साधारण देशी बम मामलों को आतंकवादी अपराध मानने से एनआईए अधिनियम का उद्देश्य विफल हो जाएगा: मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2021-07-19 03:58 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम के तहत अधिसूचित अपराधों से जुड़े सभी मामलों को एनआईए अधिनियम के अंतर्गत अधिसूचित 'विशेष न्यायालयों' में भेजने से होने वाली कठिनाइयों के बारे में चिंता व्यक्त की है।

चूंकि विस्फोटक पदार्थ अधिनियम भी एनआईए अधिनियम के तहत एक अधिसूचित अपराध है, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत अपराधों से जुड़े हर मामले के लिए एनआईए अधिनियम के तहत विशेष अदालतों में जाना होगा। इस संदर्भ में, हाईकोर्ट ने कहा कि विस्फोटक पदार्थ अधिनियम को तमिलनाडु में गैंगस्टर अपराधों में नियमित रूप से लागू किया जाता है क्योंकि "साधारण उपद्रवी गिरोह अब चाकू का उपयोग करने से लेकर देशी बम बनाने तक सीख गए हैं जिसे उन्हें पारंपरिक हथियारों की तुलना में ले जाना और फेंकना आसान लगता है।"

कोर्ट ने आगे कहा कि वर्ष 2019 में विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत अपराधों से संबंधित 139 प्राथमिकियां दर्ज की गई थी।

न्यायमूर्ति पीएन प्रकाश, न्यायमूर्ति वी शिवगनम, न्यायमूर्ति आर एन मंजुला की पूर्ण पीठ एक संदर्भित प्रश्न पर विचार कर रही थी कि क्या गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत सत्र अदालत द्वारा जमानत की अस्वीकृति को एनआईए अधिनियम के तहत अपील के माध्यम से चुनौती दी जानी चाहिए, यद्यपि मामले की जांच राज्य पुलिस कर रही थी न कि एनआईए। 'बिक्रमजीत सिंह बनाम पंजाब सरकार' मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अनुसरण करते हुए बेंच ने कहा कि ऐसे आदेशों को केवल एनआईए अधिनियम के तहत अपील के माध्यम से चुनौती दी जा सकती है।

साथ ही, पीठ ने एनआईए अधिनियम और यूएपीए अधिनियम की इस व्याख्या का पालन करने से उत्पन्न कुछ व्यावहारिक समस्याओं पर प्रकाश डाला।

याचिकाकर्ता के वकील एडवोकेट जॉन सत्यम ने अदालत का ध्यान इस तथ्य की ओर आकृष्ट किया कि विस्फोटक पदार्थ अधिनियम भी एनआईए अधिनियम के तहत एक अधिसूचित अपराध है। इसका मतलब यह होगा कि नियमित देशी बम मामलों में जहां यूएपीए लागू किया गया है, वहां अंतिम रिपोर्ट सत्र न्यायालय के समक्ष दाखिल करनी होगी।

यदि राज्य पुलिस एनआईए अधिनियम के सख्त आदेशों का पालन की होती, तो विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत सभी प्राथमिकियों के बारे में केंद्र सरकार को सूचित करना चाहिए था। इस प्रकार, केंद्र सरकार के पास विभिन्न राज्य सरकारों से ऐसी रिपोर्टों का ढेर लग जायेगा, जिनका उसे विश्लेषण करना होगा और अलग-अलग मामले के आधार पर निर्णय लेना होगा कि किन मामलों से एनआईए निपटेगी और किन मामलों को जांच आगे बढ़ाने के लिए राज्य पुलिस के पास छोड़ देना है।

स्टेशन हाउस अधिकारियों को विशेष अदालतों या सत्र न्यायालयों के समक्ष सीधे अंतिम रिपोर्ट दाखिल करनी होगी।

कोर्ट ने कहा,

"हमारी सुविचारित राय में, एनआईए अधिनियम का उद्देश्य विफल हो जाएगा यदि देशी बम मामलों के सभी और विविध मामलों को आतंकवादी अपराधों के रूप में माना जाता है तथा ट्रायल के लिए विशेष न्यायालयों / सत्र न्यायालयों में भेजा जाता है।"

इसने रेखांकित किया कि सत्र न्यायालय पहले से ही नियमित न्यायिक कार्यों के बोझ तले दबे हुए हैं।

न्यायालय ने कहा,

"एनआईए अधिनियम, 2008 का उद्देश्य अनुसूची में उल्लेखित गंभीर अपराधों के मुकदमे में तेजी लाना है, जो कि पराजित हो जाएगा यदि एक न्यायालय विशेष क्षेत्राधिकार प्रदान करने वाले कई अधिनियमों के साथ क्षेत्राधिकार से बोझिल हो जाता है। यह एक व्यावहारिक मुद्दा है, जिसे यदि उचित तरीके के साथ नहीं निपटा गया तो यह विशेष न्यायालय गठन के उद्देश्य को विफल कर देगा।"

न्यायालय ने एक अन्य विसंगति को भी इस प्रकार चिह्नित किया:

"इसके अलावा, हम अभी एक और विसंगति पाते हैं, यद्यपि सीबीआई द्वारा एक अधिसूचित अपराध की जांच की जा रही है, तो यह न तो एनआईए की श्रेणी में आता है और न ही राज्य एजेंसी की श्रेणी के अंतर्गत आता है, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे मामलों में एनआईए अधिनियम लागू नहीं होगा। सीबीआई की अंतिम रिपोर्ट केवल नियमित क्षेत्राधिकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष दायर की जाएगी, जब वह ऊपर उल्लेखित काल्पनिक मामले में एक अधिसूचित अपराध का खुलासा करती है।"

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल श्री आर. शंकरनारायणन ने कहा कि वह इन पहलुओं पर केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय का ध्यान आकर्षित करेंगे।

हाईकोर्ट ने कहा,

"हमें भरोसा है और उम्मीद है कि इन मुद्दों को संबंधित हितधारकों द्वारा गंभीरता से देखा जाएगा।"

मामले का विवरण

शीर्षक: जफर सादिक @ बाबू बनाम राज्य सरकार

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