आगामी शैक्षणिक सत्र से 5 वर्षीय एलएलबी कोर्स में फॉरनर नेशनल्स के लिए एडमिशन कोटा शामिल करने का प्रयास करें: हाईकोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से कहा
दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से कहा कि वह यूनिवर्सिटी के मौजूदा नियमों के अनुसार, आगामी शैक्षणिक सत्र से अपने नए शुरू किए गए पांच वर्षीय एकीकृत लॉ कोर्स में फॉरनर नेशनल्स के लिए एडमिशन कोटा शामिल करने का प्रयास करे।
जस्टिस पुरुषइंद्र कुमार कौरव ने हालांकि वर्तमान शैक्षणिक सत्र (2023-2024) के लिए फॉरनर नेशनल्स स्टूडेंट कोटा के तहत पांच वर्षीय लॉ कोर्स में एडमिशन की मांग करने वाली विदेशी नागरिक की याचिका खारिज कर दी।
अदालत ने कहा,
“चूंकि प्रतिवादी नंबर 1-यूनिवर्सिटी ने संबंधित शैक्षणिक वर्ष यानी 2023-2024 में एडमिशन नहीं देने का नीतिगत निर्णय लिया है, जिसके लिए बीबीए एलएलबी (ऑनर्स) पांच वर्षीय एकीकृत प्रोग्राम छोड़कर लगभग पूरी एडमिशन प्रक्रिया समाप्त हो गई है ( स्पॉट राउंड-1) चल रहा है, इस अदालत को उपरोक्त निर्णय में हस्तक्षेप करने और प्रतिवादी नंबर 1- यूनिवर्सिटी को याचिकाकर्ता को इस कैटेगरी के खिलाफ एडमिशन देने का निर्देश देने का कोई कारण नहीं मिलता है।''
इसमें कहा गया:
"हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रतिवादी नंबर 1-यूनिवर्सिटी को मौजूदा नियमों के अनुसार आगामी शैक्षणिक सत्र से संबंधित कोटा शामिल करने का प्रयास करना चाहिए।"
याचिकाकर्ता ने दिल्ली यूनिवर्सिटी को वर्तमान शैक्षणिक सत्र के लिए फॉरनर नेशनल्स स्टूडेंट रजिस्ट्री दिशानिर्देशों के अनुसार एकीकृत पांच वर्षीय बीए एलएलबी (ऑनर्स) या बीबीए एलएलबी (ऑनर्स) कोर्स में फॉरनर नेशनल्स के एडमिशन के लिए प्रावधान करने का निर्देश देने की मांग की।
उनका मामला है कि विदेशी नागरिकों को 10% तक पर्याप्त आरक्षण प्रदान न करने की यूनिवर्सिटी की कार्रवाई दिल्ली यूनिवर्सिटी एक्ट, 1922 के प्रावधानों के साथ-साथ 27 दिसंबर, 1983 और दिसंबर 10, 2021 को इसकी अकादमिक परिषद द्वारा लिए गए निर्णय का उल्लंघन है।
यह प्रस्तुत किया गया कि दिल्ली यूनिवर्सिटी फॉरनर नेशनल्स स्टूडेंट के लिए 10% तक सीटें प्रदान करने के लिए बाध्य है और उसे अपने प्रॉस्पेक्टस में कोटा देना चाहिए।
दूसरी ओर, यूनिवर्सिटीने यह रुख अपनाया कि याचिकाकर्ता के पास पांच साल के लॉ कोर्स में फॉरनर नेशनल्स स्टूडेंट की कैटेगरी में एडमिशन का दावा करने का कोई निहित कानूनी अधिकार नहीं है और यूनिवर्सिटी द्वारा फॉरनर स्टूडेंट के लिए संबंधित कोर्स के लिए कोई कोटा निर्धारित नहीं किया गया।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि यदि यूनिवर्सिटी को संबंधित वर्ष यानी 2023-2024 के लिए फॉरनर नेशनल्स कोटा बनाना है तो इसके लिए विभिन्न सरकारी एजेंसियों से विभिन्न अनुमोदन की आवश्यकता होगी।
याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि अकादमिक परिषद के आदेशों में केवल वह प्रतिशत निर्धारित किया गया, जिस तक फॉरनर नेशनल्स कैटेगरी के तहत एडमिशन दिया जा सकता है।
जस्टिस कौरव ने कहा कि आदेशों को याचिकाकर्ता के पक्ष में एक अपरिहार्य अधिकार बनाने के लिए नहीं माना जा सकता है, उन्होंने कहा कि वे प्रकृति में अनिवार्य नहीं हैं।
अदालत ने कहा,
“…जब अकादमिक परिषद ने फॉरनर नेशनल्स स्टूडेंट की कैटेगरी में 5% या 10% एडमिशन के अनुदान के लिए अनिवार्य रूप से प्रावधान नहीं किया है तो उस प्रभाव के लिए किसी भी निर्देश का कोई सवाल ही नहीं है। इसलिए वकील द्वारा लिए गए निर्णय की कोई प्रासंगिकता नहीं होगी।”
इसने नोट किया कि यूनिवर्सिटी ने अपने जवाबों में विभिन्न कारणों का संकेत दिया कि वर्तमान शैक्षणिक वर्ष में फॉरनर नेशनल्स स्टूडेंट को एडमिशन क्यों नहीं दिया जा सकता है।
अदालत ने कहा,
“तदनुसार, मौजूदा याचिका लंबित आवेदनों के साथ खारिज की जाती है।”
याचिकाकर्ता के वकील: राजीव जयपाल, प्रीति अग्रवाल, तारा शंकर झा और सुमित सूरी और प्रतिवादियों के वकील: मोहिंदर जेएस रूपल, हार्दिक रूपल, अमीषा जैन और सचप्रीत कौर।
केस टाइटल: माही नील जयपाल (माइनर) बनाम दिल्ली यूनिवर्सिटी एवं अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) 13022/2023
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