'हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं, इस देश को धर्म के आधार पर बांटने की कोशिश हो रही है': मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष मंदिर परिसर के अंदर प्रवेश के लिए प्रथागत ड्रेस कोड को अनिवार्य की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी ने धर्म के नाम पर विभाजनकारी एजेंडों पर नाराजगी व्यक्त की।
चीफ जस्टिस ने यह याद दिलाते हुए कि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है, आगाह किया कि देश को धर्म के आधार पर विभाजित करने का प्रयास किया जा रहा है।
चीफ जस्टिस ने पूछा,
"सबसे महत्वपूर्ण क्या है? देश या धर्म? यह देखना वाकई चौंकाने वाला है कि कोई हिजाब के लिए, कुछ अन्य मंदिरों के अंदर धोती के लिए लड़ रहा है। क्या यह एक देश है या धर्म से विभाजित समुदाय?"
गैर-हिंदुओं को मंदिर परिसर में प्रवेश करने से रोकने और मंदिरों में प्रवेश की अनुमति के लिए प्रथागत ड्रेस कोड को अनिवार्य करने के लिए एक रंगराजन नरसिम्हन द्वारा दो जनहित याचिकाएं दायर की गई थीं।
चीफ जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी और जस्टिस डी. भरत चक्रवर्ती की पीठ इस याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
याचिकाकर्ता की व्यक्तिगत रूप से सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ने यह भी कहा:
"हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं। यह देश को धर्म के नाम पर विभाजित करने का प्रयास है। बात केवल मौलिक अधिकारों तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए। यह बात करना भी महत्वपूर्ण है कि नागरिक देश को क्या दे सकते हैं और उनके मौलिक कर्तव्य क्या हैं।"
याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से कहा कि तमिलनाडु के मंदिरों को मंदिरों में प्रवेश के लिए अनिवार्य ड्रेस कोड का संकेत देते हुए एक साइनबोर्ड लगाना चाहिए। उसने यह भी टिप्पणी की कि लोगों को 'ईसाई या 'मुस्लिम' पोशाक पहनकर मंदिरों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उसने प्रस्तुत किया कि मंदिरों की प्रथा आगम शास्त्रों द्वारा निर्धारित की जाती है।
पीठ ने कहा कि तमिलनाडु के मंदिर तिरुवनंतपुरम में श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर के विपरीत एक विशेष ड्रेस कोड पर जोर नहीं देते हैं। अदालत ने यह भी पूछा कि क्या ऐसा कोई उदाहरण है जहां लोगों ने अभद्र पोशाक पहनकर मंदिरों में प्रवेश किया हो।
पीठ ने कहा,
"नियमों में यह प्रावधान है कि अगर किसी मंदिर में रिवाज है तो उसका पालन किया जा सकता है। लेकिन याचिकाकर्ता ने इस संबंध में कुछ भी पेश नहीं किया।"
एडवोकेट जनरल आर. शुनमुगसुंदरम ने यह भी बताया कि मंदिरों के अंदर पहने जा सकने वाले परिधानों पर कुछ प्रतिबंध लगाने के लिए एकल न्यायाधीश की पीठ ने आदेश दिया है। दायर की गई रिट याचिका के दायरे से बाहर के रूप में डिवीजन बेंच द्वारा इस निर्णय को उलट दिया गया।
एडवोकेट जनरल ने यह भी कहा कि हर मंदिर का अपना रिवाज होता है- जैसे गैर-हिंदुओं को मंदिर या कुछ अन्य क्षेत्रों के फ्लैग पोस्ट से आगे नहीं जाने देना। एडवोकेट जनरल ने कहा कि अगर भक्तों ने शर्ट पहन रखी है तो उन्हें कुछ दक्षिण भारतीय मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं है। इस पर उन्होंने श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर का उदाहरण दिया।
रंगराजन नरसिम्हन ने जवाब दिया कि यदि थोड़ा समय दिया जाए तो वे आगम शास्त्रों का पाठ तैयार करने में सक्षम होंगे। तदनुसार, अदालत ने रजिस्ट्री से मामले को 10 दिनों के बाद सूचीबद्ध करने को कहा।
मंदिरों में गैर-हिंदुओं के प्रवेश को प्रतिबंधित करने की मांग वाली दूसरी रिट याचिका पर पीठ ने एडवोकेट जनरल को मानव संसाधन और सीई विभाग की ओर से एक काउंटर दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि 'दर्शन' के लिए मंदिरों में गैर-हिंदुओं का प्रवेश मंदिर परिसर की पवित्रता का उल्लंघन है।
केस शीर्षक: रंगराजन नरसिम्हन बनाम सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव और अन्य।