UAPA की धारा 45 के तहत अनुमति प्राधिकरण का निर्धारण करने के लिए घटनास्‍थल नहीं, बल्‍कि जांच एजेंसी महत्वपूर्णः केरल हाईकोर्ट

Update: 2021-01-07 16:57 GMT

केरल हाईकोर्ट

गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) की धारा 45 के तहत अनुमोदन प्राध‌िकारी का निर्धारण करने के लिए घटना की जगह मायने नहीं रखेगी। केरल हाईकोर्ट ने काठिरूर मनोज हत्या मामले में माकपा नेता पी जयराजन और अन्य अभियुक्तों की अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

चीफ जस्टिस एस मणिकुमार और जस्टिस शाजी पी चैली की खंडपीठ ने कहा कि अनुमोदन प्राधिकरण के निर्धारण के लिए जो सवाल मायने रखता है, वह यह है कि जांच एजेंसी को कौन नियंत्रित करता है।

अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया था कि चूंकि अपराध केरल में हुआ है, इसलिए विशेष अदालत को यूएपीए अपराधों का संज्ञान लेने के लिए राज्य सरकार की अनुमति आवश्यक थी।

इस दलील को खारिज करते हुए, खंडपीठ ने कहा,

"हमारे विचार में, उपरोक्त प्रावधानों को एक साथ पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि उस अपराध की घटना का स्थान मायने नहीं रखता है बल्‍कि केंद्र सरकार के नियंत्रण में जांच का संचालन करने वाली एजेंसी मायने रखती है, जो है, और, निश्‍चित रूप से, मौजूदा मामले में केंद्र सरकार के नियंत्रण में एक एजेंसी द्वारा जांच की गई है और यूएपीए के धारा 15 और 16 के तहत अपराध को अंतिम रिपोर्ट में शामिल किया गया है, और इसलिए, केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई अनुमति वैध रूप से गठित होती है।

यह भी स्पष्ट है कि केवल इसलिए कि केंद्रीय एजेंसी राज्य के भीतर किसी अपराध की जांच करती है, यह कभी भी राज्य सरकार के नियंत्रण में नहीं होता है, विशेष रूप से इस तथ्य के कारण कि उपरोक्त अधिनियमों के तहत ऐसा कोई भी प्रावधान नहीं है।

जिसका अर्थ यह है कि जांच का संचालन करने वाली केंद्रीय एजेंसी हमेशा केंद्र सरकार के नियंत्रण में होती है और किसी भी परिस्थिति में उसकी शक्ति राज्य सरकार को नहीं दी जा सकती है, भले ही जांच राज्य के भीतर हो रही हो।" (अनुच्छेद 36)

डिवीजन बेंच 15 मार्च, 2018 को पारित एक एकल पीठ के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने संज्ञान लेने के आदेश के साथ हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।

अपीलार्थी, जो माकपा सदस्य हैं- ने सत्र न्यायालय, थैलासेरी के आदेश को चुनौती दी थी, जिसने यूएपीए की धारा 16-ए, 15 (1) (ए) (i) और 19 साथ में पढ़ें, के तहत अपराधों का संज्ञान ‌लिया था, जो कि ई मनोज, (काठिरूर मनोज) नामक एक आरएसएस पदाधिकारी की हत्या के संबंध में था। अपीलकर्ताओं के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के कारण यूएपीए कानून लगाया गया था।

शुरुआत में, राज्य पुलिस ने मामले की जांच की थी। चूंकि मामले में यूएपीए की धाराओं तहत अपराध शामिल थे, इसलिए राज्य सरकार, की सहमति से केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच अपने हाथ में ले ली। इसके बाद, केंद्र सरकार ने इन पांच अभियुक्तों के खिलाफ अभियोजन को मंजूरी दी।

अभियुक्तों का मुख्य तर्क यह था कि यह राज्य सरकार है जिसे यूएपीए अधिनियम की धारा 45 के तहत अभियोजन के लिए मंजूरी देने का अधिकार है क्योंकि यह अपराध केरल सरकार के अधिकारक्षेत्र के भीतर ‌हुआ है। अपीलकर्ता, बी रमन पिल्लई और के गोपालकृष्ण कुरुप की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने धारा 45 (1)(ii) में शामिल वाक्यांश 'जैसा कि मामला हो सकता है' पर भरोसा जताया ‌था और कहा था चूंकि कथित घटना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में हुई है, इसलिए राज्य सरकार का ही मंजूरी देनी चाहिए, ना कि केंद्र सरकार को।

अदालत ने विवाद का इस आधार पर खंडन किया कि यूएपीए अधिनियम के तहत संज्ञान लेने की मंजूरी देने के लिए, घटना का स्थान मायने नहीं रखता, बल्‍कि जांच एजेंसी मायने रखती है।

बेंच ने फैसले में कहा है,"हमारे अनुसार, धारा 45 का पठन स्वयं ही स्पष्ट कर देता है कि यह उस क्षेत्र का प्रश्न नहीं है, जिसे मंजूरी देने के मामले में ध्यान में रखा जाना चाहिए। क्योंकि, धारा 45 (1) की उपधारा (i) के तहत, हालांकि मौजूदा अपील पर लागू नहीं होता है, यह निर्दिष्ट किया जाता है कि केंद्र सरकार या केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी की पूर्व अनुमति के बिना, कोई भी अदालत अध्याय III के तहत अपराध का संज्ञान नहीं लेगी। अध्याय III गैरकानूनी संगठन के सदस्य के अपराध और दंड से संबंध‌ित है और यह भारत के अधिकार क्षेत्र के भीतर जहां भी होता है, केंद्र सरकार या उसकी ओर से नियुक्त अधिकारी की अनुमति सुनिश्च‌ित किया जानी चाहिए...

इसलिए, हमारे अनुसार, धारा 45 के प्रावधान यह स्पष्ट करते हैं कि घटना का स्थान मायने नहीं रखता है, बल्कि जांच एजेंसी मायने रखती है। "

डिवीजन बेंच ने केंद्र सरकार के अनुमति आदेश के गुणों की जांच करने से परहेज किया। बेंच ने कहा कि यह मामला ट्रायल में तय होगा। बेंच ने कहा, "अनुमोदन आदेश की वैधता की जांच विशेष न्यायालय द्वारा की जाएगी और निश्चित रूप से, अपीलकर्ताओं के पास भारत सरकार द्वारा जारी अनुमोदन आदेश की सत्यता और वैधता पर सवाल उठाने की पर्याप्त स्वतंत्रता है।"

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