अधिवक्ताओं की ओर से हमें प्रतिदिन बहुत सारी बीमारी की पर्ची भेजी जा रही है, इसके लिए एक मैकेनिज्म विकसित करने की आवश्यकता है: गुजरात हाईकोर्ट

Update: 2021-10-18 08:43 GMT

Gujarat High Court

गुजरात हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने आज कहा कि न्यायालय को अधिवक्ताओं की ओर से प्रतिदिन बहुत सारी बीमारी की पर्ची भेजी जा रही है और इसके लिए एक मैकेनिज्म विकसित करने की आवश्यकता है।

मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति मौना एम भट्ट की खंडपीठ ने इस प्रकार देखा जब यह बताया गया कि एक वकील ने दूसरे पक्ष की सहमति से एक बीमारी की पर्ची भेजी गई और इसलिए यह प्रार्थना की गई कि मामले को किसी और दिन सूचीबद्ध किया जाए।

इस पर मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार ने मौखिक रूप से कहा,

"हर दिन इतनी सारी बीमारी की पर्ची भेजी जा रही है। कुछ मैकेनिज्म विकसित करना होगा क्योंकि सभी उच्च न्यायालयों में, साल में 3 बार बीमार होने के पत्र दाखिल किए जा सकते हैं या कुछ 10 दिन। हम आपके बार अध्यक्ष से पता लगाएंगे कि क्या किया जा सकता है।"

मुख्य न्यायाधीश के इस अवलोकन के जवाब में एक अन्य अधिवक्ता ने प्रस्तुत किया कि वह बार के अध्यक्ष को सूचित करेंगे और वे इसके लिए कुछ काम करेंगे।

सीजे ने कहा,

"हां हां ... आप एक समाधान के साथ आएं।"

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 9 अक्टूबर को न्यायमूर्ति अरविंद कुमार को गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने को मंजूरी दी। इससे पहले वह कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। उन्होंने 13 अक्टूबर को अपने पद की शपथ ली।

संबंधित समाचारों में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक वकील (याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील) के व्यवहार की निंदा की, जिसने अदालत परिसर के भीतर मौजूद होने के बावजूद एक मामले में स्थगन की मांग करते हुए अदालत के समक्ष अपनी बीमारी की पर्ची भेज दी।

जिन परिस्थितियों में बीमारी की पर्ची भेजी गई थी, उसे देखते हुए न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की पीठ ने उन्हें अदालत के समक्ष बुलाया और उनसे एक प्रश्न पूछा गया कि क्या वह इस मामले में अदालत के समक्ष पेश हो रहे हैं।

इसके जवाब में उसने कहा कि वह इस मामले में पेश होता और कहा कि हालांकि वह अदालत में आया था, क्योंकि उसे सिरदर्द हो रहा था, इसलिए उसने एक बीमारी पर्ची भेजी थी।

न्यायालय ने वकील की इस प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए इस प्रकार टिप्पणी की थी,

"चंद्र हस मिश्रा (वकील) के इस कृत्य की निंदा की जाती है और यह बिल्कुल अस्वीकार्य है कि एक बार एक वकील अदालत में मौजूद होने के बाद उसे बीमारी की पर्ची नहीं भेजनी चाहिए थी, इस तरह की प्रथा को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।"

केस का शीर्षक - प्रगतिेश्वर सेवा ट्रस्ट बनाम गुजरात राज्य

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