आईपीसी की धारा 354ए के तहत गंभीर अपराध का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज करने में अस्पष्ट देरी प्रोसीक्यूशन के लिए घातक: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2023-09-04 11:46 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने भातीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354ए के तहत अपराध का आरोप लगाने वाली महिला द्वारा कथित घटना होने के तीन साल बाद शिकायत दर्ज कराने के लिए शुरू किया गया प्रोसीक्यूशन रद्द कर दिया।

जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने याचिका स्वीकार कर ली और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354ए, 354बी और 504 के तहत दायर प्रोसीक्यूशन यह कहते हुए रद्द कर दिया कि इस मामले के विशिष्ट तथ्यों में अपराध दर्ज करने में देरी घातक है।

कोर्ट ने कहा,

“शिकायत पर गौर करने से शिकायत दर्ज करने में देरी के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं मिलता है। इस मामले के विशिष्ट तथ्यों में देरी इस कारण से घातक है कि कथित अपराध आईपीसी की धारा 354ए और 354बी के तहत दंडनीय हैं। वे गंभीर हैं, जो शिकायतकर्ता की विनम्रता को ठेस पहुंचा सकते हैं।

21.01.2020 को दर्ज की गई शिकायत में आरोप लगाया गया कि शिकायतकर्ता ने अमन अफराज नामक व्यक्ति से शादी की और अपने पति के साथ विशेष घर में रहने लगी। यहां याचिकाकर्ता उनका पड़ोसी है।

2017 में याचिकाकर्ता शिकायतकर्ता के करीब आ गया और उससे शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहकर अपनी दोस्ती का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। याचिकाकर्ता ने उनके फोन कॉल और वीडियो रिकॉर्ड किए और उन्हें शिकायतकर्ता के साथ दुर्व्यवहार करने के लिए अपने पति और जीजा को दिखाया, जिसके बाद उन्होंने रिकॉर्डिंग हटा दी थी। जांच के बाद पुलिस ने मामले में आरोप पत्र दाखिल किया।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यदि घटना 2017 में हुई तो शिकायतकर्ता को पिछले तीन वर्षों से शिकायत दर्ज करने से कोई नहीं रोक सका। उन्होंने तर्क दिया कि अत्यधिक देरी के लिए शिकायत रद्द कर दी जानी चाहिए।

पीठ ने कहा कि हालांकि शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता जमाखंडी में एक-दूसरे के बगल में रहते हैं, लेकिन शिकायत महाराष्ट्र राज्य के सतारा में दर्ज की गई। शिकायत में बताई गई घटना वर्ष 2017 की है। शिकायत 15.11.2019 को दर्ज की गई, जो ट्रांसफर होने पर क्षेत्राधिकारी पुलिस, जामखंडी सर्कल के समक्ष अपराध बन गई।

तब यह माना गया कि शिकायत के अवलोकन से शिकायत दर्ज करने में देरी के लिए स्पष्टीकरण का कोई संकेत नहीं मिला। इस मामले के विशिष्ट तथ्यों में देरी इस कारण से घातक है कि कथित अपराध आईपीसी की धारा 354ए और 354बी के तहत दंडनीय हैं। वे गंभीर भी हैं, जो शिकायतकर्ता की विनम्रता को ठेस पहुंचा सकते हैं।

कोर्ट ने इसमें जोड़ा गया,

“शिकायतकर्ता दो साल तक इंतजार नहीं कर सकता और कर्नाटक के जामखंडी सर्कल में हुई घटना के लिए महाराष्ट्र में कहीं और अपराध दर्ज नहीं कर सकता। प्रथम दृष्टया शिकायत कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।”

चंचलापति दास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य [2023 एससीसी ऑनलाइन 650] के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए, जिसमें अदालत ने माना कि शिकायत सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अदालत के सामने लाई गई थी। जहां घोर अस्पष्टीकृत देरी हो या देरी की व्याख्या असंतोषजनक हो, वहां इसकी जांच करनी होगी। वे परिस्थितियां बन जाएंगी, जहां न्यायालय सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करेगा। इसलिए कार्यवाही रद्द करें।

पीठ ने कहा,

"यह मामला चंचलापति दास (सुप्रा) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है उसका उत्कृष्ट उदाहरण है। इसलिए आगे की कार्यवाही की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और इसके परिणामस्वरूप न्याय का गर्भपात होगा।"

तदनुसार, कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली।

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