पीड़ित को भी निष्पक्ष जांच और सुनवाई का मौलिक अधिकार है: राजस्थान हाईकोर्ट ने चौथी बार जांच स्थानांतरित करने के डीजीपी के निर्देश को रद्द कर दिया
राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में कई जुड़े आपराधिक मामलों की जांच को चौथी बार स्थानांतरित करने के राजस्थान के पुलिस महानिदेशक के आदेश को रद्द कर दिया। जयपुर में जस्टिस बीरेंद्र कुमार की एकल-न्यायाधीश पीठ ने डीजीपी के उक्त आदेश को रद्द करते हुए रेखांकित किया कि 'निष्पक्ष सुनवाई और निष्पक्ष जांच का अधिकार' 'पीड़ित का भी अधिकार' है।
इसके अतिरिक्त, अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस महानिदेशक द्वारा जारी आदेश प्रशासनिक निर्देश का उल्लंघन है कि किसी मामले को तीन बार से अधिक स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है। डीजीपी ने 13.06.2023 को जांच को अपराध शाखा को स्थानांतरित करने का कोई औचित्य नहीं बताया है।
कोर्ट ने कहा,
“जाहिर है, 13.6.2023 के आदेश में जांच के हस्तांतरण के लिए डीजीपी के निर्देश के अलावा कोई कारण नहीं बताया गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि जांच की प्रगति रिपोर्ट मांगी गई है। जांच की पहली प्रगति रिपोर्ट 7 साल के भीतर मांगी गई है...निष्पक्ष जांच और निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार पीड़ित का भी मौलिक अधिकार है।”
हाईकोर्ट के समक्ष, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आरोपी यह मांग नहीं कर सकते कि जांच उनकी पसंद की एजेंसी द्वारा की जानी चाहिए जैसा कि रोमिला थापर और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य (2018) के मामले में हुआ था।
इसलिए, अदालत ने निर्देश दिया कि सभी 6 एफआईआर की जांच पुलिस आयुक्त, जयपुर की देखरेख में अतिरिक्त डीसीपी (पश्चिम), जयपुर को स्थानांतरित की जानी चाहिए। अदालत द्वारा 2 महीने की अवधि के भीतर जांच पूरी करने और बाद में हाईकोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपने का आदेश भी दिया गया है।
केस टाइटल: टीकम खंडेलवाल पुत्र मोहन खंडेलवाल बनाम राजस्थान राज्य
केस नंबर: एसबी आपराधिक विविध आवेदन संख्या 246/2023