यूपी की फैमिली कोर्ट ने महिला को दिया निर्देश,अपने पति को 1000 रुपये मासिक गुज़ारा भत्ता दें
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले की एक फैमिली कोर्ट ने एक महिला को निर्देश दिया है कि वह अपने पति को मासिक गुज़ारा भत्ते का भुगतान करें, पीटीआई ने इस संदर्भ की रिपोर्ट प्रकाशित की है।
महिला जो एक सरकारी पेंशनभोगी है और उसका पति कई वर्षों से अलग रह रहे हैं। महिला के पति ने वर्ष 2013 में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत एक याचिका दायर अपनी पत्नी से भरण पोषण की मांग की थी।
फैमिली कोर्ट ने उसकी याचिका को अनुमति देते हुए महिला को भरण पोषण के रूप में 1,000 रुपये प्रति माह का भुगतान करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि वह एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी है और उसे प्रति माह 12,000 रुपये पेंशन मिल रही है।
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत कहा गया है कि
" जहां इस अधिनियम के तहत किसी भी कार्यवाही में अदालत को यह प्रतीत होता है कि या तो पत्नी या पति, जैसा भी मामला हो, उसके पास अपने रखरखाव और कार्यवाही के आवश्यक खर्चों के लिए कोई स्वतंत्र पर्याप्त आय नहीं है, तो ऐसे में पति या पत्नी की तरफ से दायर आवेदन पर, प्रतिवादी को कार्यवाही के खर्च का भुगतान करने और कार्यवाही के दौरान मासिक राशि देने का आदेश दे सकती है। इस तरह की राशि का निर्धारण, अदालत याचिकाकर्ता की अपनी आय और प्रतिवादी की आय को ध्यान में रखकर कर सकती है।"
अधिनियम की धारा 25 स्थायी गुजारा भत्ता और रखरखाव से संबंधित है और यह प्रावधान करती है कि पति और पत्नी दोनों ही इसकी मांग कर सकते हैं।
गोविंद सिंह बनाम श्रीमती विद्या (एआईआर 1999 राजस्थान 304) मामले में राजस्थान हाईकोर्ट ने माना है कि धारा 24 के तहत कहा गया है कि कोई भी पक्षकार रखरखाव के लिए एक आवेदन दायर कर सकता है, बशर्ते कि ऐसी पार्टी के पास निर्वाह का कोई साधन न हो और दूसरा पक्ष रखरखाव प्रदान करने की स्थिति में हो।
''लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जो पति अपनी जीविका कमाने में सक्षम है, उसे जीविकोपार्जन बंद कर देना चाहिए और पत्नी की कमाई के आधार पर निर्भर रहना शुरू कर दे ... यह अच्छी तरह से स्थापित मैक्सिम ऑफ एंग्लो सेक्सन न्यायशास्त्र है कि किसी भी व्यक्ति को खुद को अक्षम करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह मैक्सिम कमाने वाले पति पर लागू होता है। जो व्यक्ति स्वेच्छा से खुद को कमाई से अक्षम करता है, वह दूसरे जीवनसाथी से रखरखाव का दावा करने का हकदार नहीं है।'' अदालत ने पति की तरफ से रखरखाव की मांग करते हुए दायर एक याचिका को खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया था। इस विचार का मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने यशपाल सिंह ठाकुर बनाम श्रीमती अंजना राजपूतःएआईआर 2001 एमपी 67 के मामले में अनुपालन किया था।
वी.एम निव्या बनाम एन.के. शिवप्रसाद मामले में केरल हाईकोर्ट ने एक फैमिली कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दायर अपील पर विचार किया था,जिसमें पति की उस मांग को स्वीकार कर लिया था,जिसमें उसने अपनी पत्नी से रखरखाव मांगा था। न्यायालय ने धारा 24 और उपरोक्त हाईकोर्ट के निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि,''धारा 24 से यह स्पष्ट है कि याचिका उस पति या पत्नी की तरफ से दायर की जा सकती है,जिसके पास नौकरी नहीं है और अपने रखरखाव और मुकदमे का खर्च वहन करने के लिए कोई आय नहीं है। ऐसे में वह रखरखाव प्रदान करने में समक्ष अपने पति या पत्नी से इसकी मांग कर सकता है। इसलिए इस प्रयोजन के लिए पति द्वारा दायर याचिका अधिनियम की धारा 24 के शब्दों के आधार पर पूरी तरह से बनाए रखने योग्य है।''
हालांकि फैमिली कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने माना था कि यह कोई सामान्य प्रथा नहीं होनी चाहिए कि पति अपनी कार्यरत पत्नी से रखरखाव मांगे,जबकि वह कुछ काम करके खुद को बनाए रखने में सक्षम है।
रानी सेठी बनाम सुनील सेठी मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा था, जिसमें पत्नी को निर्देश दिया गया था कि वह अपने पति को प्रतिमाह 20000 रुपये रखरखाव का भुगतान करें और दस हजार रुपये मुकदमेबाजी के खर्च के लिए और पति के उपयोग के लिए उसे जेन कार भी प्रदान करें। ''हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 का उद्देश्य ऐसे पति या पत्नी को सहायता प्रदान करना है, जिनके पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है और वे खुद को बनाए रखने में असमर्थ हैं।
यह तय कानून है कि ''स्पोर्ट'' शब्द को एक संकीर्ण तरीके से सीमित नहीं किया जाना चाहिए ताकि इसके अर्थ का निर्वाह हो सके। इसका मतलब यह है कि पति या पत्नी, जिसके पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है, उसे यह रखरखाव प्रदान किया जाए ताकि वह वैसा ही जीवनयापन कर सकें,जैसा कि वह वैवाहिक घर में कर रहा था।
कोर्ट ने कहा कि धारा 24 का यह उद्देश्य है कि पत्नी या पति, जिनके पास या उनके समर्थन के लिए या कार्यवाही के खर्च के लिए आय का कोई पर्याप्त स्रोत नहीं है, उन्हें ऐसी उचित राशि प्रदान की जानी चाहिए ताकि वह दोनों जीवनसाथी के बीच इक्विटी बनाई रखी जा सके।''