'परंपराओं और रीति-रिवाजों को राष्ट्रीय हित के लिए झुकना पड़ता है': जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने परिजनों को कोरोना से मरने वालों के शव सौंपने की मांग खारिज की

Update: 2021-06-11 13:45 GMT

''व्यक्तिगत अधिकारों पर व्यापक जनहित हमेशा प्रबल होता है और परंपराओं और रीति-रिवाजों को विशेष रूप से इस अभूतपूर्व समय में राष्ट्रीय हित के लिए झुकना पड़ेगा'', यह टिप्पणी करते हुए जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने COVID19 पीड़ितों के शव उनके निकट के संबंधियों को सौंपने का निर्देश पारित करने से इनकार दिया।

मुख्य न्यायाधीश पंकज मिथल और न्यायमूर्ति विनोद चटर्जी कौल की खंडपीठ ने कहा कि COVID19 शव प्रबंधन पर केंद्र द्वारा जारी दिशानिर्देश परिवार के सदस्यों की धार्मिक भावनाओं का पर्याप्त रूप से ध्यान रख रहे हैं और इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

राज्य की ओर से पेश महाधिवक्ता डीसी रैना, एएजी असीम साहनी और सरकारी अधिवक्ता सज्जाद अशरफ ने अदालत को सूचित किया कि केंद्रीय दिशानिर्देश बैग को खोलकर शव का चेहरा देखने और शरीर को छुए बिना अंतिम संस्कार और अनुष्ठान करने की अनुमति देते हैं। इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा,

''सरकार द्वारा परिवार के सदस्यों की धार्मिक भावनाओं का पर्याप्त रूप से ध्यान रखा गया है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने कोरोना महामारी से निपटने वाले विशेषज्ञों के परामर्श से उपरोक्त दिशानिर्देश तैयार किए हैं और यदि दिशा-निर्देश शव को विशेष रूप से परिजनों को सौंपने की अनुमति नहीं देते हैं और उन्हें अंतिम संस्कार में भाग लेने और अंतिम संस्कार करने की अनुमति देते हैं तो यह पर्याप्त से काफी अधिक है अन्यथा बीमारी के प्रसार को रोकना मुश्किल होगा।''

फिर भी सावधानी बरतने का शब्द जोड़ते हुए बेंच ने कहा कि कोरोना महामारी के कारण मरने वाले किसी भी व्यक्ति के परिजनों को मृतक का चेहरा देखने और निर्धारित तरीके से अंतिम संस्कार करने की अनुमति देने में परेशान नहीं किया जाना चाहिए।

डिवीजन बेंच ने सरकारी स्टेडियमों को टीकाकरण केंद्रों में बदलने की प्रार्थना को भी खारिज कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि इस तरह की प्रार्थना पर न्यायालय द्वारा विचार नहीं किया जा सकता है। यदि उनके पास टीकाकरण केंद्रों के लिए जगह की कमी है तो इस पर प्रशासन को विचार करना है। टीकाकरण केंद्रों के लिए यदि कोई कमी या अतिरिक्त जगह की आवश्यकता है, तो प्रशासन निश्चित रूप से पर्याप्त जगह की व्यवस्था करने और उसे स्थापित करने के तरीकों पर विचार करेगा।

यह भी कहा कि,

''बड़े टीकाकरण केंद्रों का निर्माण उचित नहीे होगा क्योंकि इससे बड़ी संख्या में लोगों को एक स्थान पर एकत्रित किया जाएगा जो बहुत जोखिम भरा होगा और कोरोना के प्रसार का कारण बन सकता है।''

अंत में, बेंच ने ऑक्सीजन की आपूर्ति के मुद्दे पर विचार किया और कहा कि भले ही तरल चिकित्सा ऑक्सीजन की तत्काल कोई कमी न हो, लेकिन भविष्य की आकस्मिकताओं को पूरा करने के लिए यूटी प्रशासन द्वारा उत्पादन संयंत्र स्थापित किए जा सकते हैं।

पीठ ने कहा कि,

''वर्तमान में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं हो सकती है, लेकिन भविष्य के लिए कोरोना की प्रत्याशित तीसरी लहर का मुकाबला करने के लिए, यह उचित होगा कि सरकार प्रत्येक सरकारी मेडिकल कॉलेज या संबद्ध अस्पतालों में ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र स्थापित करने पर विचार करे। यह आने वाले समय में सभी श्रेणी के रोगियों को चिकित्सा उपचार प्रदान करने में चिकित्सा जगत के लिए फायदेमंद होगा।''

पीठ ने उम्मीद जताई है कि सरकार तीसरी लहर, यदि आती है तो, उसका सामना करने के लिए खुद को पहले से तैयार करेगी और इस उद्देश्य के लिए टीकाकरण अभियान को तेज करेगी। यह भी कहा कि, ''अब तक की गई अस्थायी व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त न करके इसे भविष्य के लिए तैयार रखा जा सकता है।''

इस मामले में एडवोकेट मोनिका कोहली एमिकस क्यूरी हैं।

अब इस मामले की सुनवाई 6 जुलाई को होगी।

केस का शीर्षकः Court on its own motion v. Union Territory of J&K & Ors.

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