किशोर संबंधों से जुड़े मामलों के लिए कानून में संशोधन का बेसब्री से इंतजार,मद्रास हाईकोर्ट ने POCSO मामले में दोषसिद्धि को बरकरार रखा

Update: 2022-12-08 16:00 GMT

Madras High Court

मद्रास हाईकोर्ट ने पॉक्सो मामले में एक व्यक्ति की दोषसिद्धि और 10 साल की सजा को बरकरार रखते हुए हाल ही में कहा कि वह किशोरों के संबंधों से जुड़े मामलों से उचित रूप से निपटने के लिए कानून में संशोधन का ''उत्सुकता'' से इंतजार कर रहा है।

जस्टिस पी वेलमुरुगन ने एक आरोपी रवि की दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की है, जिस पर मई 2014 में एक 17 वर्षीय लड़की का अपहरण करने और उससे जबरन शादी करने का आरोप है। उसे निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 366, पॉक्सो एक्ट की धारा 5 (एल) और एससी/एसटी की धारा 3(1)(डब्ल्यू)(i) रिड विद 3(2)(वीए) के तहत दोषी ठहराया था और उसे दस साल की अवधि के लिए कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।

रवि के वकील ने अपनी दलीलों में विजयलक्ष्मी व अन्य बनाम इंस्पेक्टर द्वारा राज्य मामले में एक समन्वय पीठ के एक फैसले का हवाला दिया था। जिसमें अदालत ने कहा था कि विधायिका को रिश्तों में शामिल किशोरों के मामलों को ध्यान में रखना चाहिए और पॉक्सो अधिनियम के तहत तेजी से आवश्यक संशोधन लाए जाएं।

उनका तर्क था कि पीड़िता, जिसकी उम्र 16-18 साल के बीच थी, को नाबालिग या बच्चा नहीं माना जा सकता है। वकील ने कहा, ''किशोर, जो प्यार में पड़ जाते हैं और आपसी मोह के कारण शारीरिक संबंध बना लेते हैं, उन्हें पॉक्सो अधिनियम के तहत दंडित नहीं किया जा सकता है।''

इस तर्क से निपटते हुए, जस्टिस वेलमुरुगन ने कहाः

''.... हालांकि इस न्यायालय ने यह विचार व्यक्त किया है कि किशोर व्यक्ति जिन्होंने 17 वर्ष पूरे कर लिए हैं लेकिन अभी 18 वर्ष पूरे नहीं किए हैं, उन्हें पॉक्सो अधिनियम के तहत दंडित नहीं किया जा सकता है, विद्वान भाई न्यायाधीशों के लिए बहुत सम्मान के साथ, यह विशेष न्यायाधीश की राय है और यह सभी मामलों में एक निष्कर्ष नहीं हो सकता है।''

कोर्ट ने आगे कहाः

''जबकि, कानून परिभाषित करता है कि जिस व्यक्ति ने 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है, वह एक बच्चा है। यह न्यायालय, एक अपीलीय अदालत होने के नाते एक फाइनल फैक्ट फाइंडिंग कोर्ट है,जो क़ानून से परे नहीं जा सकता है। यह न्यायालय भी कानून में संशोधन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है,जैसा कि मेरे विद्वान भाइयों द्वारा व्यक्त किया गया है।''

कोर्ट ने इस दलील के आधार पर दोषी को कोई राहत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता नाबालिग थी और अपीलकर्ता रवि ने बिना जानकारी या उसके प्राकृतिक अभिभावकों की सहमति के उसको अपनी कस्टडी में ले लिया था और फिर उसका यौन उत्पीड़न किया। अदालत ने कहा कि रवि द्वारा किया गया अपराध पॉक्सो अधिनियम की धारा 5 (एल) के तहत आता है जो धारा 6 के तहत दंडनीय है।

कोर्ट ने कहा,

''यह अदालत, एक अपीलीय अदालत होने के नाते, तथ्य खोजने और पूरे सबूतों की फिर से सराहना करने वाली फाइनल कोर्ट है। जिसने पाया है कि अपीलकर्ता ने भारतीय दंड संहिता की धारा 366, पॉक्सो एक्ट की धारा 5 (एल) (जो की धारा 6 के तहत दंडनीय है ) और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(डब्ल्यू)(i) रिड विद 3(2)(वीए) के तहत दंडनीय अपराध किया है और ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को दोषी ठहराकर और उसे सजा सुनाकर सही किया है।''

हाईकोर्ट के समक्ष अपील में, रवि के वकील ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष कथित अपराध के समय पीड़िता की उम्र साबित करने में विफल रहा है। यह भी तर्क दिया गया कि स्कूल प्रमाणपत्र बहुत बाद में प्राप्त किया गया था। अदालत को बताया गया कि पीड़ित लड़की की जांच करने वाले डॉक्टर ने अभियोजन पक्ष को पीड़िता की उम्र का पता लगाने के लिए रेडियोलॉजी टेस्ट के लिए भेजने की सलाह दी थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

यह भी तर्क दिया गया कि चूंकि अभियोजन पक्ष उनके मामले को संदेह से परे साबित नहीं कर सका, इसलिए रवि को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए।

इस दलील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि हालांकि स्कूल प्रमाण पत्र की वास्तविकता का अनुमान खंडन योग्य था, ''कानून के तहत दिए गए तरीके से इस अनुमान का खंडन करने का भार बचाव पक्ष पर था।''

''हालांकि, वर्तमान मामले में, बचाव पक्ष ने पीडब्ल्यू 1/पीड़िता के पिता, पीडब्ल्यू 2/पीड़िता, पीडब्ल्यू 7/हेड मिस्ट्रेस और पीडब्ल्यू 13/जांच अधिकारी के समक्ष स्कूल अथॉरिटी द्वारा जारी स्कूल सर्टिफिकेट में उल्लिखित जन्म तिथि के बारे में ऐसा कोई सुझाव भी नहीं रखा था कि स्कूल सर्टिफिकेट में उल्लिखित जन्म तिथि पीड़िता के जन्म की सही तारीख नहीं है और यह बाद की सोच थी।''

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह मान भी लिया जाए कि पीड़िता स्वेच्छा से रवि के साथ गई और अपनी सहमति दी, तो भी ऐसी सहमति को वैध नहीं कहा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी नाबालिग की किशोरावस्था का फायदा नहीं उठा सकता है।

अदालत ने कहा, ''एक बार जब अदालत ने यह घोषित कर दिया है कि पीड़िता एक नाबालिग थी और वह पॉक्सो अधिनियम की परिभाषा के तहत आती है, तो सहमति का कोई महत्व नहीं है।''

केस टाइटल-रवि उर्फ विरुमंडी बनाम राज्य व अन्य

साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (एमएडी) 501

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