गैर-पेशेवर आचरण को गम्भीरता से लिया जाना चाहिए : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने वकील को पेशागत दुराचार के लिए फटकार लगायी

Update: 2020-11-23 04:57 GMT

Himachal Pradesh High Court

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक वकील को पेशागत दुराचार के लिए फटकार लगाई।

न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति ज्योत्स्ना रेवल दुआ की खंडपीठ ने कहा,

"कानूनी पेशा एक नेक पेशा है। कानून की प्रैक्टिस करने वाले व्यक्ति को ईमानदारी की भावना से काम करना पड़ता है, न कि शरारत करने या पैसे कमाने की भावना से।" कोर्ट ने कहा कि हलफनामे का सत्यापन केवल एक औपचारिकता भर नहीं है।

कोर्ट ने यह फटकार उस वक्त लगायी जब उसे पता चला कि जिस वक्त इस कोर्ट के समक्ष अभियुक्त की ओर से याचिकाएं दायर की गयी थी, अभियुक्त देश से बाहर था, जबकि उसके द्वारा दायर हलफनामे से यह स्पष्ट है कि उसका सत्यापन शिमला में हुआ है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा आरोपी के वकील द्वारा आरोपी की उपस्थिति दिखलाने के लिए किया गया था, ताकि अनुचित लाभ प्राप्त किया जा सके। कोर्ट ने आगे कहा कि वकील ने ओथ कमिश्नर (शपथ कमिश्नर) को गुमराह किया था, जिन्होंने उसके उस बयान पर भरोसा करके हलफनामा को सत्यापित किया था कि उसके मुवक्किल कोर्ट परिसर के बाहर मौजूद हैं और उसे कोविड 19 महामारी के मद्देनजर बार रूम में प्रवेश की इजाजत नहीं मिल रही है।

हालांकि, वकील ने इस व्यवहार के लिए बिना शर्त माफी की पेशकश की थी, लेकिन बेंच ने विभिन्न निर्णयों को संदर्भित किया, जो वकीलों के साथ पेशेवर कदाचार से निपटते हैं।

कोर्ट ने निम्नलिखित टिप्पणियां करते हुए कहा कि संबंधित वकील इस तरह के पेशागत दुराचार के लिए सजा पाने का हकदार है :

"यह तय है कि कानूनी प्रैक्टिस किसी अन्य व्यवसाय या पेशे के समान नहीं है, क्योंकि इसमें दोहरा कर्तव्य निहित होता है - कोर्ट के प्रति प्राथमिक कर्तव्य और दूसरा कर्तव्य मुकदमा लड़ने वाले व्यक्ति की ओर से कोर्ट के समक्ष उसका (मुवक्किल का) पक्ष रखने का विशेषाधिकार। पेशेवर के तौर पर कानूनी पेशे की नेकनीयती से समझौता कानून के शासन के प्रति लोगों के भरोसे को प्रभावित करने वाला होता है और इसलिए एक वकील के पेशागत दुराचार पर गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिए। कानून का प्रैक्टिस करने वाले एक व्यक्ति का दायित्व है कि वह पेशागत मूल्यों और नैतिकता के उच्च मानक और सत्यनिष्ठा को बनाये रखे।"

बेंच ने माफीनामा को ध्यान में रखते हुए भले ही कोई कठोर सजा नहीं दी, लेकिन इसके बजाय, खंडपीठ ने कोर्ट का बेशकीमती समय जाया करने के लिए एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने इस मामले में शपथ कमिश्नर और एक अन्य वकील को जबरन घसीटने के लिए क्रमश: 50 हजार रुपये और एक लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

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