ था, के दो बच्चे थे। प्रतिवादी ने तनावपूर्ण संबंधों और पत्नी द्वारा बेवफाई और हिंसा के संदेह के कारण तलाक के लिए अर्जी दी। तलाक की कार्यवाही के दरमियान दोनों पक्षों सहमति से तलाक ले लिया। पति को बेटे और पत्नी को बेटी की कस्टडी सौंपी गई, साथ ही दोनों को अपने बच्‍चों से मिलने के लिए मुलाकात का अधिकार सौंपा गया।

हालांकि, तलाक के सात दिनों के भीतर पत्नी ने दूसरी शादी कर ली, जिसके बाद मां की कस्टडी में लड़की की सुरक्षा के लिए पति चिंतित हो गया। लड़की ने बाद में कहा कि वह अपनी मां और सौतेले पिता से नाखुश थी और अपने भाई के साथ अपने पिता के घर में रहना चाहती थी।

फैमिली कोर्ट ने बच्चे के हितों और मां के पुनर्विवाह पर विचार करते हुए, मां को मुलाकात अधिकार देते हुए पिता को लड़की की कस्टडी सौंप दी।

निर्णय

कोर्ट ने माना कि फैमिली कोर्ट ने लड़की के हित को ध्यान में रखते हुए सही फैसला किया है।

खंडपीठ ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में, एक लड़की अपनी मां के साथ बेहतर तरीके से पलती, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में भले ही आरोप अंततः सही साबित न हों, लड़की का अपने पिता के घर में रहना बेहतर होगा क्योंकि वह उसके भाई के साथ होगी।

सुपीम कोर्ट के कई निर्णयों पर भरोसा करते हुए, अदालत ने दोहराया कि बच्चे का कल्याण पक्षकारों के कानूनी अधिकारों से ऊपर है। अपील खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि वह इस बात से पूरी तरह संतुष्ट है कि लड़की फिलहाल अपने पिता के घर में ज्यादा खुश होगी।

अदालत ने कहा,

"ऐसा कहने के बाद, हम संकेत देते हैं कि यह स्थिति अपरिवर्तनीय नहीं है और भविष्य में बच्चे की इच्छा पर निर्भर करेगी। परिवार न्यायालय द्वारा निर्देशित मुलाकात अधिकारों का पालन किया जाएगा और पार्टियां इसमें सहयोग करेंगी।"

केस टाइटल: जेके बनाम आरएस और अन्य। विविध अपील संख्या 480/2022

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