एमनेस्टी इंडिया के खातों को फ्रीज करने के लिए बैंकों को निर्देश देने के ईडी के कानूनी अधिकार क्या हैं? कर्नाटक हाईकोर्ट ने पूछा
कर्नाटक हाईकोर्ट में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को यह बताने का निर्देश दिया है कि किस अधिकार के तहत उसने बैंकों को पत्र लिखकर उन्हें अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंडिया के कार्यालयों (मेसर्स इंडियंस फॉर एमनेस्टी इंटरनेशनल ट्रस्ट) के बैंक खातों को फ्रीज करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति पी एस दिनेश कुमार की एकल पीठ ने ईडी के वकील से पूछा :
''कानून के किस प्रावधान का इस्तेमाल करके उसने बैंकों को पत्र लिखा है? आदेश की प्रति भी याचिकाकर्ता को नहीं दी गई। आपके पास अधिकार के कुछ स्रोत तो होने चाहिए, इस प्रश्न का विशेष उत्तर दें।''
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रोफेसर रविवर्मा कुमार ने अंतरिम राहत का अनुरोध करते हुए दलील दी :
"यह बहुत ही गंभीर मामला है। हमें बार-बार उत्पीड़ित किया जा रहा है। हमारी रुचि केवल मानवाधिकारों के लिए कार्य करने में है। उन्होंने आगे दलील दी कि खाते फ्रीज करने की कार्रवाई की गयी है और उसके लिए कोई कारण भी नहीं दिया गया है, न ही कोई आदेश दिया गया है। इतना ही नहीं, वर्णित प्रावधानों के तहत 30 दिन के भीतर इस मामले को संबंधित न्यायिक अधिकारी के समक्ष भी नहीं रखा गया। इसलिए यह प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉण्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) की धारा 17(1)(ए) का उल्लंघन है।"
कोर्ट को यह बताया गया कि बैंक खातों को फ्रीज करने वाले अधिकारी द्वारा गत 26 नवम्बर को एक प्रोविजनल ऑर्डर जारी किया गया है।
न्यायमूर्ति कुमार ने इस पर तब पूछा कि क्या संबंधित खाते और राशि उस आदेश में शामिल हैं या नहीं? उन्होंने कहा, "यदि ऐसा है तो यह याचिका एकेडमिक नेचर की बन जाती है।"
इसके जवाब में वरिष्ठ अधिवक्ता कुमार ने दिया कि अस्थायी आदेश के तहत फिक्स्ड डिपोजिट अकाउंट सहित पांच खातों को फ्रीज नहीं किया गया है। उनमें एक करोड़ 32 लाख 86 हजार रुपये के करीब हैं।
ईडी की ओर से पेश सहायक सॉलिसिटर जनरल एम बी नारगुंड ने दलील दी कि याचिकाकर्ता को कानून के दायरे में न्यायिक अधिकारी से राहत पाने का प्रभावी विकल्प मौजूद है और उसके बाद हाईकोर्ट पहुंचने से पहले अपीलीय अधिकारी के पास जाने का भी रास्ता उपलब्ध है। इस प्रकार किसी तरह की राहत प्रदान करने के लिए यह उचित मामला नहीं है।
उन्होंने यह भी दलील दी कि कंपनी 2012 से निगरानी के तहत है और ऐसा किसी एक सरकार ने ही नहीं किया है।
कोर्ट ने आदेश जारी करने के लिए चार दिसम्बर की तारीख मुकर्रर करते हुए कहा :
"आपके पदाधिकारी ने बैंक को लिखा है और बैंक ने याचिकाकर्ता से कहा है कि हम गोपनीयता बरकरार रखने के कारण आदेश के बारे में खुलासा नहीं कर सकते, बिल्कुल ठीक। पर आप कोर्ट को यह बतायें कि आपने किस अधिकार के तहत उन्हें लेन देन करने से रोक दिया है। यह मौलिक अधिकार है।"
ट्रस्ट ने उन बैंकों के साथ ईडी द्वारा 25 अगस्त को किए गए पत्राचार को चुनौती दी है जहां उसके बैंक खाते हैं। कहा जाता है कि पिछले साल ही ट्रस्ट ने उस वक्त कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था जब उसके यही बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए थे। कोर्ट ने अंतरिम राहत प्रदान करते हुए इन खातों को ऑपरेट करने की अनुमति दे दी थी। पुराने मामलों से जुड़े खातों और इस कोर्ट द्वारा सुनवाई किए जा रहे मामले से जुड़े खातों को फिर से फ्रीज कर दिया गया है।
याचिका में बैंक खातों को ऑपरेट करने की अनुमति दिए जाने की मांग की गई है ताकि वेतन और अन्य कानूनी बकायों का भुगतान किया जा सके।
बैंक खातों को सीज किए जाने के बाद एमनेस्टी इंटरनेशनल ने गत सितंबर में घोषणा की थी कि वह भारत में अपना ऑपरेशन बंद कर रहा है।