गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का उल्लंघनः तेलंगाना हाईकोर्ट ने आईपीएस अधिकारी और तीन अन्य पुलिस अधिकारियों को अवमानना के लिए चार सप्ताह की कैद की सजा सुनाई

Update: 2022-06-09 06:51 GMT

तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में अवमानना के एक मामले एक आईपीएस ऑफिसर और तीन पुलिस अधिकारियों को चार सप्ताह के कारावास की सजा सुनाई।

जस्टिस जी राधा रानी ने फैसला सुनाया,

मौजूदा मामले में अवमाननाकर्ताओं ने अर्नेश कुमार के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार मामले की स्थापना की तारीख से दो सप्ताह के भीतर आरोपी को धारा 41-ए सीआरपीसी के संदर्भ में पेशी का नोटिस जारी करने के न्यायालय के निर्देश का उल्लंघन किया था।

यह उल्लंघन न्याय प्रशासन और अदालती प्रणाली में जनता के भरोसे को तोड़ सकता है। इसे दंडित किया जाना चाहिए, ताकि इस तरह के व्यवहार के दोहराव और जनता के भरोसे पर प्रतिकूल प्रभाव को रोका जा सके।

न्यायालय के आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने और कानून के शासन का पालन सुनिश्चित करने के लिए अवमानना ​​की कार्यवाही शुरू की जाती है। माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश बाध्यकारी हैं और सभी संबंधितों द्वारा कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।

अवमानना का मामला उन याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किया गया था, जिन पर अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2014) में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय की जानबूझकर अवज्ञा करने के लिए अवमाननाकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने का आरोप लगाया गया था।

आरोपियों के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर (एलओसी) और गैर जमानती वारंट जारी करने से पहले याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी नहीं करने पर अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 10 से 12 के तहत अवमानना का मामला दर्ज किया गया था।

संक्षिप्त तथ्य

प्रथम याचिकाकर्ता का विवाह 25 जून 2011 को रजिस्टर्ड विवाह के माध्यम से शिकायतकर्ता के साथ हुआ था। यह पहली याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता, दोनों की दूसरी शादी थी। उनकी शादी सफल नहीं हुई और वे जुलाई 2014 से अलग रह रहे थे।

पहला याचिकाकर्ता फरवरी 2016 में अपनी बेटी और उसकी मां (यहां दूसरी याचिकाकर्ता) के साथ थाईलैंड चला गया। जब पहला याचिकाकर्ता भारत वापस आया तो शिकायतकर्ता ने एक साजिश रची और याचिकाकर्ता नंबर एक और दो और पहले याचिकाकर्ता की विधवा भाभी के खिलाफ शिकायत दर्ज की। 14 नंवंबर 2019 को भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत शि‌कायत दर्ज की गई।

याचिकाकर्ताओं या विधवा भाभी को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था। एफआईआर के बारे में जानकारी होने होने पर याचिकाकर्ताओं ने इसे रद्द करने के लिए आपराधिक याचिका दायर की और सभी कार्यवाही पर रोक लगा दी गई।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं को पता चला कि डीसीपी, वेस्ट जोन, हैदराबाद (अवमाननकर्ता एक) ने एफआईआर दर्ज होने के एक सप्ताह के भीतर एक याचिकाकर्ता के खिलाफ एलओसी जारी कर दी। शिकायतकर्ता ने एक वर्ष के बाद पश्चिम क्षेत्र के पुलिस अधिकारियों की मिलीभगत से याचिकाकर्ताओं के खिलाफ धारा 498ए, 506 आईपीसी, दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 और शस्त्र अधिनियम की धारा 30 के तहत एक और झूठी शिकायत दर्ज की। उसने पहले दर्ज की गई एफआईआर को दबा दिया था।

इस प्रकार, अवमाननाकर्ताओं को थाईलैंड में याचिकाकर्ताओं के ठिकाने के बारे में पता था। एफआईआर के संबंध में अवमाननाकर्ताओं द्वारा याचिकाकर्ताओं या अटॉर्नी या एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था।

इसके अलावा, अवमाननाकर्ताओं ने आनन-फानन में मजिस्ट्रेट के समक्ष आरोप पत्र दाखिल किया और उसी दिन तुरंत उसे क्रमांकित करा दिया। महामारी के दौरान, वैवाहिक कानूनों में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित नियमों का पालन किए बिना, अवमाननाकर्ताओं ने जानबूझकर अदालत के साथ धोखाधड़ी की और झूठी प्रस्तुतियों के माध्यम से गैर-जमानती वारंट जारी किया।

अवमानना ​​करने वालों ने आनन-फानन में आरोप पत्र दाखिल कर याचिकाकर्ताओं को फरार बताया। अवमानना ​​करने वालों द्वारा सीआरपीसी की धारा- 41ए नोटिस जारी किए बिना लुक आउट नोटिस जारी किया गया था।

याचिकाकर्ताओं/अभियुक्तों की दलीलें

शिकायतकर्ता के पक्ष में आर्थिक रूप से लाभकारी समझौता करने के लिए याचिकाकर्ताओं पर दबाव बनाने के लिए नवंबर 2019 के महीने से अवमाननाकर्ता लगातार एक के बाद एक कई झूठे मामले दर्ज कर रहे थे। एक भी मामले में याचिकाकर्ताओं को कोई नोटिस नहीं दिया गया और सभी मामले गुप्त रूप से दर्ज किए गए। जानबूझकर दुर्भावनापूर्ण अभियोजन के कारण, याचिकाकर्ताओं को न्याय की मांग करते हुए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विभिन्न याचिकाएं दायर करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान रिट याचिका संदर्भ में: COVID 19 वायरस का जेलों में संक्रमण (2021) में दोहराया कि अर्नेश कुमार के मामले में निर्धारित दिशानिर्देशों का उल्लंघन अदालत की अवमानना ​​​​के लिए और विभागीय कार्रवाई के लिए भी उत्तरदायी था।

दुर्भावनापूर्ण लुक आउट सर्कुलर और झूठे तरीके से गैर-जमानती वारंट हासिल करने के कारण, याचिकाकर्ताओं को उनके सामाजिक दायरे में घोर अपमान का शिकार होना पड़ा, जिन्हें अब भगोड़ा करार दिया गया।

प्रतिवादियों की दलीलें

प्रतिवादियों ने जवाबी हलफनामा दायर कर कहा कि अवमानना ​​का मामला पॉवर ऑफ अर्टार्नी होल्डर के माध्यम से दायर नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं को आज तक गिरफ्तार नहीं किया गया था और उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ था।

याचिकाकर्ता जांच एजेंसी के साथ सहयोग किए बिना और अदालतों में उपस्थित हुए बिना प्रतिवादी पुलिस के खिलाफ लापरवाह आरोप लगा रहे थे। कानून की प्रक्रिया का कोई दुरुपयोग नहीं हुआ था, इसलिए दुर्भावनापूर्ण अभियोजन का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि याचिकाकर्ताओं को अभी तक मामले में गिरफ्तार नहीं किया गया था।

न्यायालय के निष्कर्ष

जस्टिस जी राधा रानी ने एसी नारायणन बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2014) में माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि पॉवर ऑफ अटॉर्नी होल्डर मुकदमा चला सकता है बशर्ते उसे मामले की व्यक्तिगत जानकारी हो। प्रथम याचिकाकर्ता के जीपीए धारक द्वारा यह निर्दिष्ट किया गया था कि उन्हें वर्तमान अवमानना ​​मामले के तथ्यों की व्यक्तिगत जानकारी थी।

इसके अलावा, विद्वान न्यायाधीश ने अर्नेश कुमार के मामले में दिशा-निर्देशों पर चर्चा की और कहा कि यह सुनिश्चित करना था कि पुलिस अधिकारी किसी भी व्यक्ति को अनावश्यक रूप से गिरफ्तार न करें और मजिस्ट्रेट किसी भी व्यक्ति को यांत्रिक रूप से रिमांड न करें।

मामले में दिशानिर्देश संख्या 6 इस प्रकार है

(6) सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत पेश होने की सूचना मामले की स्थापना की तारीख से दो सप्ताह के भीतर आरोपी को तामील की जाए, जिसे लिख‌ित में दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए जिला पुलिस अधीक्षक द्वारा बढ़ाया जा सकता है।

वर्तमान मामले में, अवमाननाकर्ताओं ने धारा 41-ए सीआरपीसी के संदर्भ में पेशी का नोटिस जारी करने के न्यायालय के निर्देश का उल्लंघन किया था। इसलिए अवमानना ​​मामले की अनुमति दी गई थी।

केस टाइटल: जक्का विनोद कुमार रेड्डी बनाम श्री ए आर श्रीनिवास और 3 अन्य

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