सुनिश्चित करें कि लक्ष्मी नारायण मंदिर परिसर को कोई नुकसान न हो, इसके पास मलबा डालना बंद करें: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अधिकारियों से कहा
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में अधिकारियों को चमोली जिले में प्राचीन लक्ष्मी-नारायण मंदिर के पास निर्माण मलबे और विध्वंस कचरे के डंपिंग को रोकने का निर्देश दिया।
चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रमेश चंद्र खुल्बे की खंडपीठ ने कहा,
"प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि मलबा फेंकने से न केवल मंदिर परिसर प्रभावित हो सकता है, बल्कि आसपास के क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर भी असर पड़ सकता है।"
पीठ ने 21 सितंबर के आदेश में आगे कहा,
"इसलिए हम निर्देश देते हैं कि मलबा का डंपिंग आसपास के क्षेत्र में यानी मंदिर परिसर के 100 मीटर के दायरे में या एप्रोच रोड पर रुकना चाहिए।"
हाट गांव की ग्राम सभा द्वारा दायर रिट याचिका में यह आदेश पारित किया गया, जहां पुराने मंदिरों का समूह स्थित है। विष्णुगढ़ पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना के निर्माण के लिए गांव का अधिग्रहण किया गया। 2011 में स्वीकृत यह परियोजना यमुना नदी बेसिन में अलकनंदा नदी पर 444 मेगावाट (मेगावाट) रन-ऑफ-द-रिवर हाइड्रोपावर प्लांट की है। इसे टिहरी हाइड्रोपावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन इंडिया लिमिटेड द्वारा बनाया जा रहा है।
अदालत ने आगे अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि मंदिर परिसर को कोई नुकसान न हो।
पीठ ने कहा,
"यह सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी होगी कि उक्त मंदिर परिसर को ठीक से संरक्षित किया जाए।"
हाट की ग्राम सभा ने अदालत के समक्ष जनहित याचिका में कहा कि टिहरी हाइड्रोपावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन इंडिया लिमिटेड गांव में अधिग्रहीत जमीन का इस्तेमाल ''मल डंपिंग'' के लिए कर रहा है। 8वीं-9वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनाए गए मंदिर के आसपास डंपिंग हो रही है।
याचिकाकर्ता ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर भरोसा किया जिसमें यह भी कहा गया कि मंदिर परिसर के आसपास डंपिंग बंद होनी चाहिए। कोर्ट को इलाके की तस्वीर भी दिखाई गई।
ग्राम सभा की ओर से पेश एडवोकेट आकाश वशिष्ठ ने तर्क दिया:
"गांव हाट में स्थित इन मंदिरों समूह 1000 वर्ष पुराना है। वह निर्माण और विध्वंस कचरे के निरंतर डंपिंग को देख रहा है। एएसआई की रिपोर्ट में सिफारिश की गई कि न केवल कचरा डंपिंग को रोकना चाहिए और दूसरे स्थान पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही साइट को भी संरक्षित करने की आवश्यकता है।"
अदालत ने कहा कि मलबा फेंकने से न केवल मंदिर परिसर प्रभावित हो सकता है बल्कि आसपास के क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर भी असर पड़ सकता है।
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC), टिहरी हाइड्रोपावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन इंडिया लिमिटेड, जिला मजिस्ट्रेट चमोली, उत्तराखंड सरकार और अन्य सहित प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुए अदालत ने उन्हें अगले चार सप्ताह के भीतर अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा।
पीठ इस मामले पर अगली सुनवाई 6 दिसंबर, 2022 को करेगी।