उत्तराखंड साम्प्रदायिक तनाव - हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा, लोगों को किसी खास दुकान से खरीदारी करने या न खरीदने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता

Update: 2023-06-15 09:54 GMT

उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी ने गुरुवार को राज्य के उत्तरकाशी जिले में सांप्रदायिक तनाव के मुद्दे को उजागर करने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि किसी को भी किसी विशेष दुकान से खरीदने या न खरीदने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

उत्तराखंड के पुरोला कस्बे में मुस्लिम व्यापारियों द्वारा कथित तौर पर सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार का सामना करने के संदर्भ में न्यायाधीश ने गुरुवार को यह मौखिक टिप्पणी की।

मुख्य न्यायाधीश सांघी और जस्टिस राकेश थपलियाल की पीठ पुरोला में हिंदू दक्षिणपंथी समूहों द्वारा प्रस्तावित 'महापंचायत' पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

एडवोकेट-जनरल एसएन बाबुलकर ने प्रस्तुत किया कि हिंदुत्व संगठनों ने प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद महापंचायत आयोजित करने का इरादा छोड़ दिया।

फिर भी पीठ ने नोटिस जारी किया और राज्य को निर्देश दिया कि वह कानून और व्यवस्था बनाए रखने के अपने 'संवैधानिक दायित्व' को पूरा करे और यह सुनिश्चित करे कि जान-माल का कोई नुकसान न हो।

एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स की ओर से पेश एडवोकेट शाहरुख आलम ने आगे तर्क दिया कि समस्या प्रस्तावित 'महापंचायत' से परे है और इस क्षेत्र में रहने वाले मुसलमानों द्वारा सामना किए जाने वाले कथित सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार के बारे में चिंता व्यक्त की।

उन्होंने विशेष रूप से मुस्लिम दुकान मालिकों को अपने परिसर खाली करने की धमकी देने वाले नोटिसों और विश्व हिंदू परिषद द्वारा कथित रूप से जारी एक पत्र का उल्लेख किया, जिसमें अलटीमेंट दिया गया कि अगर इलाके में मुस्लिम परिवार अपने घर छोड़कर नहीं जाते हैं तो 20 जून को 'चक्का जाम' या सड़क जाम किया जाएगा।

वकील ने क्षेत्र के मुस्लिम व्यापारियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला, जिन्हें सांप्रदायिक तनाव बढ़ने के बाद अपनी दुकानें बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आलम ने अपील की, "उन्हें अपनी दुकानें खोलने की अनुमति दी जानी चाहिए।" हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने पूछा, "राज्य या किसी का आदेश कहां है कि दुकानें खोलने की अनुमति नहीं दी जाएगी?"

आलम ने यह समझाने का प्रयास किया कि मुस्लिम दुकानदारों को अपनी दुकानें बंद करने का कोई आधिकारिक आदेश पारित नहीं किया गया, लेकिन 'भय और ध्रुवीकरण' के माहौल के कारण उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया। हालांकि शीर्ष विधि अधिकारी ने प्रतिवाद करते हुए कहा, "दिल्ली के लोग जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं हैं।"

बाद में आलम ने पीठ से कहा, "मैं जो अंतर करने की कोशिश कर रही हूं वह तात्कालिक, शारीरिक हिंसा और संरचनात्मक हिंसा के रूप में कानून-व्यवस्था के मुद्दे के बीच है जो एक संवैधानिक नुकसान की प्रकृति में है। यह सबमिशन दर्ज किया जा सकता है ताकि राज्य अपने जवाबी हलफनामे में यह सुनिश्चित कर सके कि सामान्य जीवन को फिर से शुरू किया जा सके। उन्होंने कहा, “हिंसा रोकना एक बात है, लेकिन सामान्य जीवन फिर से शुरू होना चाहिए। यह मेरा मामला है।

“चलो मामला सुनते हैं। यह केवल पहला आदेश है, ”मुख्य न्यायाधीश सांघी ने वकील से कहा।

उन्होंने यह भी जोड़ा,

"हमारा अनुभव बताता है कि जहां भी सांप्रदायिक हिंसा होती है, समय सबसे अच्छा मरहम होता है। पहली चीज जो की जानी चाहिए वह है स्थिति को नियंत्रित करना और यह सुनिश्चित करना कि जान-माल का कोई नुकसान न हो। चीजों को व्यवस्थित होने दें। आखिरकार, ये समुदाय कई दशकों और सदियों से पूरे देश में रह रहे हैं। यह मानने का कोई कारण नहीं है... आप भी लोगों को किसी विशेष दुकान पर जाकर खरीदारी करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते, ठीक उसी तरह जैसे आप लोगों को खरीदारी न करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। आप राज्य से क्या करने की उम्मीद करते हैं?"

पृष्ठभूमि

26 मई को एक हिंदू और एक मुस्लिम युवक द्वारा एक 14 वर्षीय लड़की के कथित अपहरण के बाद पहाड़ी शहर पुरोला सांप्रदायिक उन्माद से घिर गया है। कुछ स्‍थानीय निवासियों द्वारा इसे 'लव जिहाद' का मामला कहा जा रहा है।

दोनों अभियुक्तों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया, उसके बावजूद इस घटना ने कस्बे में सांप्रदायिक तनाव को भड़का दिया, जिसका असर आसपास के क्षेत्रों में भी दिखा। बाद में दक्षिणपंथी संगठनों ने कथित तौर पर कई इलाकों में विरोध प्रदर्शन किया और पुरोला में मुसलमानों की दुकानों और घरों पर हमला किया। इतना ही नहीं, 15 जून को महापंचायत से पहले परिसर खाली करने या गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी देते हुए मुस्लिम व्यापारियों की दुकानों के शटर पर देवभूमि रक्षा संगठन के नाम से नोटिस चिपका दिया गया था।

आगे दावा किया गया है कि दक्षिणपंथी हिंदुत्व संगठन 'विश्व हिंदू परिषद' ने टिहरी-गढ़वाल प्रशासन को एक पत्र लिखा है जिसमें कहा गया है कि अगर मुसलमान उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर नहीं जाते हैं तो हिंदू युवा वाहिनी और टिहरी-गढ़वाल ट्रेडर्स यूनियन विरोध में 20 जून को राजमार्ग को अवरुद्ध करेगा। रिपोर्टों से पता चलता है कि कई मुस्लिम परिवारों ने अपनी सुरक्षा के डर से शहर छोड़ दिया है।

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