उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम 2019 को संवैधानिक बताया

Update: 2020-07-22 02:45 GMT

उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम, 2019 को संवैधानिकता को चुनौती देने वाली भाजपा नेता डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने ख़ारिज कर दिया है।

मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और जस्टिस आरसी खुल्बे की पीठ ने कहा,

"इस आधार पर इसे चुनौती देना कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14, 25, 26 और 31-A का उल्लंघन करता है, आवश्यक रूप से इस चुनौती को विफल होना चाहिए।"

उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम, 2019

इस अधिनियम के द्वारा चार धाम के मंदिरों के प्रबंधन का काम एक बोर्ड को सौंप दिया गया है जिसके सदस्यों को राज्य सरकार नामित करती है। बद्रीनाथ और केदारनाथ के मंदिरों का प्रबंधन इस अधिनियम के आने के पहले एक समिति करती थी जिसका गठन यूपी श्री बद्रीनाथ एवं श्री केदारनाथ मंदिर अधिनियम, 1939 के तहत हुआ था। पर अब नए अधिनियम ने इस अधिनियम की जगह ले ली है और अब गंगोत्री और यमुनोत्री धाम भी इसके अधीन आ गए हैं।

डॉक्टर स्वामी की दलील

राज्य सरकार ने डॉक्टर स्वामी की याचिका को 'राजनीतिक हित याचिका' बताया था और कहा था डॉक्टर स्वामी भी उसी पार्टी के हैं जिस पार्टी की राज्य में सरकार है। सरकार ने कहा कि ऐसा नहीं कहा जा सकता कि यह अधिनियम मनमाना है और इससे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होता है।

सरकार ने कहा कि इस अधिनियम का उद्देश्य इसके अंदर आने वाले सभी चार धामों के प्रबंधन को ज़्यादा प्रभावी बनाना है और यह इससे जुड़े अलग-अलग तरह की सुविधाओं का विनियमन करने के साथ-साथ इन मंदिरों की धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों की निगरानी करेगा।

कोर्ट ने कहा कि जब तक राज्य से यह अधिकार नहीं ले लिया जाता तब तक राज्य के पास यह आम अधिकार है कि वह किसी धार्मिक या धर्मार्थ संस्था की निगरानी करे; और इस तरह के क़ानून के द्वारा अगर ज़रूरत महसूस की जाती है तो ऐसे प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं ताकि मसले का हल निकाल सके।

अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 26 के क्लाज a, b, c और d के तहत चार धाम मंदिरों के प्रबंधन के लिए किसी भी तरह का अधिकार नहीं बनता है क्योंकि किसी धार्मिक संगठन ने इसकी स्थापना नहीं की है।

धारा 22

अधिनियम 2019 की धारा 22 में कहा गया है कि इस अधिनियम के लागू होने के दिन इन चारों धामों के मंदिरों की सभी परिसंपत्ति जो सरकार, ज़िला पंचायत, ज़िला परिषद, नगर निगम या किसी अन्य संस्था या कंपनी के अधीन है इस अधिनियम के तहत जिस दिन बोर्ड का गठन होगा, उस दिन से इस बोर्ड के अधीन माना जाएगा और इसी तरह इनकी देनदारियाँ भी बोर्ड की हो जाएंगी। इसके प्रावधान के तहत बोर्ड को अगर इसके बेहतर विकास के लिए यह उचित लगता है तो धार्मिक देवस्थानम या अन्य स्थानों के आसपास ज़मीन का अधिग्रहण कर सकता है।

डॉक्टर स्वामी ने आरोप लागाया था कि 2019 के अधिनियम से मंदिर से उसकी संपत्ति का मालिकाना हक़ ले लिया जाएगा और उसे बोर्ड को दे दिया जाएगा जैसा कि अधिनियम की धारा 22 में कहा गया है; और अब मंदिर की संपत्ति ले लिए जाने की बात हो रही है और इसे बोर्ड को दे दी जाएगी।

इस पर पीठ ने कहा,

"अगर धारा 22 को यह समझा जा रहा है कि 'चार धाम' की परिसंपत्तियों को चार धाम देवस्थानम बोर्ड को दे देना है तो फिर इस तरह का प्रावधान जिसे यह पढ़ा जा रहा है कि चार धाम की परिसंपत्तियों को बोर्ड ने अधिग्रहीत कर लिया है और इसके बदले उचित मुआवज़े की बात ही छोड़िए, किसी तरह के मुआवज़े का भुगतान नहीं किया है तो यह तर्कसंगत होने की परीक्षा में विफल रहेगा और संविधान के अनुच्छेद 14 (अनुच्छेद 300-A के साथ पढ़ें) के प्रतिकूल होगा।"

कोर्ट ने कहा,

"धारा 22 में शब्द 'सौंपा जाएगा' (shall devolve) को इस तरह पढ़ा जाएगा 'चार धाम को सौंपा जाएगा और बोर्ड इसकी देखरेख करेगा (devolve on the Char Dham and shall be maintained by the Board)। इसी तरह 'आगे ज़मीन का अधिग्रहण कर सकता है' को इस तरह पढ़ा जाएगा 'चार धाम की ओर से आगे और ज़मीन का अधिग्रहण कर सकता है।"

बोर्ड के पास चार धाम देवस्थानम की परिसंपत्तियों के मात्र प्रशासन और प्रबंधन का अधिकार होगा और तब इसकी धारा 22 ग़ैरक़ानूनी नहीं हो सकती और असंवैधानिक होने के कारण इसे हटाया नहीं जा सकता।

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