दो महिलाओं को 128 दिनों तक अवैध हिरासत में रखा गया, मद्रास हाईकोर्ट ने 5-5 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य को उन दो महिलाओं को पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है, जिन्हें अनधिकृत रूप से चार महीने से अधिक समय तक प्रीवेंटिव डिटेंशन (निवारक हिरासत) में रखा गया था।
जस्टिस एस वैद्यनाथन और जस्टिस ए डी जगदीश चंडीरा की खंडपीठ ने कहा,
''मामले में घटनाओं का क्रम किसी भी संदेह से परे यह प्रकट करता है कि यह नौकरशाही की सुस्ती और निष्क्रियता का एक उत्कृष्ट मामला है, जिसने भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने में अहम भूमिका निभाई है।''
नागापट्टिनम जिले के जिला मजिस्ट्रेट के एक आदेश के आधार पर महिलाओं को बूटलेगर्स घोषित किए जाने के बाद एहतियातन हिरासत में ले लिया गया था। हालांकि 16 मार्च को सलाहकार बोर्ड ने राय दी थी कि उनको हिरासत में रखने के लिए पर्याप्त कारण नहीं है,लेकिन फिर भी अदालत के हस्तक्षेप के बाद ही 22 जुलाई को निरस्तीकरण आदेश पारित किया गया था।
1964 के तमिलनाडु अधिनियम नंबर 14 के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए, अदालत ने कहा कि सलाहकार बोर्ड की राय के बाद राज्य सरकार को डिटेंशन आर्डर को रद्द करने और दोनों महिलाओं को तुरंत रिहा करना चाहिए था।
अदालत ने कहा, ''1982 के अधिनियम 14 की धारा 12 (2) में दिए गए ''निरस्त'' और ''तुरंत रिहा करना'' शब्द को एक साथ पढ़ना भारत के संविधान के तहत गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने में विधायिका के एक मजबूत दावे को व्यक्त करता है।''
दो महिलाओं, मुथुलक्ष्मी और साथिया को बूटलेगर्स के रूप में हिरासत में लिए जाने के बाद, उनके परिवारों ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं (हैबियस कार्पस) के माध्यम से मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्हें अवैध हिरासत में रखा गया है।
अदालत ने 21 सितंबर के आदेश में कहा कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि 16 मार्च को सलाहकार बोर्ड की राय मिलने के बाद, फाइल को तुरंत मंत्री के अनुमोदन के लिए परिचालित किया गया था। यह भी कहा कि हालांकि मंत्रालय ने 17 मार्च को मंजूरी दे दी थी, लेकिन 21 जुलाई को मामला अदालत में पहुंचने और अदालत द्वारा नाराजगी व्यक्त करने के बाद ही 22 जुलाई को गृह, मद्य निषेध और आबकारी विभाग द्वारा निरस्तीकरण आदेश पारित किया गया था।
निरस्तीकरण आदेश पारित करने में इतनी देरी करने के कारण पर अदालत द्वारा रिपोर्ट मांगे जाने के बाद, सरकार ने जवाब में कहा कि देरी सहायक अनुभाग अधिकारी और अनुभाग अधिकारी की ओर से मंत्री कार्यालय में फाइल का फॉलोअप करने में हुई देरी के कारण हुई थी। राज्य ने यह भी कहा कि दोषी अधिकारियों के खिलाफ आवश्यक विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी गई है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता सभी व्यक्तियों को दी जाती है, चाहे व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में रखा गया हो। यह एक दोषी के रूप में कारावास की सजा भुगत रहे व्यक्ति पर भी लागू होती है और कोई व्यक्ति केवल एक प्रीवेंटिव डिटेंशन आर्डर के कारण अपने इस मौलिक अधिकार को नहीं खो देता है।
अदालत ने संविधान द्वारा सभी व्यक्तियों को दिए गए स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए राज्य के कर्तव्य पर जोर देने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए विभिन्न फैसलों पर भी भरोसा दिया।
पीठ ने कहा,''हालांकि यह देखना अदालत का कर्तव्य है कि कोई भी व्यक्ति, जो कानून द्वारा बनाई गई सीमाओं को पार करता है, उसके साथ उचित तरीके निपटा जाए, लेकिन व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गरिमा को बनाए रखना भी अदालतों का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य है।''
इस प्रकार, 128 दिनों की अवैध हिरासत को देखते हुए, अदालत ने राज्य को छह महीने के भीतर बंदियों को मुआवजा देने का निर्देश दिया है। यह भी कहा गया है कि अगर वे हर्जाने के लिए दीवानी मुकदमा दायर करने का फैसला करती हैं तो इस राशि को हर्जाने के रूप में बंदियों को दी गई किसी भी राशि में समायोजित किया जा सकता है।
केस टाइटल- मनोकरण बनाम राज्य
केस नंबर- एचसीपी नंबर- 297/2022
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (एमएडी) 412
याचिकाकर्ता के वकील- श्री के.ए.एस.प्रभु
प्रतिवादियों के लिए वकील-राज्य लोक अभियोजक श्री मोहम्मद अली जिन्ना व अतिरिक्त लोक अभियोजक श्री एम.बाबू मुथुमीरन
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